बिहार जनादेश का निहितार्थ: जो हारा वही सिकंदर
2020 का बिहार चुनाव रोमांचकारी 20-20 मैच की तरह मतगणना के आरंभ से अंत तक पक्ष-विपक्ष, नफरत भरी भगवा सांप्रदायिक सियासत के अंत, जनसरोकारों की सियासत के श्रीगणेश की उम्मीद से इस सियासी महासमर के पल पल के घटनाक्रमों के साक्षी देशवासियों को एक अनपेक्षित परिणाम देने के लिये जाना जायेगा। लोकतांत्रिक व्यवस्था मे जो जीता वही सिकंदर माना जाता है। इस चुनाव मे परिणाम की दृष्टि से एनडीए खुद को सिकंदर मान सकती है, लेकिन तल्ख हकीकत यही है कि इस चुनाव का सिकंदर यदि कोई है तब वह युवा भारत का चेहरा बन कर उभरा तेजस्वी यादव है।
तेजस्वी ने खुद को एक सफल सियासी शख्सियत के रूप मे स्थापित किया है। चुनावी रैलियों मे सियासी विमर्श के मोर्चे पर अपने घिसे पिटे सतही, स्तरहीन जुमलों के साथ भाजपा और एनडीए के तारनहार नरेन्द्र मोदी, जेडीयू सुप्रीमो नीतीश कुमार ने सियासी विमर्श की मर्यादा को तार तार करने मे कोई कोर कसर नहीं छोड़ी, जबकि युवा तेजस्वी एक धीर गंभीर, परिपक्व नेता की भूमिका मे नजर आये। नीतीश ने अपनी शालीन छवि के उलट लालू परिवार पर नितांत निजी सियासी तीर छोड़ते रहे। तेजस्वी ने बिना संयम खोये नीतीश के सियासी तीरों को यह कह कर नीतीश की ओर मोड़ दिया कि नीतीश जी की गालियां भी मेरे लिये आशीर्वचन है।
तेजस्वी को इस सियासी समर मे हारा हुआ योद्धा न मानने और उन्हे इस समर का सिकंदर कहने की दर्जनों वजह हैं। एक तरफ धन बल, नरेन्द्र मोदी सहित पूरी सरकार, नीतीश सरकार, भगवा खेमे के संघ सहित दर्जनों आनुषांगिक संगठनों की फौज दूसरी तरफ सियासी रणभूमि मे सत्ता पक्ष को तिगनी का नाच नचाता चतुर्दिक घिरा अकेला नौजवान तेजस्वी यादव। तेजस्वी ने भगवा खेमे के सियासी जाल मे न फंस कर अपने रणनीतिक कौशल का परिचय दिया। अतीत की बैसाखी पर खड़े भगवा कैम्प, मोदी की विरदावली गाने वाले जबरिया चैनलों द्वारा जंगल राज का खौफ दिखाकर, यादव जाति को अपमानित करने, बदनाम करने, जनता के सियासी भयादोहन, सियासी ब्लैकमेल करने की साजिशों के जाल मे न फंसते हुए तेजस्वी ने इस चुनाव का एजेण्डा तय किया और सत्ता पक्ष को अपने एजेंडा की पिच पर खेलने को मजबूर किया।
तेजस्वी ने काफी हद तक इस चुनाव मे जाति, धर्म की सियासत को हाशिये पर धकेलने का काम किया। पढ़ाई, कमाई, दवाई, सिंचाई के जन सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर जनमत बनाने का काम किया। तेजस्वी के बढ़ते जनाधार ने भीतर-भीतर टीम मोदी को हिलाकर रख दिया। यही वजह थी कि नरेन्द्र मोदी और योगी आदित्य नाथ को पाकिस्तान, कश्मीर, धारा 370, सीएए, एनआरसी, राम मंदिर, भारत माता की जय, जय श्रीराम के सांप्रदायिक एजेंडे का सहारा लेना पड़ा।
तमाम साजिशों, घटिया स्तरहीन सियासी हमलों के बावजूद राजद को इस विधानसभा मे सिंगल लार्जेस्ट पार्टी की हैसियत दिला कर तेजस्वी ने खुद को इस सियासी समर का सिकंदर सिद्ध किया है। सीटों की दृष्टि से तेजस्वी के नेतृत्व वाले महागठबंधन को पराजय जरूर मिली है, लेकिन मत प्रतिशत मे महागठबंधन मोदी मेड गठबंधन के बराबर है, तेजस्वी के महागठबंधन को 2015 की तुलना मे 9 प्रतिशत ज्यादा वोट हासिल हुए जबकि भाजपा और एनडीए के मत प्रतिशत में गिरावट देखी गयी। सीट की दृष्टि से राजद को भाजपा से एक सीट अधिक मिली है। यह तेजस्वी की नैतिक जीत और मोदी और टीम मोदी की नैतिक हार है।
संक्षेप मे तेजस्वी की हार की चर्चा प्रासंगिक है। इस चुनाव मे तेजस्वी के रणनीतिकारों से दो आत्मघाती भूल हुयी। पहली भूल कांग्रेस को उसकी जमीनी हैसियत से अधिक सीटें देना की, दूसरी भूल मौसम विज्ञानी के चिराग, ओबैसी की भूमिका को समझने मे चूक जाने की भूल। उनके रणनीतिकार यह समझने मे विफल रहे कि चिराग का रिमोट कंट्रोल भाजपा के हाथ में है, जुबान चिराग की है स्क्रिप्ट भाजपा की। चिराग की एलजेपी को मिले 6 प्रतिशत वोटों ने इस चुनाव के नतीजों की उलट फेर मंे अहम भूमिका अदा की है। यह बात तेजस्वी और उनके रणनीतिकारों को समझ लेनी चाहिए।
बहरहाल तेजस्वी यादव ने इस चुनाव मे चुनावी राजनीति के कई स्थापित मिथकों को तोड़ा है। तेजस्वी ने ‘जो जीता वही सिकंदर’ के मिथक को तोड़ा। तेजस्वी ने बता दिया कि इस सियासी समर का सिकंदर मोदी नहीं तेजस्वी है।
- राजीव कुमार ओझा, वरिष्ठ अधिवक्ता
(यह लेखक के अपने विचार हैं)