कोविड-19 के दौरान में स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंचा ना होने से शिशु मृत्यु दर में इजाफा

10 में से 8 शिशुओं की मौत जन्म से 7 दिनों के भीतर


चाइल्ड राइट्स ऐंड यू (क्राई) ने बेविनार के दौरान प्रस्तुत किये आंकड़े



जनसंदेश न्यूज़
वाराणसी। 10 में आठ नवजात शिशुओं की मृत्यु जन्म के 7 दिनों के भीतर ही हो गई। यानी 82 प्रतिशत नवजात शिशुओं की मौत, जन्म के एक सप्ताह के भीतर दर्ज की गई। अध्ययन से यह भी पता चला कि सबसे ज्यादा 58 प्रतिशत नवजातों की मौतें घर पर हुई। सेामवार को आयोजित बेविनार में चाइल्ड राइट्स ऐंड यू (क्राइ) ने यह आंकड़े प्रस्तुत किये। 


संस्था के अध्ययन से पता चला है कि निजी अस्पताल में 20 प्रतिशत और सरकारी अस्पताल में 18 प्रतिशत की मौत हुई। निमोनिया और रेस्पिरेट्री डिस्ट्रेस्स सिंड्रोम यानी सांस लेने में तकलीफ इन दो प्रमुख वजहों से सबसे ज्यादा बच्चों की जान गई। निमोनिया से 27 प्रतिशत और रेस्पिरेट्री डिस्ट्रेस्स सिंड्रोम से 24 प्रतिशत नवजात की जान चली गई।


कार्यक्रम को संबोधित करते हुए क्राइ की क्षेत्रीय निदेशक सोहा मोइत्रा ने कहा, शिशुओं को समग्र देखभाल और सुरक्षा प्रदान करने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से क्राइ कौशाम्बी के 60 गांवों, वाराणसी के 50 गांवों (ग्रामीण) और सोनभद्र के 28 गांवों में काम कर रहा है। संस्थान को इस शोध के जरिये नवजात मृत्यु के पीछे के कारणों और इसे रोकने के लिए सिस्टम, समुदाय और व्यक्तिगत स्तर पर किए जा सकने वाली आवश्यक कार्रवाई को गहराई से तब्दील करने की आवश्यकता महसूस हुई। 


उन्होने कहा “यह अध्ययन एक महत्वपूर्ण समय पर आ रही है, जब सिस्टम पहले ही कोविड-19 महामारी द्वारा लाई गई बाधाओं के कारण संघर्ष कर रहा है। इस महामारी ने स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं तक पहुंच के साथ बाल स्वास्थ्य और पोषण को सीधे प्रभावित किया है और गरीब और कमजोर बच्चों तक पहुंचाए जाने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं को सीमित कर दिया है। 
क्षेत्रीय निदेशक सोहा मोइत्रा ने कहा कि कोविड-19 महामारी ने स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच के साथ बाल स्वास्थ्य और पोषण को सीधे प्रभावित किया है। गरीब और कमजोर बच्चों तक पहुंचायी जाने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं को सीमित कर दिया है। 


कार्यक्रम का संचालन करते हुए सेंटर ऑफ सोशल मेडिसिन एंड कम्युनिटी हेल्थ (जेएनयू) की प्राध्यापक और क्राइ की बोर्ड ऑफ ट्रस्टीस की सदस्य प्रोफेसर ऋतु प्रिया ने बताया कि भारत का विश्व में होने वाले जीवित जन्म में 1/5 और नवजात शिशु मृत्यु में 1/4 से अधिक का योगदान है। भारत में 2018 में नवजात शिशु मृत्यु दर 1000 जीवित जन्मों पर 23 था (एस आर एस 2018)। कुल शिशु मृत्यु का 72 प्रतिशत और आधे से ज्यादा 5 साल तक के बच्चों की मृत्यु नवजात काल में आती है, पहले हफ्ते में होने वाली मृत्यु में कुल शिशु मृत्यु का अकेले 55 प्रतिशत हिस्सा है (एस एस आर 2018)।


विस्तारित एएनसी की आवश्यकता पर जोर देते हुए, डॉ नीलम ने कहा “जैसा कि आंकड़ों से पता चलता है कि जन्म के 7 दिनों के भीतर अधिकांश नवजात मृत्यु हो रही है, इस प्रकार, मातृ और बाल स्वास्थ्य को एक साथ एक फ्रेम में देखने की आवश्यकता है, विशेष रूप से जिले और ब्लॉक स्तर पर नवजात मृत्यु दर को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए ये बहुत आवश्यक है। यही नहीं नवजात मृत्यु दर को समाप्त करने के लिए विस्तारित एएनसी की आवश्यकता है ”।


इस मौके पर आयोजित सत्र में वेद प्रकाश, महाप्रबंधक चिकित्सा और स्वास्थ्य (राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन) उत्तर प्रदेश, डॉ. नीलम सिंह - सचिव, वात्सल्य संस्थान (उत्तर प्रदेश) और जन मित्र न्यास संस्थान (उत्तर प्रदेश) की मैनेजिंग ट्रस्टी ने भी अपने विचार साझा किये। 


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