छोटी मंडियों ने छीनी पहड़िया के आढ़तियों की नींद, पहड़िया मंडी नहीं पहुंच रहे आम के थोक खरीदार

इस मंडी में माल हो रहा डंप, किसान अब सीधे छोटी मंडियों का कर रहे रुख


छोटी मंडियों में कैश पेमेंट का लाभ, पहड़िया मंडी में टैक्स देने से बच रहे हैं


बुधवार को पहड़िया मंडी में 10 से 25 रुपये प्रति किलो तक बेचने पड़े आम



सुरोजीत चैैटर्जी
वाराणसी। इस बार फलों के राजा आम से बाजार पटा हुआ है। लोग जमकर इसका स्वाद ले रहे हैं लेकिन पहड़िया मंडी के आढ़तियों की नींद उड़ी हुई है। कोरोना महामारी के चलते जहां इस मंडी में आम खरीदने वाले कारोबारियों की संख्या घट गयी है वहीं, किसान और व्यापारी पहड़िया मंडी आने के बजाय सीधे छोटी मंडियों में जाकर आम बेच रहे हैं। फलस्वरूप पहड़िया मंडी में आम डंप हो रहा है।
हाल में मौसम के बदले तेवर के साथ तेज आंधी-तूफान आदि के कारण आशंका जतायी जा रही है कि अबकी आम की फसलों को काफी नुकसान पहुंचा है, इसलिए बाजार में या तो आम कम दिखेंगे या अधिक रेट पर मिलेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मार्केट में भरपूर मात्रा में न सिर्फ पके आम उपलब्ध हैं बल्कि अचार-मुरब्बा आदि बनाने के लिए भी आम की पर्याप्त उपलब्धता है।
पूर्वांचल की सबसे बड़ी फल मंडी पहड़िया में स्थानीय बनारसी लंगड़ा आम के अलावा दशहरी, सफेदा, चौसा आदि आम उपलब्ध रहते हैं। यह आम लखनऊ, बाराबंकी, मुरादाबाद, मेरठ, बरेली, अमरोहा, सहारनपुर, अमेठी, सुल्तानपुर और फाफामऊ आदि जनपदों से यहां लाए जाते हैं। आमतौर पर पहड़िया मंडी में माल पहुंचते ही ट्रकों पर लदे आम का सौदा तुरंत हो जाता है। लेकिन इस बार तस्वीर कुछ दूसरी ही है। आढ़तियों की मानें तो प्रतिदिन औसतन छह ट्रक माल डंप हो रहा है। फलस्वरूप दूसरे या तीसरे दिन तक यह आम काला पड़ने के चलते कम रेट पर बेचने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है।
पहड़िया मंडी में आम डंप होने की कई वजहें बताई जा रही हैं। उनमें से सबसे प्रमुख कारण कोरोना महामारी के चलते इस मंडी में आम के थोक खरीदार बहुत कम संख्या में पहुंच रहे हैं। दूसरी ओर, शासन से मिली छूट के बाद किसानों के बागों से आम सीधे जनपद की छोटी मंडियों में पहुंचाया जा रहा है। पहड़िया मंडी में जहां टैक्स देना पड़ता है वहीं, छोटी मंडियों में टैक्स देने की समस्या नहीं है। जनपद में चंदुआ सट्टी, पंचकोसी, नउआपोखर, सुदंरपुर, लमही, भोजूबीर, कछवा, राजातालाब और रामनगर आदि छोटी मंडियों में सीधे आम पहुंचाए जा रहे हैं।



इन छोटी मंडियों में नकद का कारोबार होता है जबकि पहड़िया मंडी में सामान्यतया उधार पर आम की खरीद चलती है। किसान या आम सप्लायर उधार के बजाय कैश पेमेंट पसंद करता है। साथ ही पहड़िया मंडी में कटने वाले टैक्स से भी उसे निजात मिल जाती है। हालांकि छोटी मंडियों माल बेचने पर किसानों को कोई विशेष लाभ नहीं होता लेकिन नकद कारोबार के कारण आढ़तियों का पैसा फंस जाता है। इधर, वर्तमान स्थिति को देखते हुए पहड़िया मंडी में न सिर्फ आढ़तिये प्रभावित हो रहे हैं बल्कि पल्लेदार और लोडिंग-अएनलोडिंग घटने से ट्रक मालिकों, टैंपो ट्रॉली, ठेला चालकों और माल ढोने वाली छोड़ी गाड़ियों पर भी असर पड़ रहा है।
यहां आम लोडिंग-अनलोडिंग कम हो गयी है। जिले के प्रमुख बाजारों में दुकान लगाकर आम बेचने वालों के यहां माल जल्दी बिक जाता है। ऐसे व्यवसायी मंडियों से 35 रुपये से लेकर 42 रुपये प्रति किलो की दर तक आम उठा लेते हैं। रिटेल में यह आम 40 रुपये से लेकर 60 रुपये तक बिक रहे हैं। पहड़िया मंडी में बीते सोमवार को पहुंचा और डंप हो चुका आम बुधवार को दस रुपये से लेकर 25 रुपये प्रति किलो की दर से बेचने के लिए बाध्य होना पड़ा। आढ़तियों के यहां 28 सौ रुपये से लेकर 35 सौ रुपये प्रति कुं. की दर से आम की खरीद होती है।



थोक में आम खरीदने के बाद उनकी छंटनी कर अलग-अलग रेट निर्धारित किये जाते हैं। उनमें यदि भींगे हुए, दाग लगे या अधिक पके हुए आम हों तो वह जल्द खराब होने लगते हैं। इस वजह से भी कारोबारी को नुकसान उठाना पड़ता है। पहड़िया मंडी के आढ़ती राजेंद्र सिंह, दिनेश सोनकर, किशोर कपूर, हीरालाल सोनकर आदि के मुताबिक अधिकांश आम यहां आने के बजाय सीधे छोटी मंडियों में पहुंचने और पहड़िया में खरीदारों की आवक कम होने के चलते कारोबार प्रभावित हो रहा है।


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