सात समंदर पार सरोद की झनकार बिखेर रहे हैं पंडित विकास महाराज

सरोद के तार और तबले की लय की अनूठी युगलबंदी देख हर कोई हो जाता है हैरान



विजय विनीत


वाराणसी। सरोद के सुरों से श्रोताओं को झुमा देने वाले सरोद वादक पंडित विकास महाराज बनारस के कबीरचौरा की गलियों में पले-बढ़े और संगीत का ककहरा सीखा। अब वो सात समंदर पार सरोद की झनकार बिखेर रहे हैं। महाराज जर्मनी, आस्ट्रेलिया, फ्रांस, हालैंड और यूनाइटेड स्टेट के तमाम विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफेसर के तौर पर भारतीय शास्त्रीय संगीत का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।



पंडित विकास महाराज उन दिनों दुनिया भर में चर्चा में आए जब उन्होंने न्यूजीलैंड के एक्सप्लोर फेस्टिवल में होली वाटर बैंड कंसर्ट के जरिए गंगा की व्यथा दर्शायी। बनारस घराने के इस ख्यात कलाकार को न्यूजीलैंड सरकार ने अपनी संसद में सरोद बजाने के लिए आमंत्रित किया। अमेरिका, जर्मनी समेत तमाम देश इन्हें सम्मानित कर चुके हैं।



पंडित विकास महाराज अपने पिता नन्हकू महाराज के ही शिष्य थे, जिन्होंने बनारस घराने के दिग्गज संगीतकारों पंडित नन्हकू महाराज और चाचा किशन महाराज से शास्त्रीय संगीत की तालीम हासिल की। इन संगीत कला साधकों ने उन्हें परंपरागत तरीके से सरोद वादन में दक्षता हासिल कराई। पंडित विकास महाराज की सबसे बड़ी खासियत है उनकी सिखाने की कला। इनकी विरासत के लगातार प्रवाह और अनगिनत महत्वाकांक्षी शिष्यों ने इनके हुनर की ख्याति दुनिया भर में पहुंचाई। सरोद को ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए इन्होंने पश्चिमी देशों के संगीतकारों को जोड़ा।



शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में पंडित विकास महाराज का योगदान अत्यंत सराहनीय है। आज इन्हीं के नक़्शे कदम पर चल कर इनके दोनों पुत्र, प्रभास महाराज (तबला) और अभिषेक महाराज (सितार-गायन) भी अपनी बुलंदियों को छू रहे हैं। पंडित विकास महाराज का जन्म साल 1957 में बनारस घराने के प्रसिद्ध महाराज परिवार में हुआ था। बनारस का यह ऐसा संगीत घराना है जो 500 साल की महान वंश परम्परा में विरासत को संजोए हुए है। इसी घराने की 14वीं पीढ़ी हैं पंडित विकास महाराज। वो बताते हैं, -हमने अपने पिता तबला ऋषि पंडित नन्हकू महाराज और मामा पद्मविभूषण पंडित किशन महाराज से तबले की लयकारी और पंडित राजेश चंद्र मोइत्रा से सरोद की तकनीकी सीखी।



पंडित विकास महाराज ने महज नौ साल की उम्र में एकल सरोद वादन का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन किया था। एक छोटे से बालक की सरोद पर अनूठी लयकारी और तंत्रकारी सुनकर बनारस घराने के दिग्गज संगीतज्ञ दंग रह गए। पंडित विकास महाराज उत्तर प्रदेश के ऐसे पहले सरोद वादक हैं जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है। इन्हें न्यूज़ीलैण्ड के संसद भवन और नॉर्वे स्थित नोबेल हाउस में सरोद वादन के साथ ही साथ जर्मन संसद चिन्ह से सम्मानित किया जा चुका है।



भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा आयोजित भारत महोत्सव के तहत स्विट्ज़रलैंड के ज़्यूरिख एवं जेनेवा, स्वीडन के स्टॉकहोम और न्यूज़ीलैण्ड के ऑकलैंड व वेलिंग्टन शहर में सरोद वादन से दर्शकों में गहरी छाप छोड़ चुके हैं। पंडित विकास महाराज ने फिल्म नागोशी (ऑस्कर पुरस्कार के लिए नामित), होलीवाटर प्रोजेक्ट,  गरम मसाला समेत कई फिल्मों में संगीत निर्देशन कर चुके हैं। महाराज ने साल 1982 में जर्मनी के 5वें राष्ट्रपति कार्ल कर्स्टन के विशेष निमंत्रण पर म्यूनिख, जर्मनी में अंतर्राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन संगोष्ठी के दौरान सरोद वादन कर, भारत की प्राचीन संस्कृति एवं संगीत का प्रतिनिधित्व किया। अब तक वो दुनिया भर के संगीतकारों के साथ 6000 से ज्यादा मंच प्रस्तुतियां दे चुके हैं।  



उत्तर प्रदेश सरकार ने पंडित विकास महाराज को यश भारती से सम्मानित किया है। इसके अलावा जर्मन में लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार (2016), कर्मवीर सम्मान-नई दिल्ली (2015), राइट लाइवलीहुड अवार्ड-स्वीडन (नामित) (2015), संतकेशव दास रत्न सम्मान-बिहार सरकार (2012), विद्या-भूषण-उत्तर प्रदेश (2007), गुरु सम्मान-उत्तर प्रदेश (2005), डॉ.सर्वपल्ली राधा कृष्णनन सम्मान-नई दिल्ली (2001), पहरुआ सम्मान-उत्तर प्रदेश (2001), सरोद शिरोमणि-मॉरिशस (1999), भारतीय सांस्कृतिक राजदूत-जर्मनी (1997), सिटी रत्न-ज़ीटीवी समूह-भारत (1997), सरोद मेस्ट्रो-उत्तर प्रदेश (1997), सरस्वती सम्मान-नई दिल्ली (1998), सरोद मेस्ट्रो-जर्मनी (1986) एवं सरोद के जादूगर-झारखण्ड (1981) समेत कई सम्मान और पदक से नवाजे जा चुके हैं।


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