जांच हुई नहीं, कोरोना पॉजीटिव घोषित कर दिए गए ‘जनसंदेश’ के राजकुमार

फर्जी आंकड़ेबाजी का खेल, बढ़ा रहा लोगों की मुसीबत, पुलिस महकमा भी तरेर रहा आंख


नकली किट, फर्जी आंकड़ेबाजी के खेल ने बढ़ाई बनारसियों की मुसीबत


कोरोना के नाम पर दुधारू गाय बन गए हैं पीएम के संसदीय क्षेत्र के लोग



जनसंदेश न्यूज़
वाराणसी। कोविड-19 की फर्जी आंकड़ेबाजी बनारस के अफसरों के लिए नौकरियों में वरदान साबित होने लगी है। बस उनको चाहिए नाम, पता और फोन नंबर। स्वास्थ्य विभाग के अफसर कोरोना की झूठी पटकथा खुद रच देंगे। उसके बाद आप खुद झेलिए संत्रास।
इसका ताजा उदाहरण है ‘जनसंदेश टाइम्स’ कार्यालय। बीते 20 जुलाई को कोरोना की शिकायत पर कर्मचारियों की जांच हुई थी। इसमें राजकुमार कुशवाहा नामक एक आपरेटर की जांच हुई ही नहीं, क्योंकि स्वास्थ्य विभाग के पास जांच किट खत्म हो गयी थी। हैरान कर देने वाली बात यह है कि करीब 10 दिन बाद स्वास्थ्य विभाग ने एक प्रेस रिलीज जारी किया, जिसमें दर्शाया गया है कि राजकुमार कुशवाहा कोविड-19 से गंभीर रूप से पीड़ित है और इनका इलाज कराने की तत्काल जरुरत है। 
फर्जी रिपोर्ट के आधार पर स्वास्थ्य विभाग ने राजकुमार और उनके परिवार वालों की मुश्किलें बढ़ा दी है। पिछले दो दिनों से यह परिवार डरा हुआ है। इस डर की वजह यह है कि सुबह से शाम तक आने वाले लगातार मोबाइल फोन। कभी नगर निगम, कभी स्वास्थ्य विभाग, कभी कलेक्ट्रेट, कभी पुलिस विभाग, कभी दिल्ली व कभी लखनऊ से। अब तक 50 से अधिक फोन रिसीव कर चुके हैं जबकि इनकी कोरोना की जांच हुई नहीं है। पुलिस महकमा राजकुमार की टोह में निकला हुआ है और बार-बार फोन करके कहा जा रहा है कि अपना पता बताओ। बांस-बल्ली गाड़नी है और हॉट-स्पॉट बनाना है। राजकुमार कुशवाहा को समझ में नहीं आ रहा है कि जब उन्होंने जांच ही नहीं करायी है तो पुलिस महकमा उनके यहां बांस-बल्ली गाड़ने पर क्यों अमादा है। 
उल्लेखनीय है कि ‘जनसंदेश टाइम्स’ कार्यालय में स्वास्थ्य विभाग की टीम ने जिस सात लोगों को कोरोना पॉजीटिव बताया था, उनमें कोरोना का कोई लक्षण ही नहीं थे। एक हफ्ते के अंदर सभी को डॉक्टरों ने अस्पतालों से घर भेज दिया। ‘जनसंदेश टाइम्स’ कार्यालय में कोई भी ऐसा कर्मचारी नहीं है, जो कोविड के खतरे के जद में हैं। राजकुमार कुशवाहा के मामले में प्रशासन की बाजीगरी और स्वास्थ्य के आंकड़ेबाजी की पोल खुलकर सामने आ गयी है। स्वास्थ्य विभाग का कोई अफसर यह बताने को तैयार ही नहीं है कि जब कोरोना की जांच ही नहीं हुई तो पॉजीटिव कैसे आ गया? इस बारे में अब स्वास्थ्य विभाग का बड़ा खेल उजागर हुआ है। मगर अधिकृत रूप से बयान देने को कोई तैयार ही नहीं?


बीमारी से कम सरकारी नुमाइंदों से ज्यादा परेशान हुए लोग
वाराणसी। अगर आप कोरोना के जद में हैं तो सिर्फ यह बीमारी कम परेशान करती है, ज्यादा परेशान कर रहे हैं बनारस के सरकारी नुमाइंदें। शहर के तमाम अस्पतालों में भर्ती कोरोना मरीजों से सुबह-सुबह शुरू हो रही है पूछताछ। एक-दो, तीन-चार बार नहीं, दर्जनों मर्तबा। किसिम-किसिम के सवाल पूछे जा रहे हैं। इतने तीखे और सुलगते सवाल पूछे जा रहे हैं कि अस्पताल में ही रोगियों के प्राण निकल जाएं। स्वास्थ्य विभाग आंगनबाड़ी कार्यकत्री से लेकर आशा कार्यकत्री, एएनएम, हेल्थ इंस्पेक्टर, चिकित्साधिकारी और शहरों में बनाए गए नियंत्रण कक्ष से मरीजों के फोन पूरे दिन घनघना रहे हैं। लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि कब दवा कौन सी खानी है। जवाब देते-देते लोगों के गले सूखने लगे हैं।


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