इस बार ग्रीन पटाखों से मनाएं दिवाली

  जानलेवा पटाखों से अब तौबा कीजिए

वाराणसी। जानलेवा पटाखों से अब तौबा कीजिए। सुप्रीम कोर्ट ने दो साल पहले ग्रीन पटाखों के इस्तेमाल का इस्तेमाल करने की हिदायत दी थी। ये वो पटाखे हैं जिनसे काफी कम प्रदूषण होता है। आमतौर पर लाइसेंसी दुकानों पर ही ग्रीन पटाखे मिलते हैं।

हर साल दिवाली पर पटाखे जलाए जाते हैं। पटाखों के चलते दिवाली बाद प्रदूषण अचानक बढ़ जाता है। इसके चलते लोगों का सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है। भारतीय संस्था राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) ने ग्रीन पटाखों ने अब ग्रीन पटाखों को बनाने में सफलता पा ली है। इन पटाखों को प्रदूषण से निपटने के एक बेहतर तरीके की तरह देखा जा रहा है।

 पारंपरिक पटाखों के जलने पर प्रदूषण बढ़ जाता है। ग्रीन पटाखे दिखने, जलाने और आवाज़ में सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं। सामान्य पटाखों से ग्रीन पटाखे 50 फीसदी तक कम वायु प्रदूषण पैदा करते हैं। ये हवा में बहुत विषैली गैस रिलीज नहीं करते। अब तीन तरह के ग्रीन पटाखे बनाए जा रहे हैं।

अगर आप ग्रीन पटाखों को नहीं जानते को इनके गुणों कोक भी जान लीजिए। सेफ वाटर रिलीजर पटाखे जलने के साथ पानी पैदा करते हैं जिससे सल्फ़र और नाइट्रोजन जैसी हानिकारक गैसें इन्हीं में घुल जाती हैं। दूसरी तरह के वो पटाखे होते हैं जो स्टार क्रैकर के नाम से जाने जाते हैं। ये सामान्य से कम सल्फ़र और नाइट्रोजन पैदा करते हैं। एल्युमिनियम का इस्तेमाल भी कम से कम किया जाता है। तीसरी तरह के अरोमा क्रैकर्स हैं जो कम प्रदूषण के साथ-साथ खुशबू भी पैदा करते हैं।

 

अब पारंपरिक पटाखों को बेचने और जलाने पर पाबंदी है। ज्यादातर क्रैकर्स निर्माता कंपनियां अब ऐसे ही पटाखों का उत्पादन कर रही हैं। शिवकाशी में आतिशबाजी का बड़े पैमाने पर निर्माण होता है। रिपोर्ट्स के अनुसार, अब शिवकाशी में ज्यादातर ग्रीन पटाखे ही तैयार किए जा रहे हैं, जो इको-फ्रेंडली होंगे। इनसे नुकसानदायक रासायनिक उत्सर्जन भी कम होगा। आवाज भी कम होगी। ये पूरी तरह सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश के तहत ही बनाए जा रहे हैं। शिवकाशी में एक हजार से अधिक पटाखा बनाने वाली इकाइयां हैं, जो सालभर इन पटाखों का निर्माण करती हैं।



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