विकास दुबे के लिए ‘काल’ बने ‘महाकाल’, दर्शन के लिए पर्ची कटाते हुए हुआ गिरफ्तार

सत्कर्म करने वाले व्यक्ति का कुछ नहीं बिगाड़ पाता काल


बाबा के मंदिर में पापियों के आने से हो जाता है उसका नाश

जनसंदेश न्यूज़
उज्जैन। अवंति में ऐसे हुआ बाबा महाकाल का प्राकट्य महाकाल की महिमा ही ऐसी है कि कोई भी पापी उनकी नजरों से बच नहीं पाता है। कानपुर के गैंगस्टर विकास दुबे के साथ भी ऐसा हुआ। पुलिस के साथ कई दिनों से आंख मिचौली खेल रहे विकास दुबे को आखिरकार महाकाल के मंदिर से पुलिस ने गुरुवार को दबोच लिया। विकास को सुबह मंदिर में दर्शन के लिए 250 रुपये की पर्ची कटाते हुए गिरफ्तार किया गया है। पुलिस से बचते हुए न जाने कब विकास महाकाल की नगरी उज्जैन पहुंच गया और प्रभु की लीला देखिए जैसे ही उसने मंदिर में शरण लेने का प्रयास किया वैसे ही उसे धर लिया गया। 
प्राचीन काल से ही यह मान्यता चली आ रही है कोई भी पापी अगर यहां पर छिपने के इरादे से आता है, बाबा उसे दंड अवश्य देते हैं और एक बार फिर यह साबित हुआ। चलिए आज इसी मौके पर आपको बताते हैं कैसे प्राचीन धर्मनगरी अवंति में हुआ बाबा महाकाल का प्राकट्य अवंति नगरी में ब्राह्मणों का पूजापाठ प्राचीनकाल में उज्जैन को एक बेहद रमणीय अवंति नगरी के नाम से जाना जाता था। यहां आकर सभी जीवों को मोक्ष की प्राप्ति होती थी। भगवान शिव को इस नगरी से बेहद लगाव था। यहां प्राचीन समय में श्रेष्ठ ब्राह्मण रहते थे जो वेदों, पुराणों का अध्ययन करते और धार्मिक अनुष्ठान करते हुए ईश्वर की साधना में अपना समय व्यतीत करते। ये रोजाना पार्थिव शिवलिंग बनाकर शिवजी की पूजा करते थे और सदैव ज्ञानाअर्जन में लगे रहते थे।
उसी दौर में वहां पर रत्नमाला पर्वत पर असुर दूषण का राज चलता था। अधर्मी राक्षस ने कठोर तप करके ब्रह्माजी से वरदान पाकर साधु, संतों और धर्म-कर्म के कार्यों से जुड़े सज्जनों पर हमला बोल दिया। यहां तक कि उसने वेदों का अध्ययन करने वाले ब्राह्मणों के समूह पर हमला कर दिया। दुष्ट राक्षस की माया से चारों दिशाओं में दैत्य प्रकट हो गए। यह देखकर समस्त ब्राह्मणजन घबरा गए और भगवान शिव की आराधना करने लगे। दैत्य दूषण और उसकी माया से प्रकट हुए अन्य असुरों ने जैसे ही ब्राह्मण पुत्रों पर हमला किया, वैसे ही उस स्थान पर भयंकर तेज गर्जना के साथ पार्थिव शिवलिंग के स्थान पर एक विशालकाय गड्ढा हो गया और उस स्थान पर भगवान शिव अपने भयावह रूप के साथ प्रकट हुए और इस रूप को महाकाल नाम दिया गया।
असुरों का नाश शिवजी का यह रूप ब्राह्मणों का रक्षक और सत्पुरुषों का आश्रयदाता है। महाकाल रूप में प्रकट हुए शिवजी ने कहा, दुष्ट दूषण मैं तुझ जैसे दुष्टों के लिए महाकाल बनकर प्रकट हुआ हूं। तुम इन ब्राह्मणों के सत्कर्म के कार्यों में खलल न डालो और यहां से चले जाओ। यह कहकर महाकाल ने दूषण को अपनी हुंकार से ही नष्ट कर दिया। यह देखकर दूषण की बाकी सेना भी भाग खड़ी हुई। यह देखकर तीनों लोकों में खुशी की लहर दौड़ गई और देवता भी प्रसन्न हो गए। आकाश में दुंदुभियां बज उठीं। आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी।  
ब्राह्मणों के सत्कर्मों और पूजा के कार्यों से प्रसन्न होकर महाकाल ने उनसे वरदान मांगने को कहा। सभी ब्राह्मणों ने हाथ जोड़कर भक्ति भाव से ईश्वर से कहा, हे प्रभु आप जन साधारण की रक्षा के लिए सदा यहीं बस जाएं। भगवान ने उनका निवेदन स्वीकार करते हुए कहा कि उस पार्थिव शिवलिंग के स्थान पर बने गड्ढे में स्थापित हो गए और प्राचीन नगरी अवंति महाकाल की नगरी बन गई और इस नगरी के चारों ओर एक-एक कोस भूमि लिंग के रूप में भगवान शिव की स्थली बन गई।  महाकाल के बारे में यह मान्यता है कि सत्कर्म करने वाला कोई भी व्यक्ति यदि महाकाल का भक्त बन जाता है तो काल भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाता। वहीं यदि पापी बाबा के मंदिर में आकर शरण लेने की कोशिश करते हैं तो वह बच नहीं पाते हैं।


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