कोई सुन लो दुहाई दिए जा रहे है.....पलायन करते मजदूरों के दर्द को बयां करती डा. माला की यह कविता
कोई सुन लो दुहाई दिए जा रहे हैं
कोई सुन लो दुहाई दिए जा रहे हैं ।
वो मजदूर जो अपने घर जा रहे हैं ॥
मीलों का सफर तय किए जा रहे हैं ।
वो मजबूर हैं अपने घर जा रहे हैं ॥
कोई जुत गया बैलगाड़ी में खुद ही ।
चला साइकिल पे गृहस्थी ले कोई ॥
चला कोई सौ मील कोई हजारो ।
सुबह शाम और दोपहर जा रहे हैं ॥
कोई सुन लों दुहाई दिए जा रहे हैं ।
वो मजदूर जो अपने घर जा रहे हैं ॥
कहीं बच्चे हैं भूख से बिलबिलाते ।
कहीं प्यास से सब के सब तड़फडाते
कहीं कांधे माँ कोई बच्चा लिए हैं ।
पसीने से सब तरबतर जा रहे हैं ।
कोई सुन लों दुहाई दिए जा रहे हैं ।
वो मजदूर जो अपने घर जा रहे हैं ॥
किसी ने किसी को दिया था सहारा ।
मगर कुछ ने उनसे किया था किनारा ॥
यही सोचते पहुंचेंगे घोसलों में ।
परिंदों से खोले वे पर जा रहे हैं ॥
कोई सुन लों दुहाई दिए जा रहे हैं ।
वो मजदूर जो अपने घर जा रहे हैं ॥
एक सबला बेचारी दुखारिन भी है।
जन के बच्चा सड़क पर पड़ी हैं कहीं ॥
आएगा ना मदद को कोई भी वहाँ ।
जानकर ये वो उठकर के खुद चल पड़ी ॥
फूटी किस्मत की खातिर सहे जा रहे हैं
वो मजदूर जो अपने घर जा रहे हैं॥
रास्ते में कहीं भी ना सुस्ता रहे हैं ।
अपने अंदर की ज्वाला को सुलगा रहे हैं ॥
हिसाब मांगेंगे अपनी बेकद्री का उनसे ।
वो जो अंधे और बहरे बने जा रहे हैं ॥
कोई सुन लों दुहाई दिए जा रहे हैं ।
वो मजदूर जो अपने घर जा रहे हैं ॥
कुछ ट्रेनों के नीचे कटे जा रहे हैं ।
कुछ सड़को पर दबकर मरे जा रहे हैं ।
पके जा रहे उनके पाँवो के छाले ।
पर चले जा रहे हैं , चले जा रहे हैं ।
फिर ना लौटेंगे वापस कहे जा रहे हैं
वो मजदूर जो अपने घर जा रहे हैं ॥
डॉ0 माला यादव
छोटी पियरी , वाराणसी
काशी हिंदू विश्व विद्यालय से 2019 में हिन्दी विषय से पीएचडी उपाधि प्राप्त ।
वर्तमान में झारखंड आयोग से हिन्दी शिक्षिका पद पर कार्यरत ।