पढ़िएं देवेश पथ सारिया कि रचना.... ल्यांग यु के लिए


जनसंदेश न्यूज़
वाराणसी। आज जब लॉकडाउन के कारण हर कोई घरों में कैद है तो सबके पास अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति पेटिंग, सिगिंग, लेखन कार्य से करते हुए अपना पूरा समय बिता रहा है। ऐसे में बतौर रचनाकार, हिन्दी कवि, अनुवादक एवं कथेतर-गद्य लेखक देवेश पथ सारिया भी काव्य रचानाएं कर रहे हैं। 
मूल रूप से राजस्थान राजगढ़ (अलवर) के रहने वाले देवेश वर्तमान में पोस्ट डाक्टरल फेलो के रूप में ताइवान में है। इनकी रचानएं वागर्थ, पाखी, कथादेश, कथाक्रम, कादंबिनी, आजकल, परिकथा, प्रगतिशील वसुधा, दोआबा, जनपथ, समावर्तन, आधारशिला, अक्षर पर्व, बया, बनास जन, मंतव्य, कृति ओर, शुक्रवार साहित्यिक वार्षिकी, ककसाड़, उम्मीद, परिंदे, कला समय, रेतपथ, पुष्पगंधा आदि साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। 
इनकी एक प्रमुख कविता......
ल्यांग यु के लिए
हिंदी के मेरे पाठक  
मुझे पुकारते हैं-
‘ताइवान में रह रहा कवि’
और यहां ताइवान में
किसी को नहीं पड़ी
मेरी कविताओं की


मेरी नयी-पुरानी कविताएं
ल्यांग यु, तुम सुनती थीं
जो अब चली गई हो
जाने यूरोप या अमेरिका
मैंने डिलीट कर दी है
वह रिकॉर्डिंग जिसमें तुमने 
सबसे सरल भारतीय गाना सीखने की ललक में
‘ला ला ला ला लोरी’ गाने की कोशिश की थी
और श्रीश् पर अटक गई थी रील तुम्हारी
तमाम कोशिशों के बावजूद 
तुम ‘खीर’ नहीं बोल सकीं कभी 
तुम्हारे बाद 
तुम्हारी किसी हमवतन से 
दोस्ती नहीं की मैंने
तुम्हें पता भी नहीं होगा
कि मैं पांच साल से टिका हूँ
इसी शहर में
और पिछले कुछ महीनों से
बीमार हूं मैं
आज मैं दवा लेने गया था
और फार्मेसी के पास वाली
डंपलिंग की दुकान के बोर्ड पर
किसी का मुस्कुराता चेहरा बना था
हूबहू तुम्हारे जैसा
मैं तो तुम्हें भूल ही चुका था


रचनाकार - देवेश पथ सारिया


 


 


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