कलाकारों ने हैलोवीन पर अपने डरावने अनुभवों के बारे में बताया





डॉ. दिलीप सिंह

इंदौर। एक हॉरर सीक्वेंस को बनाने में बहुत मेहनत करने के साथ ही काफी रिसर्च भी करना पड़ता है, ताकि दर्शकों को डरावनी कहानी से आकर्षित करने में सफलता पाई जा सके। एण्डटीवी के शो लाल इश्क के निमार्ताओं में से एक, हेमंत प्रभु ने कहा, श्किसी भी सुपरनैचुरल और हॉरर जोनर्स के लिए, एक मनोरंजक कहानी बहुत जरूरी है ताकि वह दर्शकों की दिलचस्पी बनाए रखें। इसे और ज्यादा दिलचस्प बनाने और बेहतरीन कंटेंट से भरपूर पैकेज देने के लिए, हम अपनी सभी कहानियों को दशार्ते हुए हर महीने एक थीम फॉलो करते रहे हैं। इस बार हैलोवीन, आपके डर को बढ़ा देगा क्योंकि हम अस्पताल, रेलवे स्टेशन, पुरानी हवेली इत्यादि जैसी विभिन्न जगहों में फंसी हुई आत्माओं की कहानियों को सामने लेकर आएंगे।श् एण्डटीवी के कलाकारों ने इस हैलोवीन पर उनके जीवन में घटी डरावनी घटनाओं के अनुभवों को हमारे साथ साझा किया हैरू

संतोषी मां सुनाएं व्रत कथाएं की तन्वी डोगरा (स्वाति) ने कहा, श्मुझे याद है कि एक बार जब मैं दिन भर काम करने के बाद देर रात शूटिंग से घर लौट रही थी तो मुझे ऐसा लगा कि कोई मेरा पीछा कर रहा है। मैंने कई बार पीछे मुड़कर देखा, लेकिन उस अंधेरी अकेली गली में अकेली ही थी। वहां पर कोई और मेरे साथ नहीं था। मुझे अभी भी याद है कि वो एहसास बहुत ही वास्तविक और डरावना था। यह अनुभव मुझे आज भी अंदर से पूरी तरह हिलाकर रख देता है।



गुड़िया हमारी सभी पे भारी की सारिका बहरोलिया (गुड़िया) ने कहा, श्जब मैं स्कूल में थी, हम सभी साथ में त्यौहार के दौरान हमारे अपने गांवध्शहर जाते थे, और जैसा कि मेरी मां कहती है, हम बच्चा पार्टी का ग्रुप एक साथ जमा होता था और भूतों के बारे में जो उन्होंने देखा और सुना है उसकी कहानियां सुनाते थे। ऐसे ही एक सेशन के बाद, मैं अपने एक दोस्त के साथ बातचीत करते हुए अपने घर लौट रही थी तब मुझे यह एहसास हुआ कि मैं वहां पर अकेली चल रही हूं। मैंने किसी के कदमों की आहट सुनी, और ऐसा लगा कि कोई मेरे साथ चल रहा था लेकिन मैं उसे देख नहीं पा रही थी।



भाबी जी घर पर हैं के रोहिताश्व गौड़ (मनमोहन) ने कहा, श्बचपन में गर्मियों की छुट्टियों के दौरान मैं अपने दादा-दादी से मिलने जाता था। उस समय, मेरे दोस्त और मैं अक्सर हरे भरे खेतों में खेलते हुए समय बिताते थे। हमारे घरवाले अक्सर हमें समझाया करते थे कि हम सूरज ढ़लने के बाद मैदान के आसपास न घूमें क्योंकि लोगों ने वहां कुछ डरावनी घटनाएं अनुभव की हैं। ऐसी ही एक शाम को क्रिकेट टूनार्मेंट देखने की वजह से हम बहुत ज्यादा लेट हो गए, इसलिए हम अपने घर लौटने के लिए अपनी साइकिल की तरफ भागे। हममें से एक ने संकरे रास्ते के पास घास में एक काली परछाई देखी, और हम सभी वहां पर किसी की मौजूदगी महसूस कर सकते थे। वो दिन था और आज का दिन है, मैं हमेशा सूरज ढ़लने के बाद मैदान के आसपास रहने से बचता हूं।



हप्पू की उलटन पलटन के योगेश त्रिपाठी(दरोगा हप्पू सिंह) ने कहा, अपने थिएटर नाटकों के लिए मैं देशभर में घूमा करता था और हम अपने वास्तविक परफॉरमेंस से पहले लोकल थिएटर में रिहर्सल करते थे। मैं हमेशा अपने समय से पहले पहुंचता था और दूसरों के आने का इंतजार करता था। उस दिन भी, मैं आधे घंटे पहले पहुंच गया था और अपनी लाइंस की रिहर्सल कर रहा था। जब मैंने मेरा पहला डायलॉग बोला, मैंने स्टेज पर पीछे किसी के फुसफुसाने की आवाज सुनी। शुरू में मुझे लगा कि वह कोई लाइट मैन या सफाई कर्मचारी है, इसलिए मैंने उस पर इतना गौर नहीं किया। लेकिन कुछ समय के बाद, मैंने दोबारा वह आवाज सुनी, पता लगाने के लिए जब मैं उस तरफ बढ़ा तो मुझे एहसास हुआ कि स्टेज पर पीछे कोई भी नहीं था। मैं तुरंत ही थिएटर से बाहर आ गया और सभी के पहुंचने का इंतजार करने लगा।




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