नहीं खुल रही चश्मे की दुकान, हजारों लोग परेशान, कैसे होगा समाधान?


तमाम लोगों के चश्मे या तो टूट गए या फिर बेकार हो गए


कई लोगों के नंबर बढ़ने से चश्मा न बनने से हो रही दिक्कत

जनसंदेश न्यूज़
वाराणसी। कक्षा सात में पढ़ने वाले गोलू का चश्मा टूट गया है। दूसरा चश्मा है नहीं। लॉकडाउन चल रहा है। ऐसे में चश्मे की दुकान को खोजने की इजाजत नहीं है। अब गोलू परेशान है। किसी तरह चश्मे के फ्रेम को बांध कर काम चला रहा है, लेकिन कितने दिन। इसी प्रकार, बुजुर्ग त्रिभुवन के चश्मे का शीशा टूट गया है। बदलने के सिवाय और कोई दूसरा रास्ता नहीं है। चश्मे के बिना उनकी जिंदगी अंधकारमय हो गयी है। बेबस और लाचार है। बच्चों के सहारे किसी तरह दिन काट रहे हैं। सिर्फ गोलू और त्रिभुवन ही नहीं, हजारों लोग चश्मे की दुकान न खुलने से इन दिनों खासे परेशान है और दुश्वारियां भरी जिंदगी जीने को विवश है।
वरिष्ठ नेत्र चिकित्सक डा. अनुराग टंडन और चश्मा कारोबारी बदरूद्दीन अहमद की मानें तो सिर्फ शहरी इलाकों में औसतन हर सातवां वयक्ति किसी न किसी प्रकार के चश्मे का इस्तेमाल करता है। लॉकडाउन में किसी के चश्मे का लेंस टूट गया है तो किसी के लेंस पर स्क्रैच पड़ गया है। किसी के चश्मे का फ्रेम टूट गया है तो किसी के चश्मे का नंबर बढ़ गया है। घर में ऑनलाइन वर्क, स्टडी और मोबाइल पर अधिक देर व्यस्त रहने की लगी लत के चलते उनकी जिंदगी वीरान सी बन गयी है। आम से लेकर खास तक की चश्मे की परेशानी सिर्फ वहीं महसूस कर सकता है, जो इस्तेमाल करता है। महिलाएं तो चश्मे के अभाव में खासी परेशान है। किचेन से लेकर आंगन तक के कामकाज निपटाने में उनको खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
शहर के विभिन्न इलाकों में छोटी-बड़ी दुकानों पर 10-15 तो बड़ी दुकानों पर 40-50 चश्मे रोजाना मरम्मत के लिए आते थे। विभिन्न दुकानों पर रोजाना दो हजार से अधिक चश्मे मरम्मत के लिए औसतन आते ही है। लेकिन लॉकडाउन में सब बेकार पड़े हैं। ऐसे में इस गंभीर समस्या का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। नेत्र चिकित्सकों का कहना है कि ब्लड प्रेशर और ब्लड शुगर लेवल में उतार-चढ़ाव से भी आंखों का पावर प्रभावित होता है। लॉकडाउन में कुछ नेत्र चिकित्सक फोन पर भी मरीजों को सुझाव दे रहे हैं। असली समस्या यह है कि चश्मे की मरम्मत या फिर नया चश्मा कैसे बने? 
वाराणसी चश्मा एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष बदरुद्दीन अहमद ने बताया कि दुकान कब खुलेगी, पूछने पर रोजाना अनेक फोन आते हैं। लेकिन जिला प्रशासन की तरफ से कोई ठोस जवाब न मिलने के कारण ग्राहकों को बता पाने की स्थिति में हम लोग नहीं है। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के दौरान छोटे बच्चों की भी ऑनलाइन क्लास हो रही है। ऑनलाइन पढ़ाई में कुछ बच्चों की आंखों में पानी आने के साथ धुंधला दिखने लगता है। ऐसे बच्चों के अभिभावक नेत्र चिकित्सक के यहां इसलिए नहीं जा पा रहे हैं कि डाक्टर ने चश्मा लगाने को कह दिया तो बनेगा कैसे? जितने लोग उतनी समस्या। उनका यह भी कहना है कि चश्मा भी आवश्यक सेवाओं में आता है। जब तमाम आवश्यक वस्तुओं की दुकानें सप्ताह में किसी न किसी दिन खोलने की इजाजत मिल गयी है तो चश्मे की दुकान को भी खोलने की इजाजत क्यों नहीं दी जा रही, यह समझ से परे हैं?


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