‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ कार्यक्रम युवाओं को जोड़ने का बेहतरीन प्लेटफार्म-प्रो. साकेत कुशवाहा







दुनिया भर में प्रभावशाली संगीत है भारतीय शास्त्रीय संगीत : डा. श्रोती 

 

एक-दूसरे की संस्कृति से जुड़ युवा दे रहे सृजनशीलता का परिचय

 

एनएसएस-बीएचयू के ऑनलाइन आयोजन की तीसरी कड़ी

 

 


जितेन्‍द्र श्रीवास्‍तव

वाराणसी। राजीव गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय ईटानगर, अरुणाचल प्रदेश के कुलपति प्रो. साकेत कुशवाहा ने कहा कि मौजूदा समय में संस्कृतियों के आदान-प्रदान का आॅनलाइन सकारात्मक कार्यक्रमों का विशेष महत्व है। इसको रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे में युवा एक-दूसरे की संस्कृति से जुड़ कर सृजनशीला का परिचय दे रहे हैं। वह राष्ट्रीय सेवा योजना-काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की तरफ से ‘आत्मनिर्भर भारत : जागे युवा-जागे भारत’ कार्यक्रम शृंखला में तीसरी आॅनलाइन राष्ट्रीय युवा संगीत सम्मेलन में मुख्य अतिथि थे। 

कुलपति प्रो. साकेत कुशवाहा ने कहा कि युवाओं को अपनी सांस्कृतिक विरासत से जोड़ने और भारतीय संस्कृति को ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ कार्यक्रम के माध्यम से भारत भर के विभिन्न राज्यों में युवाओं तक पहुंचाने का यह एक महत्वपूर्ण प्रयास ही नहीं बेहतरीन प्लेटफार्म है। ऐसे कार्यक्रम सदैव आयोजित होने चाहिए। विशिष्ट अतिथि भारत सरकार के युवा कार्य एवं खेल मंत्रालय राष्ट्रीय सेवा योजना के क्षेत्रीय निदेशक डा. अशोक श्रोती ने कहा कि भारतीय शास्त्रीय संगीत दुनिया भर में एक प्रभावशाली संगीत है, जिसके माध्यम से वैज्ञानिक और चिकित्सक असाध्य रोगों की चिकित्सा के लिए उसके प्रयोग पर शोध कर रहे हैं। 

उत्तर प्रदेश सरकार के विशेष कार्याधिकारी और राज्य जनसंपर्क अधिकारी डा. अंशुमाली शर्मा ने कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की। अध्यक्षता करते हुए मिथिला विश्वविद्यालय के मंच कला संकाय के पूर्व संकाय अध्यक्ष प्रो. लावण्य कीर्ति सिंह काव्या ने कहा कि संगीत एक साधना है, जिसके लिए अभ्यास की आवश्यकता होती है। इसके पूर्व आशेष नारायण मिश्र के तबला वादन से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। पुणे के युवा कलाकार पूर्णेश भागवत ने शास्त्रीय गायन की प्रस्तुति की। संगीत सम्मेलन की अंतिम प्रस्तुति वाराणसी के युवा कलाकार प्रांजल सिंह ने राग यमन में अलाप, मध्य लय और द्रुत में बांसुरी वादन की प्रस्तुति की। कार्यक्रम समन्वयक डा. बाला लखेन्द्र ने वेबिनार की विस्तृत जानकारी प्रदान की। स्वागत प्रो. प्रकाश चौधरी ने किया। संचालन डा. बाला लखेन्द्र ने किया। धन्यवाद डा. चिन्मय राय ने दिया। 

 

 






 


 



 



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