पूर्वांचल के पढ़े-लिखे तबके ने भाजपा को नकार दिया, काम नहीं आई मोदी की संजीवनी

 त्वरित टिप्पणी

० बनारस शहर में भाजपा और आरएसएस के नेताओं का भारी जखेड़ा, इसके बावजूद हुई शर्मनाक पराजय

० ग्रामीण इलाकों में शिद्दत से काम नहीं कर रहे भाजपा के नेता, सभी ने काशी में बना लिया है अपना ठिकाना



विशेष संवाददाता

वाराणसी। भारतीय जनता पार्टी एमएलसी चुनाव में वाराणसी निर्वाचन क्षेत्र की स्नातक और शिक्षक सीट इसलिए हार गई कि पार्टी के लोगों व प्रत्याशियों को भारी मतों से चुनाव जीतने का पुख्ता यकीन था। यकीन इसलिए था कि पिछले चुनावों की तरह भाजपाइयों को भरोसा था कि पीएम नरेंद्र मोदी उनकी नौका पार लगा देंगे। विपक्षी दलों के आरोपों को यकीन किया जाए तो दोनों सीटों पर काबिज होने की नीयत से ही वो आदर्श आचार संहिता के बावजूद काशी आए और भाजपा की जमकर ब्रांडिंग की। बनारस शहर में भाजपा और आरएसएस के पदाधिकारियों का जखेड़ा है, इसके बावजूद दोनों सीटों पर पार्टी की करारी पराजय ने जो संदेश दिया है वो बहुत दूर तक गया है। एमएलसी चुनाव में शहरों की अपेक्षा गांवों में भाजपा प्रत्याशियों को पर्याप्त वोट नहीं मिले।

भाजपा की पराजय के कारणों की तह में जाकर देखें तो पता चलता है कि ग्रामीण इलाकों में पार्टी काफी कमजोर हो गई है। इसके लिए क्षेत्रीय संगठन मंत्री से लेकर सह प्रभारी तक कम जिम्मेदार नहीं हैं। भाजपा ने संगठनों का परसीमन किया तो रामनगर मंडल को जिले से निकालकर शहर में मिला दिया। साथ ही जिले के दो पदाधिकारियों नंदलाल चौहान व सत्येंद्र सिंह पिंटू को बाहर कर दिया। 

गौर कीजिए, भाजपा में जिले के पदाधिकारी यदा-कदा ही ग्रामीण इलाकों में जाते हैं। क्षेत्रीय अध्यक्ष, जिलाध्यक्ष, जिला महामंत्री से लेकर भाजपा के तमाम पदाधिकारी बनारस शहर में ही रहते हैं। भाजपा जिलाध्यक्ष हंसराज विश्वकर्मा का गांव कंचनपुर पहले काशी विद्यापीठ प्रखंड का एक गांव था वो अब महानगर के जोनल कार्यालय से संबद्ध हो गया है। जब ग्राम इकाई महानगर में शामिल हो चुकी है। ऐसे में वो जिलाध्यक्ष पद पर बने रहने का नैतिक अधिकार खो चुके हैं। इसी आधार पर पूर्व में दो जिला पदाधिकारियों को पदमुक्त किया गया था। जिलाध्यक्ष समेत आधा दर्जन से अधिक जिले के पदाधिकारियों का गांव भी अब शहर में शामिल कर लिया गया है, जिसमें महामंत्री सुरेंद्र पटेेल और उपाध्यक्ष प्रभात सिंह समेत कई लोग शामिल हैं। 

भाजपा के कई पदाधिकारी एमएलसी चुनाव में ग्रामीण इलाकों में स्नातकों और शिक्षकों से संपर्क साधने के बजाए अपनी कुर्सी बचाने की जुगत में जुटे रहे। चुनाव को भगवान भरोसो छोड़ दिया गया। बैठकें होती रहीं और प्रत्याशी को झूठे सब्जबाग दिखाए जाते रहे। बनारस में तीन मंत्री और जिले के सभी विधायक भाजपा अथवा उनके समर्थित दलों के हैं। मेयर की कुर्सी तो सालों से भाजपा नेताओं की रहनुमाई में सजाई जाती रही हैैै। एमएलसी के चुनाव मेें काशी में पहली बार समाजवादी पार्टी ने भाजपा को तगड़ी पटकनी दी है। इसकी वजह हैं भाजपा के तमाम अहम पदों पर बैठे पदाधिकारी, विधायक और कद्दावर नेता। 

प्रदेश भाजपा के कई पदाधिकारियों का डेरा भी बनारस शहर में ही। शायद इन पदाधिकारियों का अपना खुद का कोई वजूद नहीं है। इन्हें यकीन रहता है कि मोदीजी आएंगे और वो चुनाव में बाजी मार लेंगे। यही भरोसा भाजपा की करारी पराजय का कारण बन गया। खास बात यह है कि सपा प्रत्याशी को लेकर युवाओं में खासा उत्साह था, वहीं भाजपा प्रत्याशी के प्रति स्नातकों में तनिक भी दिलचस्पी नहीं थी। सपा प्रत्याशी आशुतोष सिन्हा कोविड काल में भी वोटरों के संपर्क में रहे, जबकि भाजपा और अन्य दलों के प्रत्याशी अपने घरों से बाहर ही नहीं निकलेेे। शायद हर भाजपा नेता को यकीन था कि मोदीजी आएंगे और भाजपा की नौका पार हो जाएगी। लेकिन हुुईवो नहीं, जो नतीजा आया वो उम्मीद से उलट था। 



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