वेबिनार के जरिए कोरोना से जंग, संकट के इस काल में सिर्फ भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व है आक्रांत


मानवीय मूल्य हुए तार-तार, उजागर हुआ सभ्यता का खोखलापन




जनसंदेश न्यूज़
वाराणसी। वैश्विक महामारी कोविड-19 के लगातार बढ़ते संक्रमण से सिर्फ भारत ही नहीं समूचा विश्व न सिर्फ जूझ रहा है, बल्कि आक्रांत भी है। समूचे विश्व की यह दशा यूं ही नहीं है। तमाम प्रयासों के बावजूद यह बीमारी थमने का जो नाम नहीं ले रही है। बावजूद इसके, प्रिंट, इलेक्ट्रानिक समेत सोशल मीडिया के जरिए लोगों को कोरोना महामारी से बचने के लिए लगातार जागरूक भी किया जा रहा है। 


जागरुकता के इस महायज्ञ में बुद्धिजीवी वर्ग भी अपने-अपने हिसाब से आहुति दे रहे हैं। सोशल मीडिया पर वेबिनार भी कोरोना जैसी महामारी से लड़ने का एक सशक्त हथियार साबित हुआ है। हर विश्वविद्यालय और महाविद्यालय अपने-अपने स्तर पर वेबिनार का आयोजन कर कोरोना से जंग लड़ रहा है। इसके बीच राजीव गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, अरुणाचल प्रदेश के कुलपति प्रो. साकेत कुशवाहा ने बेविनार के जरिए एक ऐसे अनुष्ठान को अंजाम दिया, जो संकट के इस घड़ी में देशवासियों को न सिर्फ आशा की एक नयी राह दिखाएगी, बल्कि भविष्य को संवारने में मील का पत्थर साबित होगी। 



राजीव गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. साकेत कुशवाहा की अगुवाई में राजीव गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग ने ‘कोविड-19 का उत्तरकाल रू शिक्षा, साहित्य और समाज’ विषयक राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन कर कोरोना से जंग लड़ने का मजबूत संकल्प लिया गया। इसमें देश के तमाम वर्तमान व पूर्व कुलपति, कुलसचिव, प्रोफेसर आदि ने भागीदारी की। सभी का स्वागत करते हुए कुलपति प्रो. साकेत कुशवाहा ने कहा, ‘मुझे इस बगिया को पुष्पित, पल्लवित करने का सौभाग्य मिला है। मैं जब अपने विद्यार्थियों को देखता हूं, उनकी समस्याओं को देखता हूं, तो उनको दूर करने का हमारा प्रयास रहता है। विद्यार्थियों को नई टेक्नोलॉजी से जोड़ा जाए और उसे मूर्तरूप मे लाया जाए, ऐसा हमारा सतत प्रयास रहता है। इसी क्रम में अपने विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग की ऊर्जावान टीम और सभी आयोजकों को बधाई देता हूं, जिन्होंने इस संकट की घड़ी में ऐसे सुंदर विषय को चुना है। इस संगोष्ठी के विमर्श के लिए कुछ अच्छी बातें निकलकर आएंगी और इन पर चर्चा होगी।’



हिन्दी विभाग के प्रो. हरीश कुमार शर्मा ने कहा, ‘हम एक ऐसे विषय पर बात करने जा रहे हैं, जो समसामयिक भी है और सार्वकालिक तथा सार्वभौमिक भी। शिक्षा, साहित्य और समाज ये तीनों ऐसे विषय है, जिन पर चर्चा सदा प्रासंगिक है। आज हमारे सामने संकट बहुत बड़ा है। पहले भी संकट आए हैं, बहुत बड़े संकट आए हैं। हमारा देश कितनी ही बार ऐसी मुसीबतों में फंसा है, लेकिन उनसे उबरकर के उठ खड़ा हुआ है। परंतु यह पहली बार है कि सम्पूर्ण विश्व एक ही जैसी समस्या से एक ही साथ आक्रांत है। ऐसे में यह आयोजन निश्चित ही साहित्य के नए आयाम स्थापित करेगा।’



महात्मा गांधी हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा, ‘भविष्य यानी कोरोना का उत्तरवर्ती काल। वो लोग जो गांव छोड़कर निकल पड़े थे महानगरों की ओर। सोचे थे कि हम ज्यादा श्रम करेंगे, ज्यादा पैसा कमायेंगे और नगरीय सुविधाओं के साथ जीवन व्यतीत करेंगे। ऐसे लोगों ने अपने श्रम से खड़ा किया था नगर को, उद्योगों को, व्यापार को। लेकिन जब खतरे में नगरीय सभ्यता आई तो नगर उनको बर्दाश्त करने को तैयार नहीं था और चल पड़े गांव की ओर। हजारों, लाखों लोग एक साथ और बिना किसी हिचकिचाहट के लौटे कि गांव उन्हें स्वीकार करेगा कि नहीं करेगा और किया भी। कोरोना ने इस सभ्यता के खोखलेपन को दिखाया है। मानवीय मूल्य तार-तार हुए। उत्पादकता के आधार पर बनने वाले व्यक्तिक संबंधों की क्रूरता को दिखाया है। अचानक अपने दूसरों को दरवाजे बंद कर लेने वाली सम्यता निर्मित हुई है। कोरंटाइन, इंसोलेशन में रहना, सोशल डिस्टेंस बनाना, ये महामारी से लड़ने के उपकरण थे। इस कोरोना ने बहुत गलतियों को आईना दिखाया है। अपना क्रूर चेहरा दिखाया है।’



दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के डा. सच्चिदानंद जोशी ने कहा, ‘कोरोना का इलाज नहीं मिला है। लेकिन जल्दी इससे निजात पा ली जाएगी। हमारा जीवन अस्थिरता से गुजर रहा है। भविष्य भले जो रहे, लेकिन हम सकारात्मक रहे।’



दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा चेन्नई के पूर्व कुलसचिव प्रो. निर्मला एस. मौर्य ने कहा, ‘हम सबको मिलकर इस कारोना महामारी का मुकाबला करना है। इससे हमको जीतना है। सोशल डिस्टेंस का भी ध्यान रखना है।’



केंद्रीय हिन्दी संस्थान आगरा के निदेशक प्रो. नंद किशोर पांडेय ने कहा, ‘भारतीय परंपरा, इतिहास, संस्कृति और शास्त्र के साथ ही अर्थव्यवस्था इनके साथ चलती है। यह जानकर आश्चर्य होता है कि भारत ने बड़ी संख्या में डाक्टर व इंजीनियर दिए है, लेकिन एक भी मौलिक सीख अंग्रेजी माध्यम से पढ़े हुए लोगो को नहीं है, जो भारतीयों के दैनदिन जीवन में प्रयुक्त होती है। औषधियों की फैक्ट्रियां भारत में हैं। मजदूर भारत के हैं। पैसा भारत का है। लेकिन दवा का अविष्कारक भारत नहीं है। मैंने कई बार यह जानने की कोशिश की है कि ऐलोपैथ की ऐसी कितनी दवाएं है, जिनका अविष्कार भारत ने किया है तो उसका उत्तर आता ही नहीं है।’



पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर के कुलपति प्रो. केशरी लाल वर्मा ने कहा, ‘कोरोना जैसे संकटकाल में पूरे विश्व के परिदृश्य को देखें तो भारत की स्थिति बेहतर है। हम सबको इस समय का मुकाबला करना है और इससे उबरकर आगे बढ़ना है।’



दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्रो. चंदन कुमार ने कहा, ‘कोरोना काल में हम सब अपने घरों में बैठे हैं और पूर्वाेत्तर में स्थापित राजीव गांधी केंद्रीय विद्यालय के हिन्दी विभाग का यह आयोजन निश्चित रूप से साहित्य में नए पृष्ठों को जोड़ेगा।’


राजीव गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के समकुलपति प्रो. अमिताव मित्र ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। राष्ट्रीय वेबिनार में डा. किरण हजारिका, डा. विश्वजीत कुमार मिश्र, भाषा संकायाध्यक्ष प्रो. ओकेन लेगो, डा. श्याम शंकर सिंह, डा. राजीव रंजन प्रसाद, डा. सत्यप्रकाश पाल के अलावा शोधार्थियों में विजय कुमार, प्रियंका सिंह, सोनाली बोहरगांव, सोनी रुमचू, रोशन आदि रहे।


Popular posts from this blog

'चिंटू जिया' पर लहालोट हुए पूर्वांचल के किसान

लाइनमैन की खुबसूरत बीबी को भगा ले गया जेई, शिकायत के बाद से ही आ रहे है धमकी भरे फोन

चकिया प्रीमियर लीग के फाइनल में केजीएन क्लब ने धनावल को दी शिकस्त, यह रहे मैच के हीरो