कृषि विधेयकः पूर्वांचल के किसानों में भी धड़क रहा आक्रोश का टाइम बम

० कांट्रैक्ट फार्मिंग और मंडियों के बाहर कारोबार को छूट दिए जाने से बढ़ रहा गुस्सा ० कांग्रेस, सपा और जनभागीदारी मोर्चा ने किया है आर-पार की लड़ाई का ऐलान

विशेष संवाददाता 

 वाराणसी। कृषि विधेयक को लेकर पूर्वांचल भी गरमाने लगा है। कांग्रेस, सपा और जनभागीदारी मोर्चा ने इस मुद्दे पर आर-पार की लड़ाई का ऐलान किया है। विरोध का बड़ा कारण यह है कि इस कानून के लागू होने पर किसानों के पक्ष में सरकार द्वारा तय समर्थन मूल्य मिल पाना कठिन हो जाएगा। साथ ही कांट्रैक्ट खेती करने वाले कारोबारी मालामाल होंगे। छोटे किसानों को अपने खेत में मजदूर की तरह काम करना पड़ सकता है। 
कृषि विधेयक को लेकर केंद्र और यूपी सरकार अपने पक्ष में जनमत बनाने की कोशिश कर रही हैं तो विपक्ष सरकार पर हमलावर की भूमिका में है। पूर्वांचल के किसान भी विपक्ष के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। इस बीच कांग्रेस ने कांग्रेस (Congress) ने देशव्यापी आंदोलन का बिगुल फूंक दिया है। कृषि विधेयक को लेकर किसानों को सबसे बड़ा खौफ न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP- Minimum Support Price) खत्म होने का है। इस विधेयक पर राष्ट्रपति के दस्तखत होने के बाद मंडी समितियों का अस्तित्व पर बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा। इसकी बड़ी वजह यह है कि देश के बड़े कारोबारी मंडी से बाहर अपना कारोबार शुरू कर देंगे।
 किसानों की उपज का मूल्य भी देश के बड़े उद्यमी तय करेंगे। अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस ने सेब, अनार, किवी, ड्रैगन फ्रूट आदि फलों की बिक्री पहले से ही शुरू कर दी थी। अब अनाज बेचने और खरीदने के धंधे में भी उतर जाएगी। नए कृषि कानून में मंडियों से बाहर फल और सब्जियों का कारोबार किया जा सकता है। पहले मंडी के अंदर लाइसेंसी ट्रेडर ही किसान से उसकी उपज एमएसपी पर लेते थे। बाहर कारोबार करने वालों के लिए कोई बेंचमार्क नहीं बनाया गया है। इसलिए मंडी से बाहर एमएसपी मिलने की कोई गारंटी नहीं मिलेगी। खास बात यह है कि केंद्र सरकार ने कृषि विधेयक में मंडियों को खत्म करने का ऐलान कहीं नहीं किया है। लेकिन पूर्वांचल ही नहीं, देश भर के किसानों को यह पता चल चुका है कि नया कृषि विधेयक मंडियों को तबाह कर सकता है। इस वजह से किसान काफी खौफजदां हैं। इसी तरह का डर आढ़तियों को भी सता रहा है। इस मुद्दे पर अब किसान और आढ़ती साथ-साथ हैं।
 किसानों का मानना है कि मंडियां बचेंगी, तभी वो अपनी उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधार पर बेच पाएंगे। कृषि विधेयक के लागू होने पर किसानों को मंडियों के अंदर उपज बेचने पर टैक्स का भुगतान करना होगा और बाहर कोई टैक्स अदा करना नहीं पड़ेगा। मतलब सरकार ने उपज बेचने के लिए दो तरह का प्राविधान लागू करने का मंसूबा बनाया है। मंडियां इसलिए शो-पीस बन जाएंगी क्योंकि बाहर कारोबार करने वाले कारोबारियों को कोई टैक्स नहीं देना होगा। मौजूदा समय में मंडी के अंदर अनाज और फल बेचने पर छह से सात फीसदी मंडी शुल्क अदा करना पड़ता है। किसानों का तर्क यह है कि आढ़तिया या व्यापारी मंडी से बाहर कारोबार शुरू कर देंगे, क्योंकि उन्हें वहां किसी तरह का टैक्स अदा नहीं करना पड़ेगा। सरकार के इस फैसले से मंडी की व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी। कृषि अर्थशास्त्रियों का मानना है कि मंडियों के कमजोर होने पर किसान पूरी तरह बाजार के भरोसे हो जाएंगे। ऐसे में दो बातें हो सकती हैं।
 किसानों को उनकी उपज का सरकारी रेट से दाम कम और ज्यादा भी मिल सकता है। हरियाणा और पंजाब की राज्य सरकारें भी नए विधेयक से चिंतित हैं। मंडियों के जरिए वहां की सरकारों को खासा टैक्स मिलता रहा है, जो अब पूरी तरह खत्म हो जाएगा। खरीदार सीधे किसानों से अनाज खरीदेंगे तो उन्‍हें मंडियों में मिलने वाले टैक्‍स का नुकसान होगा। इन राज्यों में विकास का पहिया थम जाएगा। दूसरा विधेयक कांट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर है। इस विधेयक में किसानों का अदालत में जाने का अधिकार हमेशा के लिए छिन जाएगा। कंपनियों और किसानों के बीच विवाद होने पर स्थानीय जिला प्रशासन फैसला करेगा। 
किसानों को अपनी जायज मांगें पूरी कराने के लिए कलेक्टर और डिप्टी कलेक्टर के कोर्ट में अर्जी लगानी पड़ेगी। किसानों को लगता है कि स्थानीय प्रशासनिक अफसर सत्ता के नाड़े के साथ बंधे होते हैं। ऐसे में वो किसानों के पक्ष में शायद ही खड़े होंगे। कृषि विधेयक को लेकर किसानों में खासा भ्रम की स्थिति है। सरकार अपने आधिकारिक बयान में एमएसपी जारी रखने और मंडियों को बंद न किए जाने का दावा कर रही है, लेकिन नए कानून में यह बात कहीं भी लिखत-पढ़त में नहीं है। ऐसे में किसान चाहें तब भी वो एमएसपी के मामले में वादाखिलाफी पर सरकार को कोर्ट में नहीं घसीट पाएंगे। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि भाजपा के नेता पार्टी के फोरम पर जो बयान दे रहे हैं, उसका कोई कानूनी आधार है ही नहीं। 

कारपोरेट घरानों के लिए लाया गया है किसानों की तबाही का बिल

 वाराणसी। पूर्व विधायक एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय राय कहते हैं कि मोदी सरकार शुरू से ही किसान विरोधी है। यह सरकार कुछ कारपोरेट घरानों के लिए काम कर रही है। नया कृषि विधेयक का किसान कड़ा विरोध नहीं करेंगे, तो अन्नदाता की तबाही तय है। उन्होंने यह भी कहा है कि यह कानून कारपोरेट घरानों की उपज है, जिसमें उनका हित निहित है। कांट्रैक्ट फार्मिंग और समर्थन मूल्य के खात्मे का खेल किसानों की बर्बादी की पटकथा लिखने जा रहा है। ऐसे में किसानों को इस विधेयक का खुलकर विरोध करना चाहिए। कांग्रेस किसानों के साथ खड़ी है और वो काले कानून का देश भर में विरोध करेगी।

Popular posts from this blog

'चिंटू जिया' पर लहालोट हुए पूर्वांचल के किसान

लाइनमैन की खुबसूरत बीबी को भगा ले गया जेई, शिकायत के बाद से ही आ रहे है धमकी भरे फोन

नलकूप के नाली पर पीडब्लूडी विभाग ने किया अतिक्रमण, सड़क निर्माण में धांधली की सूचना मिलते ही जांच करने पहुंचे सीडीओ, जमकर लगाई फटकार