एक इंच जमीन नहीं, पर काशी विद्यापीठ ने दे दी महाविद्यालय चलाने की मान्यता

 

बनारस के बरियासनपुर में अजूबी शिक्षण संस्था है महादेव महाविद्यालय

जनसंदेश न्यूज
वाराणसी। जिले में एक ऐसा महाविद्यालय है जो आसमान में चल रहा है। इस महाविद्यालय के पास अपनी कोई जमीन नहीं है। फिर भी महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ प्रशासन ने इसे साल 2002 में मान्यता दे दी थी। यह हम नहीं कह रहे हैं। खुद बनारस जिला प्रशासन कह रहा है। साथ ही प्रशासनिक अफसरों के अभिलेख भी इस बात के गवाह हैं। इस महाविद्यालय के पास इंच भर जमीन नहीं है। बनारस के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट सुरेंद्र सिंह द्वारा 13 अगस्त 2019 की चिट्ठी भी इस अजूबे महाविद्यालय की दास्तां बयां करता है।
बिना जमीन वाली इस शिक्षण संस्था का नाम है बलदेव महाविद्यालय-बरियासनपुर। हैरान कर देने वाला यह मामला दिल्ली की एक स्वयंसेवी संस्था बोधिसत्व फाउंडेशन की पड़ताल के बाद उजागर हुआ। फाउंडेशन का आरोप है कि बिना जमीन वाले महाविद्यालय को संरक्षण महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के अफसर दे रहे हैं। साथ ही शिक्षा विभाग के उच्चाधिकारी और विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार तक की भूमिका सवालों के घेरे में है।



बरियासनपुर में बल्देव महाविद्यालय साल 2002 में शुरू हुआ, लेकिन शिकायतों के बाद जिला मजिस्ट्रेट ने रिपोर्ट तलब की तो विश्वविद्यालय प्रशासन ने साल 2005 के अनापत्ति प्रमाण-पत्र की प्रतिलिपि मुहैया कराई। साल 2005 की खतौनी में जिस महादेव महाविद्यालय का नाम दर्ज है उसके अगले साल 2006 में उसी खतौनी में अलग-अलग व्यक्तियों के नाम दर्ज हैं।  बोधिसत्व फाउंडेशन का आरोप है कि महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में जो अभिलेख दाखिल किए गए हैं वो फर्जी हैं और निहित स्वार्थों को पूरा करने के लिए उन्हें बनाया गगया है। फाउंडेशन की जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि यूनिवर्सिटी से अधिकारी रिश्वत लेकर मान्यता की फ़ाइल दबाए बैठे हैं। साथ ही जिला प्रशासन भी यह बताने के लिए तैयार नहीं है कि जिस महाविद्यालय के पास अपनी खुद की जमीन नहीं है उसे मान्यता कैसे दे दी गई?








आरोप यह भी है कि साल 2019 में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ ने महादेव महाविद्यालय को जाली अभिलेखों के आधार पर चार साल के लिए आईटीईपी कोर्स चलाने के लिए भी अनापत्ति प्रमाण-पत्र दे दिया है। फ़र्ज़ी खतौनी की कहानी लेखपाल की एक जांच रिपोर्ट भी पुष्ट करती है। इस सिलसिले में महाविद्यालय प्रबंधन का पक्ष जानने की कोशिश की गई, पर उपलब्ध नहीं हो सका। अगर महाविद्यालय प्रबंधन भविष्य में अपना पक्ष रखता है तो उसे भी प्रकाशित किया जाएगा।









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