'चिंटू जिया' पर लहालोट हुए पूर्वांचल के किसान

0 गुमनामी के अंधेरे में जन्मे 'चिंटू जिया' ने खूब बटोरी शोहरत, मालामाल हुए अन्नदाता

0 'सोनम ' की तरह मचाया धमाल, किसानों की आमदनी दोगुनी होने की जगी उम्मीद

पूर्वांचल में पापुलर्टी हासिल करने वाला  'चिंटू जिया'


विजय विनीत 

वाराणसी। ब्लैक राइस और बासमती की खेती से बर्बाद हो चुके पूर्वांचल के किसानों में एक नई उम्मीद जागाई है 'चिंटू जिया' ने। यह भोजपुरी गायक पप्पू राजा और राधा के रिमिक्स गाने का मुखड़ा नहीं, पूर्वांचल में खासी पापुलर्टी हासिल कर चुके धान की एक प्रजाति का नाम है। जिस तरह पल-पल ना माने 'चिंटू जिया' ...के गाने ने पूर्वांचल में शोहरत हासिल की, कुछ उसी तरह की सुर्खियां 'चिंटू जिया'  ने भी बटोरी हैं। जिन किसानों ने इस बार 'चिंटू जिया'  की खेती की है, वो काफी मालामाल हो गए हैं। वजह है, इस अनूठे धान की शानदार क्वालिटी और उसकी बंपर पैदावार।  

ब्लैक राइस की खेती करके देश भर में सुर्खियां बटोरने वाले चंदौली के किसानों ने धान के कटोरे में अबकी बड़े पैमाने पर 'चिंटू जिया'  की खेती की है। किसानों को लगता है कि 'चिंटू जिया'  की बंपर पैदावार, ब्लैक राइस और बासमती से ज्यादा मुनाफा देने वाली है। नाटी मंसूरी और सांभा मंसूरी को भी इस धान ने बुरी तरह पछाड़ दिया है। 'चिंटू जिया'  ने कुछ उसी तरह का तहलका मचाया है जब धान की एक अनजानी प्रजाति सोनम आई थी। हालांकि सोनम अब पूर्वांचल से विदा हो चुकी है। 'चिंटू जिया'  की प्रजाति के बारे में किसानों को कोई जानकारी नहीं है। यह तक पता नहीं कि ये धान कहां से आया और अचानक कैसे पूर्वांचल में छा गया? कृषि महकमा भी 'चिंटू जिया'  की शिनाख्त करने में सक्षम नहीं है।

किसानों को सिर्फ इतना पता है कि सरकार भले ही उनकी आमदनी दोगुनी नहीं कर सकती, पर 'चिंटू जिया'  का बंपर उत्पादन इसकी उम्मीद जरूर जगा देता है। आखिर 'चिंटू जिया'  में ऐसा क्या है, जिस पर पूर्वांचल के किसान लट्टू हैं? पूर्वांचल में नाटी मंसूरी और सांभा मंसूरी का चावल जहां 1600 से 1800 रुपये प्रति कुंतल की दर से बिक रहा है, वहीं 'चिंटू जिया'  का भाव 3000 से 3200 रुपये है। इस महीन धान का हर कोई दीवाना है। सिर्फ दलाल और बिचौलिए ही नहीं, इसे जो खाता वो भी लहालोट हो जाता है। 

चंदौली के प्रगतिशील किसान कमलेश सिंह कहते हैं, 'चिंटू जिया'  को इसलिए ज्यादा पसंद किया जा रहा है क्योंकि ये खाने में काफी मुलायम है। धान की नई प्रजाति श्रीराम गोल्ड और बालाजी को हर मायने में मात देने वाले 'चिंटू जिया'  की लोकप्रियता लगातार बढ़ती जा रही है।' वो तर्क देते हैं, 'उस धान को उगाने से क्या मतलब जो ब्लैक राइस की तरह किसानों के लिए बोझ बनकर रह जाए। ब्लैक राइस से अच्छा तो 'चिंटू जिया'  ही है, जिसका उत्पादन तो अच्छा है ही, दाम भी उम्दा मिलता है।' चंदौली में धान के बड़े उत्पादक राणा सिंह कहते हैं, 'जब तक 'चिंटू जिया'  हमें अच्छा मुनाफा देगा, तब तक इसकी खेती करेंगे, अन्यथा सोनम की तरह इसे भी फेंक देंगे।' 

चंदौली काला चावल समिति के महामंत्री वीरेंद्र प्रताप सिंह, धान की पापुलर प्रजाति 'चिंटू जिया'  की खेती के पक्षधर नहीं हैं। वो कहते हैं, 'अबकी पूर्वांचल में बड़ी संख्या में किसानों ने ब्लैक राइस की खेती की है। अच्छा मुनाफा नहीं मिला तो अगले साल इसकी खेती बंद कर देंगे। तब 'चिंटू जिया'  उगाएंगे या फिर आदमचीनी और बादशाहभोग की खेती करेंगे।'

'हमारी कोशिश है कि किसान एक मंच पर आएं और बिचौलियों व दलालों को अच्छे दाम पर अपना उत्पाद बेचने के लिए विवश करें। पिछले साल बिचौलियों ने हमारे ब्लैक राइस के दम पर मुनाफा खूब कूटा, लेकिन इस बार उन्हें लूटने का मौका कतई नहीं देंगे। हम अपना ब्लैक राइस अपने मवेशियों को खिला देंगे, पर औने-पौने दाम पर कतई नहीं बेचेंगे। हमारे ब्लैक राइस का विकल्प 'चिंटू जिया' बन सकता है तो उसे अपनाने में कोई हर्ज नहीं है। करीब 140 से 150 दिनों में पककर तैयार होने वाले 'चिंटू जिया'  में कमी सिर्फ इतनी है कि इसकी प्रजाति का कोई अता-पता नहीं है। सरकारी अभिलेखों में पंजीकृत न होने की वजह से इसे हम विश्व बाजार में नहीं बेच सकते।' 


 दुनिया भर में धमाल मचाएगी आदमचीनी

वाराणसी। मीरजापुर के भुइली इलाके में जन्मी आदमचीनी की मोहक सुगंध अब फिर देश-दुनिया में धमाल मचाएगी। सरकार इस प्रजाति को 'जीआई टैग' दिलाने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है। उम्मीद है कि कुछ महीनों में धान की यह प्रजाति पूर्वांचल के किसानों के खाते में स्थायी रूप से दर्ज हो जाएगी। तब इसे किसान विश्व बाजार में बेचकर अच्छा मुनाफा कमा सकेंगे। 

करीब चार दशक पहले पूर्वांचल के किसानों के बीच शोहरत हासिल करने वाली आदमचीनी की खेती चंदौली में बड़े पैमाने पर शुरू कर दी गई है। चंदौली काला चावल समिति के सचिव कमलेश सिंह ने बड़े पैमाने पर इसकी खेती शुरू की है। उन्होंने किसानों को इसका बीज भी बांटना शुरू कर दिया है। वो कहते हैं कि अगर जैविक विधि से आदमचीनी धान की खेती की जाए तो यह ब्लैक राइस से ज्यादा मुनाफा दे सकती है। बड़ी बात यह है कि आदमचीनी सुगंध में उम्दा तो है ही, खाने में भी काफी लजीज है। इससे खीर ऐसी बनती है कि लोग उंगलियां चाटते रह जाते हैं। 



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