गरीब आखिर गरीब क्यों?

21वीं सदी में अब ना कोई जाति रह गई है और ना ही कोई धर्म



दिव्येन्दु राय

कहने को तो इस धरा पर सारे इंसान एक समान हैं लेकिन उनको बांटने अथवा अलग करने में सबसे महति भूमिका गरीबी की है। 21वीं सदी में अब ना कोई जाति रह गई है और ना ही कोई धर्म, वहीं अब इस धरा का वर्तमान युग में सर्वाधिक मजबूत धर्म है। धनवान होना यानी सुविधा सम्पन्न होना और सबसे कमजोर जाति,धर्म है गरीब होना।

देश में इलिट क्लास को छोड़ दिया जाए तो बाकी सब जीवन खुशहाली में नहीं जी रहे हैं बल्कि काट रहे होते हैं। यह मानना ठीकठाक जीवन जीने वालों का होता है जबकि वहीं देश का बड़ा हिस्सा उस वक्त भी भूखे पेट सो रहा होता है। गरीबों की उनकी उस दशा के लिए कोई और नहीं बल्कि वह खुद जिम्मेदार होते हैं कुछ अपवादस्वरूप परिस्थियों को छोड़ दिया जाए तो सरकारों को, हुकूमतों को गरीबी और भुखमरी के लिए सदियों से कोसा गया है और ऐसे ही कोसा जाता रहेगा।

आइए कुछ आँकड़ों पर नजर डालते हैं।

० वैश्विक पोषण रिपोर्ट 2020 के अनुसार भारत विश्व के उन 88 देशों में शामिल है, जो संभवत: वर्ष 2025 तक वैश्विक पोषण के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकेंगे।

० वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2020 के अनुसार भारत विश्व के 107 देशों में 94 वें स्थान पर है, भारत भुखमरी सूचकांक में 27.2 के स्कोर के साथ गंभीर श्रेणी में है।

० संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के अनुसार 107 विकासशील देशों में 1.3 बिलियन लोग बहुआयामी गरीबी से प्रभावित हैं।

शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट 2020 के अनुसार 2018 में 36 फीसद ग्रामीण परिवार जिनके बच्चे स्कूल जा रहे थे, के पास स्मार्टफोन था। वर्ष 2020 तक यह आँकड़ा बढ़कर 62 फीसद हो गया जिसमें से लगभग 11 फीसद परिवारों ने लॉकडाउन के वजह से स्मार्टफोन खरीदा।

पर्याप्त मात्रा में पोषणयुक्त खाद्य सामग्री न मिलने की वजह से लोग कुपोषण के शिकार होते हैं। वहीं वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2020 के अनुसार भारत की 14 फीसद आबादी अल्पपोषित है। इसका तात्पर्य यह है कि इतने लोगों को आवश्यकतानुसार कैलोरीयुक्त खाद्य सामग्री नहीं मिल पायी है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण हो या फिर कोई अन्य सबका लगभग एक सी रिपोर्ट है, जहां अशिक्षा है वहाँ गरीबी है, भुखमरी है।

गरीबों के गरीब होने की सबसे बड़ी वजह कम उम्र में शादी हो जाना और ज्यादे बच्चे पैदा करना है। जो पारिवारिक धन संपदा, संपत्ति अथवा भूमि होती है वह समय के साथ हिस्सेदारी बढ़ने की वजह से कम होते जाती है।

जिन परिवारों की आर्थिक स्थिति दयनीय है उनमें अधिकांशत: इसके लिए अपने जाति को अथवा अपने भाग्य को जिम्मेदार मानते हैं ना कि अपने कर्मों को। जबकि इन परिवारों में लड़के-लड़कियों की कम उम्र में ही यानी 20-22 साल में ही शादी कर दी जाती है फिर उनके कम से कम 3 से 4 बच्चे होते हैं तथा वह अपने बच्चों की शादी भी इसी अवस्था में यानी जब खुद 40-45 के होते हैं और बच्चे 20-22 के तभी कर देते हैं।

ऐसे में न वह खुद के लिए कुछ बचत कर पाते हैं और न ही परिवार के लिए, ऐसे अधिकांशत: लोग प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री आवास योजना पहले खुद बाद में अपने बच्चों को आश्रित रहने के लिए मजबूर करते हैं। गरीब वर्ग की सबसे बड़ी कमी बचत न करने को भी कहा जा सकता है क्योंकि अक्सर यह देखा जाता है गरीब तबके के लोग पैसों का सदुपयोग करने ज्यादे उसका दुरुपयोग करते हुए देखे जाते हैं।

सरकार गरीबी कम करने के लिए भले कितनी भी योजनाएँ चला ले लेकिन, गरीबी ऐसे कम होती उतनी नहीं दिख रही जितने इन प्रयासों के परिणाम आने चाहिए। सरकार तो ऐसे मदद मुहैया कराकर गरीबों को गरीब बने रहने की वजह खुद उपलब्ध करा रही है, सरकार को सुविधाएँ उपलब्ध कराने के अलावा खुद कड़े कानून बनाने की सख्त आवश्यकता है। जैसे विवाह की उम्र बधाई जाए तथा इस कानून का कड़ाई से पालन कराया जाए तथा जनसंख्या नियंत्रण जैसे कानून बनाए जाएं।

(लेखक स्वतन्त्र टिप्पणीकार हैं) 

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