नारी हैै ये.....नारी के संस्कार और सामर्थ्य को इंगित करती आराधना की यह कविता.....
वाराणसी। सृष्टि के शुरूआत से ही नारी को देवी का दर्जा दिया गया है और भारतीय सनातन परंपराओं में इसे पूजनीय माना गया है, कभी मां, कभी बहन, कभी भाभी तो कभी पत्नी के किरादर को निभाते हुए नारी जीवन के हर उतार चढ़ाव का मजबूती से मुकाबला करती है, जीवन के आपाधापी में वह अपना अस्तित्व ही भूल जाती है। लेकिन अफसोस की जिस सम्मान का वह हकदार होती है, यह समाज उसे वह सम्मान दे नहीं पाता। इसी को इंगित करते हुए आराधना पाण्डेय की एक कविता.....
नारी हैैंं ये.....
खुले आसमान में
उड़ने वाली भी है ये,
और चार दीवारी में
बंद रहने वाली भी है,
नारी है ये कभी सीता
तो कभी काली भी है।
कभी मां बनकर,
हर कठोरता को
पिघला दे ऐसी
कोमलता वाली भी है।
कभी पत्नी बनकर,
एक मुस्कान से सारे
गमों को भुला
देने वाली भी है।
कभी बेटी बनकर,
दान कर जाती है ये
अपने सोने से
सपने को भी,
सूर्य की किरणों की
भांति संसार को जीवन
देने वाली भी है।
कभी प्रेयसी बन
कर जाती है
खुद को निछावर भी
मंदिर का दिया भी है ये
और जंगल की आग
बन जाने वाली भी है
कभी बहन बन
बांधती है रक्षासूत्र भी ये
तो कभी खुद ही भाई की
रक्षा करने वाली भी है
कभी मित्र बन
हर समस्या सुलझा
जाति भी है ये
तो कभी आंसुओं को
बांटने वाली भी है
इतने त्याग के बाद भी
क्या मिलता है नारी को
इतनी महान होकर भी
कभी-कभी समाज में
सम्मान की भी हकदार
नहीं होती ये।
आराधना पाण्डेय