लमही के ‘लाल’ आज होते तो क्या लिखतें....


महान साहित्यकार हिंदी के पितामह माने जाने वाले मुंशी प्रेमचंद जी आज भले ही सशरीर हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी कहानियां हमारे बीच आज भी जिंदा है और हमेशा रहेगी। उनका लिखा आज भी प्रासंगिक और ज्वलंत है, ऐसा लगता है कि उन्होंने आज ही लिखा हो। वह एक जादुई रचनाकार थें। प्रेमचंद जितने सशक्त उपन्यासकार और संदेशवाहक थे, उतने ही सशक्त पत्रकार भी थें। गरीबों और सर्वहारा वर्ग के महत्व के प्रचारक थे। 
प्रेमचंद द्वारा लिखा गया उपन्यास ‘बलिदान’ इस उपन्यास का मुख्य पात्र हरक सिंह अपनी आर्थिक स्थिति खराब हो जाने के कारण ना जाने कब ‘हरकू’ बन जाता है, लेकिन उसके व्यक्तित्व में वह गंभीरता बनी रहती है जो कभी हरक सिंह में हुआ करती थी। उनके उपन्यासों को पढ़ते हुए ऐसा लगता है कि हम आज की ही तो कहानी पढ़ रहे है। कभी-कभी तो लगता है कि कुछ बदला ही नहीं बदला है तो, केवल शहर का रंग और शहर  का रहन-सहन आज लालटेन की जगह लोगों के घरों में एलईडी बल्ब दिखाई पड़ते हैं, यदि आज प्रेमचंद जीवित होते तो वह क्या एलईडी बल्ब पर लिखते। काशी को क्योटो बनाया जा रहा है इस पर भी लिखते, जरूर लिखतें।



(Tulasi Varma)


वें लिखते काशी के सांसद और प्रधानमंत्री को उनके विचारों को, उनके द्वारा किए गए कार्यों को और किए जा रहे कार्यों को। मुंशी जी के दो बैल जिनकी कथा हम पढ़ते थे, वह आज कहाँ है? अब वह खेतों में दिखाई नहीं देते हैं, हाँ उनकी जगह अब ट्रैक्टर ने ले ली है। आज वह बैल सिर्फ हमारी यादों तक ही सीमित है। सन् 1936 में प्रकाशित हुई रचना ‘कफन’ आज भी भुलाए नहीं भूलता। किस प्रकार गरीब आवारा माधव के पास उसकी सीधी-साधी पत्नी गोधिया जो घर में कराह रही होती है कि मृत्यु के बाद कफन तक के पैसे नहीं होते और वह पूरे मोहल्ले से उधार ले चुका था। 
अब उसे कोई भी उधार नहीं देना चाहता था, लेकिन उसकी मृत पत्नी को देखकर सबका मन पसीज जाता है और उसको ‘कफन’ के पैसे मिल जाते हैं। मन में यह ख्याल आता है कि चलो बुधिया मरी तो मरी कम से कम हम लोगों का भला करके गई तो क्या आज के जमाने में भी माधव होगा और वो ऐसी ही अपनी पत्नी के मरने का इंतजार कर रहा होगा। कहीं इस नवयुवक माधव ने तीन तलाक वाले पति के रूप में तो जन्म नहीं ले लिया है जो तलाक-तलाक-तलाक बोलकर अपनी बीवियों को जिंदा ही मरने के लिए छोड़ देते हैं, खैर अब तो तीन तलाक भी खत्म हो गया है और अमान्य भी घोषित हो चुका है मुझे पूर्ण विश्वास है कि यदि आज प्रेमचंद जी जीवित होते तो जरूर इस पर भी कुछ लिखते जरूर और हमारी आने वाली पीढ़ियों के पास कुछ और साहित्यिक संपत्ति एकत्रित हो जाती। 
वह लिखते घाटों के बदलते हुए स्वरूपों पर, डिजिटल हो चुके युवाओं पर, आश्रम में रहने वाले बूढ़े मां-बाप पर, बच्चों पर बढ़ते दवाओं पर, राजनीतिक उलटफेर पर और क्या गजब लिखते। यदि आप भारत के समस्त जनता का आचार-विचार रहन-सहन आशा आकांक्षा जानना चाहते हैं, तो उनसे उत्तम परिचायक कोई और नहीं हो सकता। प्रेमचंद के उपन्यास हिंदी साहित्य में ही नहीं बल्कि संपूर्ण भारतीय साहित्य में मील के पत्थर हैं।


-तुलसी वर्मा
शिक्षार्थी, महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ वाराणसी 


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