पिता, भाई के बाद बहन भी बनीं कुलपति, पूर्व कुलपति प्रो. एसएस कुशवाहा की पुत्री हैं पूर्वांचल विश्वविद्यालय की नई कुलपतिप्रो. निर्मला एस. मौर्य

तमिलनाडु हिन्दी साहित्य अकादमी की है अध्यक्ष, हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार में उल्लेखनीय योगदान

 

लिख चुकी है आठ पुस्तकें, दो ग्रंथों का किया है संपादन, 160 से अधिक रिसर्च पेपर व लेख प्रकाशित


 

जितेंद्र श्रीवास्तव

वाराणसी। शिक्षा जगत में प्रो. एसएस कुशवाहा का नाम बड़ी ही शिद्दत से लिया जाता है। वह महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ और रांची विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके हैं। सेवानिवृत्त होने के बावजूद वह अपने शिष्यों के साथ आज भी जुड़े हुए हैं। भौतिक विज्ञान के मर्मज्ञ प्रो. कुशवाहा के बड़े पुत्र प्रो. साकेत कुशवाहा वर्तमान में राजीव गांधी यूनिवर्सिटी अरुणाचल प्रदेश के कुलपति है। अब उनकी पुत्री प्रो. निर्मला एस. मौर्य को वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर का कुलपति बनाया गया है। उनकी इस नियुक्ति से समूचे पूर्वांचल में खुशी व्याप्त हो गयी है। प्रो. एसएस कुशवाहा के छोटे पुत्र अनुराग कुशवाहा उत्तर प्रदेश के जाने-माने आर्किटेक्ट है। अनुराग कुशवाहा यूपी के उन गिने-चुने आर्किटेक्टों में से एक है, जो डी-आर्च है।

 

बताते चलें कि उत्तर प्रदेश की राज्यपाल एवं कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल ने शुक्रवार को उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा मद्रास की पूर्व कुलसचिव प्रो. निर्मला एस. मौर्य को वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर का कुलपति बनाया है। प्रो. निर्मला एस. मौर्य की कुलपति पद पर नियुक्ति कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से तीन साल की अवधि के लिए होगी। वर्तमान में प्रो. निर्मला एस. मौर्य तमिलनाडु हिन्दी साहित्य अकादमी की अध्यक्ष है। विगत 30 साल से दक्षिण भारत में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और उत्थान के लिए तमिलनाडु को केंद्र बनाकर वह काम कर रही हैं। भाषा और साहित्य के क्षेत्र में कार्य करना ही उनकी विशिष्ट पहचान है। उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के ग्राम पचोडा में पांच अगस्त 1958 को पूर्व कुलपति प्रो. एसएस कुशवाहा के पुत्री की रूप में वह पैदा हुई और शिक्षा-दीक्षा वाराणसी से पूरी की। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से बीएससी करने के पश्चात हिन्दी साहित्य में रुचि रखने के कारण एमए हिन्दी तथा पीएचडी भी बीएचयू से की। इसी बीच व्यक्तिगत रुचि के कारण मद्रास चली गर्इं। उन्होंने पीएचडी शोध विषय ‘सूर तथा तुलसी के विनय पदों का तुलनात्मक अनुशीलन’ तथा भागलपुर विश्वविद्यालय से ‘हिन्दी भक्ति साहित्य में सौंदर्यबोध’ विषय पर डी. लिट् कर 2001 में उपाधि अर्जित की। 

 

वर्ष 1986 में उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा मद्रास में प्रवक्ता के रूप में उनकी नियुक्ति हुई। उन्होंने प्रचार सभा को लगातार 30 वर्षों तक विभिन्न पदों पर रहते हुए अपनी सेवाएं दी। उनकी मेहनत, ईमानदारी, लगन को देखते हुए समयानुसार उनको उपाचार्या और संस्थाध्यक्ष, कुलसचिव जैसे पदों को संभालने का मौका मिला। संस्थान की अध्यक्ष और कुलसचिव जैसे पदों पर रहते हुए संस्थान को एक नाम मिला और विद्यार्थियों की भीड़ उमड़ी। प्रो. निर्मला एस. मौर्या ने बताया कि मद्रास में रहते हुए मुझे सम्पूर्ण दक्षिण भारत का भ्रमण करने का अवसर मिला तथा दक्षिण के सभी विद्यालयों से जुड़े का भी। सदैव मैंने एक बात महसूस की कि दक्षिण के लोग विशेषकर बच्चे, युवा और महिलाएं हिन्दी सीखना-समझना चाहते हैं। मैंने इसे चुनौती के रूप में स्वीकारा। दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, मद्रास की तरफ से चलाये जाने वाले हिन्दी प्रचार अभियान से जुड़ी। एक तरफ उच्च शिक्षा का स्तर तो दूसरी ओर बेसिक हिन्दी का प्रचार सबसे बड़ी चुनौती थी। बड़ी प्रसन्नता से इस चुनौती को शौक बनाकर एक तरफ उच्च शिक्षा के स्तर पर एमए, एम. फिल., पीएचडी, डी. लिट्, स्नातकोत्तर, पत्रकारिता डिप्लोमा, स्नातकोत्तर अनुवाद डिप्लोमा जैसे पाठ्यक्रम चलाया, तो दूसरी ओर अपने आसपास के लोगों को मुफ्त में हिन्दी सिखार्इं। इस दौरान कठिनाइयां तो बहुत आई, परंतु कहते हैं ना जीवन चुनौतियों से भरा है, इसे खुशी से स्वीकारें, मैंने यहीं किया। 

 

वे बतातीं है कि संस्थानाध्यक्ष रहते हुए मैंने विभिन्न आयु के लोगों को लगातार शिक्षा देकर जीवन में आगे बढ़ने का बढ़ावा दिया। मैंने हमेशा यही प्रयास किया कि किसी भी विद्यार्थी की शिक्षा में कभी कोई बाधा उत्पन्न ना हो। संस्थान के विद्यार्थी सरकारी, गैर सरकारी संस्थानों, रेलवे, एयर इंडिया, बैंकों आदि में ऊंचे-ऊंचे पदों पर कार्यरत है और मुझे खुद पर गर्व है कि मेरे स्वभाव और सकारात्मक दृष्टिकोण के कारण हर विद्यार्थी सभा से जुड़े रहना चाहते हैं। संस्थान के लिए यह गर्व का विषय है कि यहां महिलाओं को बढ़ावा देते हुए उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने योग्य बनाया गया। मेरा लक्ष्य रहा कि हर महिला शिक्षित हो, उम्र को ध्यान में न रखा जाय और अपनी शिक्षा से कम से कम 10 हजार रुपए कमा लें। उन्होंने बताया कि 30 साल के अध्यापन काल में 90 विद्यार्थी एम. फिल, 89 पीएचडी, पांच डी. लिट् की उपाधि पा चुके हैं। करीब 20 शोधकार्य तुलनात्मक है। मेरी आठ पुस्तकें, 160 रिसर्च पेपर व लेख प्रकाशित हो चुके हैं। इनका प्रयोग शोधार्थी अपने शोध में उद्धरण के लिए करते हैं। चेन्नई, वाराणसी, भुज के आकाशवाणी केंद्रों से मैंने लगातार समय-समय पर कार्यक्रम दिए और जीटीवी से भी जुड़ी। 

 

वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर की नवनियुक्त कुलपति प्रो. निर्मला एस. मौर्य ने बताया कि कलाडी, कायेम्बतूर, चेन्नई, धारवाड़, बीएचयू, हैदराबाद की तरफ से चलाए गए रिफे्रशर तथा ओरिएंटेशन कार्यक्रमों में विषय विशेषज्ञ के रूप में आमंत्रण मिला और मैंने प्रतिभागिता भी की। सरकारी अनुदान से संघम साहित्य (तमिल) का हिन्दी में अनुवाद किया गया और मुझे हिन्दी विशेषज्ञ के रूप में लिया गया। उन्होंने बताया कि 1998 में कोचीन विश्वविद्यालय में आयोजित विज्ञान और तकनीकी शब्दावली आयोग की बैठक में भी मैंने भाग लिया। अनेक महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों में बोर्ड आॅफ स्टडी की सदस्य तथा एनएएसी की सदस्य भी रहीं। दिसम्बर 2016 में मैंने एनएएसी कमेटी सदस्य के रूप में भुज (कच्छ) का दौरा भी किया। अंग्रेजी से हिन्दी में ट्राफिक सुरक्षा सीडी का अनुवाद एवं आवाज देने के लिए तमिलनाड़ गर्वनर ने मुझे सम्मानित किया। साथ ही अन्य तमाम सम्मान भी मिले, जिसमें अंतरराष्ट्रीय सम्मान, इंडिया न्यूज की तरफ से उत्तराखंड आईकॉन अवार्ड, दक्षिण भारत हिन्दी परिषद कोल्हापुर की तरफ से, समेकित भारतीय साहित्य परिषद उत्तर प्रदेश, राष्ट्रीय हिन्दी परिषद मेरठ की तरफ से ‘हिन्दी रत्न’, ‘भाषा’ केंद्रीय हिन्दी निदेशालय की तरफ से भारत का प्रतिनिधित्व, इंडो नार्विजन फोरम ओस्लो (नार्वे) की तरफ से सम्मान आदि। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी और दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा मद्रास की तरफ से संयुक्त रूप से साहित्यिक और अध्यापन क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए मुझे सम्मानित किया गया। ये सभी सम्मान दक्षिण भारत में मेरे हिन्दी भाषा व साहित्य तथा तुलनात्मक शोध में अतुलनीय योगदान के लिए दिए गए। 

 

प्रो. निर्मला एस. मौर्य ने बताया कि दक्षिण भारत में हिन्दी अध्यापक के रूप में विद्यार्थियों में हिन्दी सीखने, बोलने, पढ़ने की ललक पैदा करते हुए उन्हें इस क्षेत्र में आगे बढ़ने में मदद की। जबकि प्रोफेसर व अध्यापक के रूप में उच्च शिक्षा के स्तर में सुधार, कार्यशालाओं, संगोष्ठियों, अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों का आयोजन, शोध प्राविधि व आलोचना प्राविधि पर केंद्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा के सहयोग से संस्थान के सभी केंद्रों के प्राध्यापकों के लिए पांच दिवसीय कार्यशाला का आयोजन, दक्षिण भारत में शोध संबंधित पहली कार्यशाला का आयोजन मेरा विशेष योगदान माना जा सकता है। साथ ही स्नातकोत्तर पत्रकारिता डिप्लोमा आरंभ करना भी मेरे विशेष योगदान का हिस्सा रहा। मैंने स्नातकोत्तर अनुवाद डिप्लोमा पाठ्यक्रम पुन: निर्माण व स्तर सुधार किया। समय-समय पर विद्यार्थियों की काउंसिलिंग भी करती रहीं। उन्होंने बताया कि मेरी आठ पुस्तकें प्रकाशित हुई है। जबकि दो ग्रंथों का संपादन भी किया। दक्षिण भारत में एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी छवि बनीं। हिन्दी प्रचार-प्रसार के साथ-साथ ऐसे विद्यार्थियों को मुफ्त शिक्षा व शुल्क की व्यवस्था की, जिन्हें इसकी आवश्यकता होती थी। समय-समय पर जरुरतमंदों की सहायता तथा अनाथाश्रम से जुड़कर वस्त्र, भोजन, खिलौने, पुस्तकें, पैसे आदि से भी सहायता की। जीटीवी की तरफ से प्रसारित ‘छोटी मां’ सीरियल के 50 एपिसोड की स्क्रिप्ट राइटिंग भी की। इन कार्यों से मुझे बेहद आत्मसंस्तुष्टि मिलती है। यह कार्य निरंतर जारी रहेगा। उन्होंने बताया कि न्यूयार्क शहर में आयोजित आठवें वल्ड हिन्दी कांफे्रंस में विदेश मंत्रालय के आमंत्रण पर प्रपत्र प्रस्तुत किया। यूएसए डेनमार्क, स्वीडन एवं न्यूजीलैंड की भी यात्रा की। 

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