व्यापारी बोले, वेतन कैसे दे जब बोहनी तक नहीं हुई, लॉकडाउन के कारण आर्थिक संकट से जूझ रहा एमएसएमई सेक्टर
कोरोना संक्रमण से हुए लॉकडाउन के चलते उद्यमियों की हालत खस्ता
जनसंदेश न्यूज़
वाराणसी। वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण के चलते लॉकडाउन हुए दो माह से अधिक समय बीत गया है। हालत यह है कि अब गरीबों, मजदूरों के साथ-साथ उद्यमी और कारोबारियों की स्थिति खराब होने लगी है। उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि आखिर कर्मचारियों को वेतन कैसे दे, जब बोहनी तक नहीं हुई है।
जानकारों की मानें तो वाराणसी में एमएसएमई सेक्टर में 50 हजार से ज्यादा यूनिटें हैं। इन यूनिटों के संचालक अपने कर्मचारियों को वेतन देने की स्थिति में नहीं है। यहां तक की बिजली का बिल और बैंक से लिए लोन की किस्त भी देना उनके लिए मुश्किल हो गया है। वाराणसी लघु उद्योग संघ के अध्यक्ष केके गुप्ता का कहना है कि लॉकडाउन में लघु उद्योगों की करम तोड़ दी है। अति लघु उद्योग गंभीर संकट में आ गए हैं। उनकी दशा सोचनीय हो गयी है। किसी उद्यमी के पास अब बचत पूंजी नहीं बची है। अब जब तक सरकार से सीधे राहत नहीं मिलती, उद्योग शुरू नहीं किया जा सकता है। उनका कहना है कि मार्च महीने में जो माल डिस्पैच होना था, वह ट्रांसपोर्ट व कोरियर बंद होने के कारण वैसे ही पड़ा हुआ है। कच्चा माल भी रास्ते में फंसा हुआ है। कार्यशील पूंजी का घोर अभाव हो गया है। बैंक सीसी लिमिट बढ़ाने को तैयार नहीं है। बिना उत्पादन के कर्मचारियों को भुगतान करने में समस्या आ रही है।
उद्यमियों का कहना है कि डीरेका में सप्लाई करने वाली कई इकाईयां है। डीरेका के बंद होने से माल की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। आपूर्ति न होने के कारण भुगतान नहीं हो पा रहा है। भुगतान न मिलने से कार्यशील पूंजी का घोर अभाव हो गया है। फर्नीचर उद्योग से जुड़े अजय गुप्ता बताते हैं कि उनकी कर्मचारियों के प्रति पूरी सहानुभूति है, लेकिन 25 मार्च से कारोबार बंद होने से स्थिति बेहद खराब हो गयी है। रियल इस्टेट का धंधा भी मंदा होने से फर्नीचर उद्योग एकदम से बैठ गया है। वर्तमान स्थिति को देखते हुए कर्मचारियों को पूरा वेतन देना संभव नहीं है। अगर इसको लेकर दबाव बनाया गया तो कारोबार ही बंद हो जाएगा। उनका कहना है कि अब लॉकडाउन फोर में कुछ छूट मिली है, लेकिन अभी भी लोग सहमे हुए हैं, इसलिए बाजार उठ नहीं पा रहा है। श्रमिक और कामगार अपने घरों को पलायन कर चुके हैं या फिर कर रहे हैं। ऐसे में उद्योग के सामने एक और संकट उत्पन्न हो गया है। उनका कहना है कि छोटी इकाइयों में लेबर रखकर काम करवाने में कठिनाई है, क्योंकि अधिकतर लेबर आसपास के गांवों से ही आते हैं और वे कारखाने में रहकर काम करने के लिए तैयार नहीं है।
उद्यमियों की मानें तो सहालग के दौरान हुई यह बंदी सबसे ज्यादा नुकसानदायक साबित हुआ। क्योंकि सोना, कपड़ा, होटल, पर्यटन समेत सभी सेक्टर के कारोबार के लिए यह पीक समय होता है। बुनियन कारोबारी सूबेलाल गुप्ता बताते हैं कि उनके यहां सराफा का काम है। बंदी में लाखों-करोड़ों का नुकसान हुआ है। उद्यमियों की मानें तो दर्जनों माइक्रो इंडस्ट्री पर संकट के बादल गहरा गये हैं। कर्मचारियों को नौकरी से तो नहीं निकाला गया है, लेकिन कई जगह वेतन में कटौती शुरू हो गई है। हालांकि, यह स्थिति अगर ज्यादा दिन रही तो कारोबार को समेटने और छंटनी के अलावा कोई उपाय नहीं है। सराकर का राहत पैकेज भी छोटे कारोबारी तक नहीं पहुंच रहा है। तैयार परिधानों के कारोबारी विनय गुप्ता कहते हैं कि कर्मचारियों को दो महीने का वेतन देने के लिए कर्ज लेना पड़ा। सहालग में सबसे ज्यादा बिक्री होती है, लेकिन कारोबार बंद होने से बिक्री ठप रही। लॉकडाउन फोर में कुछ छूट मिली, लेकिन वह ऊंट के मुंह में जीरा के समान है। बिजली से लेकर बैंक तक पैसे देने ही है। बंदी से आर्थिक तौर पर बहुत ज्यादा नुकसान हो गया है। जून में जब बोझ पड़ेगा तो हमारी स्थिति और ज्यादा खराब होगी। इस आपातकालीन समय में सरकार को सभी सरकारी विभागों को निर्देश देना चाहिए कि एमएसएमई सेक्टर के उद्यमियों और कारोबारियों को राहत दें। बैंकों को निर्देशित किया जाए कि मौजूदा सीसी लिमिट को कम से कम 25 प्रतिशत ब्याज मुक्त लोन के रूप में छह माह के लिए बढ़ा दें।