सरकार पर भारी पड़ रहे प्राइवेट सेक्टर, बारिश से गेहूं की उपज प्रभावित होने के बावजूद किसानों को मिल रहा अधिक रेट

केंद्रों का टार्गेट नहीं होगा पूर्ण, आढ़ती, निजी कंपनियां सीधे कर रहीं खरीद


सेंटर पर पहुंचे किसानों ने अफसरों के सामने ही अन्य लोगों को ज्यादा दर पर बेच दी अपनी-अपनी उपज


लॉक डाउन में छूट मिलते ही फ्लोर मिल वालों समेत तमाम एजेसियों ने दिखा दी सरकार से अधिक तेजी


सरकारी समर्थन मूल्य 1925 रुपये प्रति कुं. के सापेक्ष किसानों को 21 सौ रुपये तक का मिल रहा है मूल्य


महकमे ने बोरा लेकर गेहूं खरीद को घर-घर दौड़ाये कर्मचारी फिर भी किसानों से विभाग से मोड़ लिया मुंह


कोरोना महामारी के कारण जिले में हजारों की संख्या में लौट रहे प्रवासियों के चलते भी बढ़ी आटे की मांग



सुरोजीत चैटर्जी


वाराणसी। जब सरकारी रेट से अधिक मूल्य पर गेहूं बिक रहा हो तो क्यों कोई किसान राजकीय गेहूं क्रय केंद्र पर जाय। इस बार गेहूं के समर्थन मूल्य पर प्राइवेट सेक्टर के खरीदार भारी पड़ रहे हैं। लॉक डाउन में छुट मिलते ही आढ़तियों के अलावा फ्लोर मिल वाले, बड़ी कंपनियां ही नहीं बल्कि आमलोग भी सरकार से अधिक तेजी दिखाते हुए किसानों के सीधे गेहूं खरीद शुरु कर दी।


अबकी मौसम की मार और रबी सीजन के अंत में हुई बारिश से भले ही गेहूं की उपज प्रभावित हुई हो लेकिन किसानों को सरकारी समर्थन मूल्य की तुलना में प्रति कुं. औसतन करीब 600 रुपये अधिक रेट पर निजी क्षेत्र में गेहूं बेचने का न सिर्फ मौका मिल रहा है बल्कि हाथोंहाथ उनकी उपज ले ली जा रही है। राजकीय क्रय केंद्रों पर अबतक कुल जमा दस फीसदी ही खरीद हो सकी है।


दूसरा पहलू यह भी है कि कोरोना महामारी के चलते जनपद में हजारों की संख्या में लौट रहे प्रवासियों के कारण आटे की खपत बढ़ी है। बीते साल भले ही टार्गेट से डेढ़ गुना अधिक गेहूं की सरकारी खरीद हुई हो लेकिन इस बार तस्वीर उससे उलट है। सरकारी स्तर पर गेहूं खरीद का समर्थन मूल्य इस वर्ष लगभग 100 रुपये बढ़ा दिये जाने के बावजूद राजकीय गेहूं क्रय केंद्रों का लक्ष्य पूर्ण होने में संदेह है।


जनपद में राजकीय गेहूं क्रय केंद्रों की एक रोचक तस्वीर यह है कि गत दिनों आयर और मिर्जामुराद क्षेत्र के सेंटर के मुआयने पर पहुंचे विभागीय अफसर उस वक्त अवाक रह गये जब केंद्र पर गेहूं बेचने पहुंचे कुछ किसानों ने मौके पर ही समर्थन मूल्य से अधिक रेट 21 सौ रुपये प्रति कुं. की दर पर कुछ ग्रामीणों से सौदा कर लिया। पूछे जाने पर किसानों ने उन अधिकारियों से कहा कि बीते साल तक इसी सेंटर पर गेहूं बेचते रहे हैं परंतु इस बार जब बाहर के लोग खुद भी ज्यादा मूल्य दे रहे हैं तो उसका लाभ क्यों न लें।


निजी क्षेत्र में किसानों को अपनी उपज का अधिक रेट मिलने के कारण अफसरों को इस बात के लिए पसीने छूट रहे हैं कि शासन स्तर से निर्धारित गेहूं खरीद का टार्गेट कैसे पूरा होगा। प्राइवेट एजेंसियों, आढ़तियों और ग्रामीणों द्वारा किसानों के खेत और दरवाजे से गेहूं खरीद लिये जाने का हाल इसी से समझें कि सहकारिता विभाग ने अपने कर्मचारियों को बोरा उपलब्ध कराते हुए किसानों के घर भेजा कि क्रय केंद्र आने के बजाय घर से ही सरकारी दर पर गेहूं खरीद ली जाय।


लेकिन किसानों ने महकमे के कर्मचारियों को समर्थन मूल्य 1925 रुपये प्रति कुं. की दर से गेहूं बेचने के बजाय अन्य माध्यमों को अपनी उपज बेचना ज्यादा मुनासिब समझा। हालांकि जनपद में सब जगह ऐसा नहीं है लेकिन अधिकांश किसानों को प्राइवेट सेक्टर में अधिक रेट पर गेहूं बेचने का मौका मिल रहा है।


इस बार उत्पादन कम होने के कारण मांग बढ़ी है। इसका लाभ आढ़तियों समेत निजी क्षेत्र की कंपनियां उठा रही हैं। जनपद में सभी सरकारी क्रय केंद्रों पर गेहूं खरीद की तस्वीर यह है कि बीते बुधवार तक सभी सेंटर को मिलाकर सिर्फ 393 किसान ही अपनी उपज बेचने के लिए पहुंचे। उनमें खाद्य विभाग और एफपीओ पर 118, पीसीएफ के केंद्रों पर 179, यूपी एग्रो के सेंटरों पर 40 और एनसीसीएफ के केंद्रों पर कुल जमा 56 किसानों ने अपना गेहूं बेचा।



टार्गेट हासिल करना मुश्किल : विनोद सिंह


- शासन का उद्देश्य है कि किसान को उसकी उपज का अधिक से अधिक मूल्य मिले। उसी का आंकलन कर समर्थन मूल्य तय होता है। गत वर्ष गेहूं की सरकारी खरीद लक्ष्य से डेढ़ गुना अधिक हुई थी। रेट भी बाजार में अधिक नहीं था। इस बार गेहूं का समर्थन मूल्य करीब 100 रुपया बढ़ाते हुए 1925 रुपये प्रति कुं. रखा गया है लेकिन कई कारणों से अबकी टार्गेट हासिल करना संभव नहीं लग रहा है। एआर कोआॅपरेटिव विनोद कुमार सिंह भी स्वीकार करते हैं कि इस साल सरकारी रेट पर गेहूं खरीद का लक्ष्य पूरा करना बेहद मुश्किल लग रहा है। बोले, सरकारी क्रय केंद्रों के इतर हुई या हो रही गेहूं खरीद समर्थन मूल्य से अधिक रेट पर चल रही है। बीते रबी सीजन के अंत में बेमौसम की बारिश ने गेहूं के कुल उत्पादन का लगभग 35 फीसदी प्रभावित हो गया। कई गांवों में परिवारों ने छोटे किसानों से भी गेहूं खरीद ली। केंद्रों पर खरीदे जा रहे गेहूं के भुगतान को लेकर कोई समस्या नहीं है। महकमे के सभी 17 सेंटर पर कुल 26 हजार 500 बोरे उपलब्ध कराए हैं।


 


पीसीएफ सेंटर पर अबतक पहुंचे किसान


- अजगरा में 11, अनेई में 13, आयर में 20, कनियर में 2, गोसाईंपुर नं.-2 में 6, मोहांव में 5, चोलापुर में 21, चौबेपुर में 4, जक्खिनी में 20, नरायनपुर में 7, फूलपुर में 26, बेलवा में 16, बाबतपुर में 5, मरुई छताव में 11, मिर्जामुराद में 11, गोपपुर में 8


 


किसानों का 118.41 लाख है बकाया


- जिला खाद्य विपणन अधिकारी अरुण कुमार कुमार त्रिपाठी के मुताबिक जनपद में खाद्य विभाग, एफपीओ, पीसीएफ, यूपी एग्रो, एनसीसीएफ के 35 गेहूं क्रय केंद्र हैं। उनमें कुल मिलाकर 15 हजार एमटी गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा गया है लेकिन बीते बुधवार तक लगभग 1496 एमटी गेहूं ही की खरीद हो सकी है। जबकि बीते साल इसी अवधि में करीब 9524 एमटी गेहूं की खरीद हो चुकी थी। गत बुधवार को खाद्य विभाग के सभी आठ सेंटर पर कुल मिलाकर महज 5.30 एमटी गेहूं की खरीद हुई जबकि अन्य किसी भी क्रय केंद्र पर गेहूं बेचने के लिए कोई किसान पहुंचा ही नहीं। इस साल सरकारी क्रय केंद्रों पर अबतक कुल 287.95 लाख रुपये की गेहूं की खरीद हुई है। जिसमें से 169.54 लाख रुपये का भुगतान हो चुका है और 118.41 लाख रुपये का भुगतान शेष है।



सरकारी खरीद पर एक नजर


- अबतक खाद्य विभाग और एफपीओ का लक्ष्य पांच हजार एमटी लक्ष्य सापेक्ष 414.85 एमटी। पीसीएफ का 65 सौ एमटी के सापेक्ष 576.26 एमटी। यूपी एग्रो का तीन हजार एमटी के सापेक्ष 119.15 एमटी। एनसीसीएफ का 500 एमटी के सापेक्ष 385.60 एमटी।


 


बीते साल अबतक रही खरीद


- गत वर्ष जनपद में सरकारी स्तर पर विभिन्न विभागों ने कुल इसी अवधि में कुल 9523.90 एमटी गेहूं की खरीद कर ली थी। जिसके अंतर्गत खाद्य विभाग ने 1795 एमटी, एफपीओ ने 3301.40 एमटी, पीसीएफ ने 2463.95 एमटी और यूपी एग्रो ने 1963.55 एमटी गेहूं खरीदा था।



दिन में लालटेन लेकर घूम रहे, ढूंढ़े नहीं मिल रहे अन्नदाता


- जनपद के राजकीय गेहूं क्रय केंद्रों पर पसरा है सन्नाटा


- कम जोत वाले किसान पहले अपने लिए रख रहे गेहूं


- हॉट स्पॉट क्षेत्र में तीन सेंटर, जाने से कतरा रहे किसान


जनसंदेेेेश टीम


वाराणसी। गेहूं क्रय केंद्रों पर सन्नाटा पसरा है। हाल कुछ ऐसा है कि वहां के प्रभारी और सचिव मानो दिन में भी लालटेन लेकर किसानों को ढूंढ़ रहे हैं लेकिन अपनी उपज बेचने के लिए किसान इस केंद्रों का रुख नहीं कर रहे हैं। सो, लक्ष्य पूरा करने को लेकर केंद्र प्रभारियों के पसीने छूट रहे हैं।


ऐसा नहीं कि सभी किसान अपना-अपना गेहूं सिर्फ आढ़तियों और निजी क्षेत्र की एजेंसियों को अधिक मूल्य पर बेच रहे हैं। कम जोत वाले कई किसान अपना गेहूं बेचने को लेकर असमंजस में हैं। कारण, रबी सीजन के अंत में हुई बारिश से उनकी उपज को काफी नुकसान पहुंचा। आयर के किसान लखेंद्र पटेल कहते हैं कि गेहूं की पैदावार कम हुई है। इसलिए पहले अपने खाने के लिए रखेंगे उसके बाद बेचने की बात सोचेंगे। इसी गांव के राजकुमार यादव ने बताया कि ढाई बीघे में बीते साल 30 कुं. गेहूं की पैदावार रही। जबकि इस बार सिर्फ 12 कुं. गेहूं ही उपज मिली। आयर के राजेंद्र प्रसाद मौर्य तथा राजेंद्र पटेल ने कहा कि उपज कम होने के मूल्य बढ़ा है और बाहर अच्छा रेट मिल रहा है।



हरहुआ ब्लाक में ज्यादा रेट में गेहूं बेचने वाले किसान कम हैं। रामबालक ने आरोप लगाया कि फसल बीमा होने के बावजूद राहत नहीं मिल रही है। आयर क्रय केंद्र पर किसान नीलम सिंह और मनभावती देवी बकाये के लिए डेढ़ महीने से चक्कर काट रही हैं। इस बारे में एआर कोआॅपरेटिव विनोद कुमार सिंह ने बताया कि मामला संज्ञान में है। जल्द ही पेमेंट हो जाएगा।


चिरईगांव विकास खंड में रामचंदीपुर के किसान बद्री नरायन यादव, मुस्तफाबाद के राजेंद्र सिंह, उकथी के पारस मौर्य, गौराकला के किताबू राम यादव गत वर्ष की तरह इस बार पल्लेदारी 20 रुपये प्रति कुं. न दिये जाने की शिकायत की। दूसरी ओर, गुरुवार को गौराकला क्रय केंद्र दोपहर को बंद दिखा। इधर, चोलापुर क्रय केंद्र के सचिव जितेंद्र यादव ने कहा कि सीजन खत्म होते ही लॉक डाउन के चलते खरीद प्रभावित हुई। दानगंज क्षेत्र के किसान हरिशंकर सिंह, मुकेश सिंह तथा गुल्लू यादव ने कहा कि निजी क्षेत्र में गेहूं बेचने पर किसी प्रकार की कटौती नहीं होती। उधर, पिंडरा ब्लाक के फूलपुर, मरुई छताव और बाबतपुर के तीन क्रय केंद्र हॉट स्पॉट क्षेत्र में होने के कारण किसान वहां जाने से कतरा रहे हैं।


 


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