बिहार के अपराधियों के लिए उत्तर प्रदेश क्यों है सुरक्षित?


घनश्याम प्रसाद सागर


- अपराधियों के हौसले को क्यों लग रहे पंख

- शराब के खेल से क्यों जुड़ रहा अपराधियों का नाता



तमकुहीराज, कुशीनगर। शनिवार शाम बिहार सीमा से लगे कस्वा समउर बाजार में शराब के दुकान के सामने अज्ञात बदमाशों ने जिस तरह गोलियों की बरसात कर दो लोगों को मौत की नींद सुला फरार हो गये थे। जिसको लेकर कई सवाल खड़ा हो रहा है। और पुलिस लोगों के निशाने पर आ गयी है।
पटहेरवा थाना क्षेत्र का कस्वा समउर बाजार बिहार सीमा पर बसा है। यहां से बिहार में प्रवेश करने के कई रास्ते है। यह कस्वा कई दशकों से तस्करी के लिए बदनाम रहा है, तो वहीं बिहार से लगे होने के कारण बिहार के अपराधियों के चहल कदमी के कारण भी चर्चा में आता रहा है। बिहार में शराब बंदी के बाद अधिकांश संदिग्ध शराब के तस्करी में जुट गये और उन्हें उत्तर प्रदेश में घुसते ही जिनका भय सताता था, वे व्यवसायिक रिश्ते को लेकर उनके दोस्त तक बन गये।
यह अलग बात है कि सीमा पुलिस हर रिश्ते को कबूल कर सकती है, लेकिन आपराधिक घटनाओं को कदापि स्वीकार नहीं कर सकती। लेकिन देहात में कहावत है, कि "सांप को जितना भी दुग्ध पिलाओ, एक दिन डसेगा जरूर" बस यही बात पुलिस के समझ से बाहर रह गयी। यह दीगर बात है कि घटना को अंजाम प्रतिशोध के कारण सुपारी किलरों से दिलाया जाना चर्चा में है। लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि बिहार सीमा पर दो दशक पूर्व उत्तर प्रदेश पुलिस की पुलिसिंग हुआ करती थी वह पूरी तरह समाप्त हो चुकी है। लिहाजा बिहार के अपराधी उत्तर प्रदेश में आसानी से आकर घटनाओं को अंजाम देकर पुनः सुरक्षित वापस चले जाते है।

बिहार में शराब बंदी के बाद उत्तर प्रदेश के आबकारी विभाग अपना राजस्व बढ़ाने को इतना आतुर हुई कि बिहार सीमा से लगे हर कस्बे व गांव में देशी शराब, बियर और अंग्रेजी शराब की दुकान खोल दी। उनका कोटा भी बड़ा तय कर दिया। ऐसे में शराब की खपत के लिए तस्करी ही मुख्य जरिया बन गया। फिर बिहार के अपराधी अपना नेटवर्क फैलाने, बिहार के साथ उत्तर प्रदेश के पुलिस से रिश्ते मजबूत करने को शराब तस्करी के खेल में कदम रख दिया।
हमारे तमकुहीराज प्रतिनिधि अशोक कुमार मिश्र के अनुसार  बिहार सीमा पर दो दशक पूर्व होने वाले वाहन जांच के साथ सीमावर्ती बिहार प्रान्त के गोपालगंज व सिवान जनपद के उन सभी छोटे से बड़े अपराधियों पर नजर रखा करती थी जो उत्तर प्रदेश के इस इलाके से होकर आया जाया करते थे। लेकिन यह सब सपने की बात हो गयी। तब एक बात और थी बिहार सीमा पर स्थित थाने और चौकियों पर जनपद के सबसे तेजतर्रार दरोगा व सिपाही की पोस्टिंग हुआ करती थी, जबकि अब राजनैतिक आशीर्वाद प्राप्त लोग पोस्टिंग पा रहें। गांव में एक और कहावत प्रचलित है, "सैया भये कोतवाल, अब डर कहे का" .....?
सब मिलाकर कहीं न कहीं एक बड़ी चूक होती आ रही, जिसका फायदा अपराधी उठा रहें है। जनता के अंदर भय का वातावरण प्रबल है, और घटनाओं के बाद वहां के जिम्मेदार ऐसी कहानी उच्चाधिकारियों के सामने परोस रहें कि पूरी तस्वीर ही पलट जा रही।



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