Father's Day Special : सामाजिक के साथ नैतिक जिम्मेदारी निभाने वाले पिता
जून के तीसरे रविवार को पितृ दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को पिता की भूमिका, प्यार और सम्मान के प्रति समर्पण के रूप में मनाया जाता है। इस दुनिया में हमंे लाने का श्रेय जितना माता का होता उतना ही पिता का भी होता है। हम सब के जीवन में पिता का बहुत बड़ा योगदान है, अगर पिता की छाया जीवन में न पड़े तो जीवन एक कटी पतंग के समान हो जाता।
पिता से पहचान जुडी होती इस पहचान के बाद तब हमारी पहचान जुड़ती। माता का प्यार सर्वाेपरि तो है, पर पिता का प्यार भी कम नहीं। पिता का समर्पण, त्याग, अनुशासन जीवन को सुसज्जित करता है।
पिता की जिम्मेदारी निभा पाना इतना आसान नही। एक पिता ही अपनी पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों के साथ-साथ नैतिक जिम्मेदारियों को भली-भांति निभाता है। दिन-रात परिवार की देखभाल, परिवार को क्या चाहिए, क्या नही उसकी चिंता, बच्चों के सपनों की फिकर एक पिता ही इसका ध्यान रख सकता है। पिता नीम की तरह कड़वा जरूर होता पर उसकी छाया ठंडी होती है।
पिता की अहमियत, महत्वता से हम सब भली-भांति परिचित है पर न जाने हम में से ही कुछ लोग सब जानते हुए भी जब पिता जिम्मेदारियों को पूरा कर थक जाता है तो उसे बोझ समझने लगते, जिस पिता के योगदान से हम जीवन में कुछ कर पाए, अपने पैरों पर खड़े हो पाए, आज उसी पिता को जब हमारी जरुरत जब वह जिन्दगी के आखि़री पड़ाव पर हो उसे भार समझे ऐसे दुर्विचार को खत्म करने की जरुरत है और पितृ दिवस को उमंग और हर्षाे उल्लास से जरुरत है। पितृ दिवस पिता के प्रति कृतज्ञता का अनुष्ठान है, उनके योगदान का सम्मान दिवस है।
एक कविता पिता को समर्पित
हैं बाबा, पिता, जनक जिनको कहते,
हैं जीवन में खुशियां वो ही भरते।
बचपन में कंधे पर उठा हमें बैठा लिया,
धीरे-धीरे अपने पग पे चलना हमको सीखा दिया,
पहला कदम हम जिनके संग चलते,
हैं बाबा, पिता, जनक जिनको कहते।
बाहर की दुनिया से परिचय उसने कराया है,
चलना कैसे पथ पर है ये हमको बताया है,
अनुशासन का पाठ हमको पढ़ाते
हैं बाबा, पिता, जनक जिनको कहते।
अपने सपनें भुला कर हमारा सपना सजाया है,
हमारी खुशियों के ख़ातिर परेशानियां उठाया है,
हैं अम्बर से ऊंचा दर्जा देते,
हैं बाबा, पिता, जनक जिनको कहते।
आयुषी तिवारी
शिक्षार्थी, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी