साहब! अब हम जाये तो जाये कहां? डेढ़ दर्जन लोगों का ढहा आशियाना, करूण क्रंदन से मर्मामत हुए एसडीएम

सार्वजनिक तालाब पर मकान बनाना लोगों पर पड़ा महंगा


कोर्ट के आदेश पर जेसीबी से ढहा आशियाना


अट्ठारह लोग हुए घर से बेघर

जनसंदेश न्यूज़
पड़री/मीरजापुर। स्थानीय थाना क्षेत्र के चौहानपट्टी गांव में बुधवार को कोर्ट के आदेश पर जैसे ही जिला प्रशासन की टीम पहुंची। वहां जेसीबी व फोर्स को देखते ही लोगों में हड़कंप मच गया। एसडीएम सदर गौरव श्रीवास्तव के नेतृत्व में पहुंची 6 थाने की पुलिस तथा राजस्व टीम के साथ एक पाल्टून पीएससी व महिला पुलिस सुरक्षा की दृष्टि से फायर ब्रिगेड के साथ पहुंचे। एसडीएम सदर ने तालाब की जमीन पर बने 18 लोगों की मकान को धराशाई कराया। जिससे 18 परिवार के लगभग दो सौ की संख्या में लोग पूर्ण रूप से घर से बेघर हो गए। कुछ लोग प्राथमिक विद्यालय में शरण लिए, जबकि ज्यादातर लोग अगल-बगल पड़ोसियों के यहां रहने के लिए विवश हुए। 
मामले के संदर्भ में एसडीएम सदर गौरव श्रीवास्तव ने बताया कि चौहान पट्टी गांव निवासी दीपक कुमार सिंह ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल किया था। जिसके संदर्भ में कोर्ट ने 6 बीघा 13 बिस्वा तालाब की जमीन पर 18 लोगों के खिलाफ जनहित याचिका दायर किया था। जिसके सापेक्ष उच्च न्यायालय के आदेश पर पहले 2018 में बेदखली का आदेश पारित हुआ। जिसके बाद कई बार संबंधित लोगों को नोटिस दी गई और 8 बार पैमाइश भी कराकर तालाब पर अतिक्रमण करने वालों को चिन्हित किया गया। 
जिसके बाद नाम खारिज करते हुए तहसीलदार सदर, 122 बी धारा 67 की कार्रवाई की गई। बार-बार नोटिस देने के बाद भी लोगों द्वारा अतिक्रमण नहीं हटाने पर बुधवार को चार जेसीबी के माध्यम से घरों को ढहाया गया। जबकि तालाब की जमीन पर बनाए गए। मकान मालिक उमाशंकर दुबे, श्याम कुमारी देवी, शैलेश दुबे, संतोष यादव, बलिराम यादव, आदि लोगों ने बताया कि यह जमीन हम लोग रजिस्ट्री कराए थे। रजिस्ट्री कराने के बाद मकान बनाया गया। 
इन लोगों की बात मानें तो 6 बीघा 13 बिस्वा जमीन सन 1959 में पट्टा लाल बहादुर, परमा, राम सकल के नाम के नाम था। जिसके बाद 1960 में इन लोगों के नाम सिरधरी हुआ, 1961 में भूमिधरी का दर्जा दिया गया। जबकि 1963 - 64 में चकबंदी के दौरान तीनों लोगों के नाम चक कटा। जिसके बाद छोटा-छोटा पार्ट करके उसी जमीन में 18 लोगों को रजिस्ट्री किया गया। जिसमें लोगों ने अपना अपना मकान बनवाया। जबकि जिला प्रशासन की बात मानें तो जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान यह जमीन महंत परमानंद गिरी के तालाब की जमीन पाई गई। जिसके संदर्भ में बुधवार को यह कार्यवाही की गई।


अपना आशियाना ढहते देख नहीं रोक पाए लोग आंसू
पड़री। खून पसीने की कमाई से किसी तरह लोगों ने अपना आशियाना बनाया था। कोई ईंट की दीवाल तथा पटिया की छत के नीचे रह रहा था, तो कोई सीमेंट, चादर व स्टील चादर के नीचे अपना जीवन यापन कर रहा था। वहीं बुधवार को पहुंची जिला प्रशासन के साथ जेसीबी ने सभी के घरों को ढहा दिया। अपने घरों को जेसीबी से अपने सामने गिरता देख लोगों के आंखों के आंसू नहीं थमा। बूढ़े हो या बच्चे बस एक ही बात कह रहे थे, बरसात के इस मौसम में आखिर हम जाएं तो जाएं कहां। बेदखल हुए लोगों में बलिराम यादव यादव, शिवकुमार, दशरथ, जोखू, रघुनाथ यादव, मित्तल यादव, छविनाथ यादव, अमरनाथ यादव, संतोष यादव, छब्बू यादव, राजेंद्र प्रसाद यादव, राजेंद्र प्रसाद यादव, शैलेश कुमार आदि लोग वर्तमान समय में अपने परिवार के साथ कुछ लोग प्राथमिक विद्यालय में शरण लिए तो कुछ लोग अगल बगल रहने को विवश हो गए हैं।


लोगों का घर गिरता देख मर्माहत हुए एसडीएम सदर
पड़री। बुधवार को अतिक्रमण हटाने पहुंचे एसडीएम सदर गौरव श्रीवास्तव ने जैसे ही लोगों के आशियाना उजड़ने का कार्यक्रम शुरू किया। उसी समय बच्चे, लड़के, महिलाएं बुजुर्ग आदि का करुण क्रंदन सुनकर एसडीएम सदर मर्माहत हो गए। लेकिन कोर्ट के आदेश व न्याय को देखते हुए लोगों के घर को जमीनदोंज कराएं। बार-बार लोगों को आश्वस्त किए कि सभी लोगों को विशेषकर भूमिहीन को आवासीय पट्टा गांव में ही देने की बात कही।


भारी संख्या में मौजूद रही फोर्स
पड़री। कोर्ट के आदेश पर एसडीएम सदर गौरव श्रीवास्तव के नेतृत्व में तहसीलदार सदर सुनील कुमार, नायब तहसीलदार योगेंद्र शरण शाह तथा संतोष कुमार कानूनगो देवी शंकर श्रीवास्तव तथा क्षेत्रीय लेखपाल प्रेम प्रकाश तिवारी समेत दस अन्य लेखपाल मौजूद रहे। वहीं सुरक्षा की दृष्टि से पड़री पुलिस, चुनार पुलिस, कछवां, देहात कोतवाली, मड़िहान, अहरौरा पुलिस के साथ सीओ सदर संजय सिंह, सीओ चुनार सुशील कुमार यादव तथा दो दर्जन से अधिक महिला पुलिस समेत पीएससी व भारी भरकम फोर्स मौजूद रही।


साहब हमरउ बतिया सुनई हमार रजिस्ट्री ह... कहां रही लेके परिवार साहब
पड़री। यह बात किसी और का नहीं बल्कि तालाब के जमीन पर अपना आशियाना बनाए हुए लोगों की है। जो एसडीएम सदर से समेत मौके पर पहुंचे आला अधिकारियों से अपना फरियाद करते रहे। लेकिन अधिकारियों ने कोर्ट का हवाला देते हुए उनकी एक भी बात न सुनी और उनके मकान को जेसीबी लगाकर गिराना शुरू करा दिया। जबकि उमाशंकर दुबे ने बताया कि 1979 में हमने बेचन दुबे से यह 13 विश्वा 4 धुर जमीन रजिस्ट्री कराया था। जिसके बाद 1990 - 91 में 8 बिस्वा जमीन लिया था। जिसका रजिस्ट्री कराना बाकी था। इसी प्रकार उमाशंकर दुबे, श्याम कुमारी, शैलेश दुबे बलिराम यादव आदि ने दूसरे से जमीन लेने की बात व रजिस्ट्री के कागजात दिखाते रहें लेकिन उनका सपना पूरा नहीं हो सका और आशियाना उजड़ते देखना उनकी मजबूरी रही।


ऐसा जानते तो क्यों कराते रजिस्ट्री
पड़री। ग्रामीणों की बात मानें तो 1959 से लेकर आज तक उस जमीन का मालिकाना हक राजस्व विभाग के अभिलेखों के अनुसार सिरधरी, भूमिधरी के बाद चकबंदी विभाग द्वारा तीनों के नाम चक काट दिया गया था। ग्रामीणों की बात मानें तो कहीं ना कहीं इस जमीन को लेकर पहले से ही घोर अनियमितता बरती गई, नहीं तो यह बेचारे भारी भरकम मकान क्यों बनवाते तथा अनावश्यक स्टांप पेपर आदि का खर्च क्यों करते।


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