इंकलाबी शायर: असरार उल हक ‘मजाज’



असरार उल हक ‘मजाज’ उर्दू साहित्य के उन महत्वपूर्ण शायरों में से एक है जिनकी नज्मों में इश्क मुहब्बत तो था ही साथ ही उनमें बगावती तेवर भी थे। मजाज ने अदबी दुनिया मे कई रंग बिखेरे जरिया चाहे नज्म रहा हो, गजल रही हो या अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का कुल गीत। कभी वो औरतों को नेतृत्व करने की आवाज देते तो कभी मजलूमों को इंकलाब करने का पैगाम देते। जिस वक्त इन तबकों का बराबरी के हक की बात करना बड़े हिम्मत का काम समझा जाता था। मजाज ने इन्हें आवाज दी। महिला सशक्तिकरण के लिए उन्हें सदैव याद किया जाएगा।

एक बार मशहूर अदाकारा नरगिस सिर पर दुपट्टा रखकर मजाज का ऑटोग्राफ लेने पहुंची। ऑटोग्राफ देने के बाद उन्होनें कहा

दिल-ए-मजरूह को मजरूह-तर करने से क्या हासिल,

तू आंसू पोंछ कर अब मुस्कुरा लेती तो अच्छा था,

तिरे माथे पे ये आंचल बहुत ही खूब है लेकिन,

तू इस आंचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था

और यही उनकी तारीखी नजम ’औरत’ के नाम से पूरी दुनिया मे चर्चित हुई, जिसने मजाज को वक्त का इंकलाबी शायर साबित किया। रूमानियत की नज्में कहना। निजी जिंदगी में उसी से महरूम होना। साथ ही अत्यधिक संवेदनशीलता ने उन्हें उर्दू शायरी का कीट्स तो बनाया, साथ उनको गहरे अवसाद में भी डाल दिया। फिर भी जब बात औरत की आती है तब यही शायर जिसने अपने इर्द गिर्द औरतों को हमेशा हिजाब में देखा, कहता है-

सर-ए-रहगुजर छुप-छुपा कर गुजरना

खुद अपने ही जज्बात का खून करना

हिजाबों में जीना हिजाबों में मरना

कोई और शय है ये इस्मत (इज्जत) नहीं है।

मजाज का ये मानना है कि अगर समाज की तस्वीर बदलना है तो औरतों को आगे आना होगा और ये जिम्मेदारी पुरुषों को उनसे ज्यादा उठानी होगी। हमनें फेमिनिस्म शब्द को 21वीं सदी में जाना लेकिन मजाज के यहां मुल्क की आजादी से भी पहले ये परिकल्पना परवान चढ़ चुकी है। 

औरत के अतिरिक्त मजाज की संवेदनशीलता भीड़ के उस आखिरी व्यक्ति के लिये भी है जो गरीब है। शोषित है। लेकिन तब वें अपने गीतों से सहलाते नहीं, जोश भरते हैं और इंकलाब लाने की पुरजोर कोशिश करते हैं।

जिस रोज बगावत कर देंगे

दुनिया में कयामत कर देंगे

ख्वाबों को हकीकत कर देंगे

मजदूर हैं हम मजदूर हैं हम

डॉ मोहम्मद आरिफ


मजाज जितने रूमानी है उतने ही इन्कलाबी भी। फर्क बस इतना है ‘आम इंकलाबी शायर इन्कलाब को लेकर गरजते हैं और उसका ढ़िढोरा पीटते है जबकि मजाज इन्कलाब में भी हुस्न ढूंढ़कर गा लेते हैं।

बोल कि तेरी खदिमत की है

बोल कि तेरा काम किया है

बोल कि तेरे फल खाए हैं

बोल कि तेरा दूध पिया है

बोल कि हम ने हश्र उठाया

बोल कि हमसे हश्र उठा है

बोल कि हम से जागी दुनिया

बोल कि हम से जागी धरती

बोल! अरी ओ धरती बोल! 

राज सिंघासन डांवाडोल

मजाज ने खुद अपने बारे में कहा----

खूब पहचान लो असरार हूं मैं,

जिन्स-ए-उल्फत का तलबगार हूं मैं

उल्फत का ये शायर जिंदगी भर उल्फत के इंतजार में सूनी राह तकते तकते इस फानी दुनिया से कूच कर गया, पर अपने पीछे अदब को वो खजाना छोड़ गया जो उसे सदियों तक मरने नही देगा।

बख्शी हैं हमको इश्क ने वो जुरअतें मजाज,

डरतें नहीं सियासत-ए-अहल-ए-जहां से हम



डॉ मोहम्मद आरिफ

(लेखक जाने माने इतिहासकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं)



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