जरूरत ने दबे पांव बदला जुनून, लॉकडाउन में सोशल मीडिया ने सामाजिक रिश्तों पर चढ़ाया नया रंग
सोशल मीडिया के ओवरडोज से प्रभावित होती है एकाग्रता, बरतें सतर्कता: रिसर्च
विजय विनीत
वाराणसी। लाकडाउन के चलते घरों में कैद लोगों की हमजोली बन रहा है सोशल मीडिया। बनारस के युवा ही नहीं, बच्चे और बुजुर्ग भी इसका जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। कोरोना संकट काल में सोशल मीडिया ने सामाजिक रिश्तों का रंग भी गाढ़ा किया है। सिर्फ शहर ही नहीं, ग्रामीण इलाकों में भी यह समाज और संस्कृति का जरूरी हिस्सा बन गया है। ये केवल जुनून नहीं, कोरोना काल में जरुरत बन गया है। सोशल मीडिया-फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप के जरिए लाकडाउन में खाली बैठे लोग अपनी मुश्किलों को आसान बना रहे हैं। लोगों तक मन की बात पहुंचाने के लिए भी सोशल मीडिया एक बड़े और प्रभावी माध्यम के तौर पर उभरा है।
बनारस में फुलवरिया के डा.वैभव सिंह को ही लें। इसी इलाके में इनकी डेंटल क्लीनिक है। लाकडाउन में क्लीनिक लॉक है तो इनका दोस्त बना सोशल मीडिया। खाली समय का दोस्त। इस दौरान उन्होंने दो बड़े काम किए। पहला-भूख से बेहाल लोगों तक खाना पहुंचाने का। दूसरा-सोशल मीडिया के जरिए लोगों को सोशल डिस्टेंशिंग का महत्व समझाने का। वो बताते हैं,- "कोरोना के बढ़ते संक्रमण से बचाव का एकमात्र तरीका है सोशल डिस्टेंसिंग। डिस्पेंशरी बंद हैं तो हमने दोस्तों के जरिये युवाओं को इसके महत्व को समझाने के लिए सोशल मीडिया पर मुहिम छेड़ी है। बनारस की एक बड़ी आबादी तक हमने सोशल डिस्टेंसिंग के संदेश को पहुंचाया। अब लोगों को ये समझाना बेहद जरूरी है कि सोशल डिस्टेंसिंग और सोशल मीडिया के मायने क्या हैं? जो लोग इनकी अहमियत को नहीं समझेंगे वो मुश्किल में फंसेंगे। सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफार्म है जो जिंदगी के हर पहलू को आसान बनाता है। साथ ही जीने का नया रास्ता भी दिखाता है।"
डा.वैभव के एक दोस्त हैं जय मौर्य। सोशल डिस्टेंसिंग की मुहिम में ये भी अहम भूमिका निभाते हैं। लाकडाउन में फेसबुक, व्हाट्सएप और दूसरे प्लेटफार्म के जरिए लोगों को नए ढंग से जीने का अंदाज सिखा रहे हैं। मौर्य कहते हैं,- "हर चीज के दो पहलू होते हैं। एक सकारात्मक और दूसरा-नकारात्मक। यह आप पर निर्भर है कि सोशल मीडिया को आप किस तरह से लेते हैं? लाकडाउन की बात करें तो शहरी आबादी में सोशल मीडिया अब समाज और संस्कृति का अनिवार्य हिस्सा बन चुका है। जीवन का ऐसा हिस्सा, जिससे जुदा कर पाना बहुतों के लिए संभव नहीं है।"
आधुनिक जीवन का हिस्सा
तकनीकी खबरों वाली वेबसाइट द नेक्स्ट वेब की एक रिपार्ट में दावा किया है कि फेसबुक का इस्तेमाल करने वालों की तादाद के मामले में भारत ने अमेरिका को भी पीछे छोड़ दिया है। भारत में 25 करोड़ से ज्यादा लोग इसका इस्तेमाल करते हैं, जबकि अमेरिका में यह तादाद 24 करोड़ के आसपास है। भारत में फिलहाल 22 करोड़ लोग ऐसे हैं जो हर महीने कम से कम एक बार फेसबुक पर लॉगिन जरूर करते हैं। बनारस की बात करें तो इस शहर में फेसबुक और व्हाट्सएप युवाओं का नशा बन चुका है। यह सिर्फ चैटिंग ही नहीं, वायस व वीडियो कालिंग का एक बड़ा प्लेटफार्म भी है। आंकड़ा चाहे भी हो, एक बात तो साफ है कि लाकडाउन के दौरान बनारस में सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वालों की तादाद में भारी इजाफा हुआ है। लहरतारा के धनंजय पटेल लूम पर साड़ियों की बुनाई करते हैं। लाकडाउन में लूम बंद है। वो कहते हैं,- सिर्फ सोशल मीडिया ही ऐसा प्लेटफार्म है जो जिंदगी को बोर होने से बचाती है। इसका सही इस्तेमाल करेंगे तो आप क्या नहीं सीख सकते। अपने ज्ञान को बढ़ा सकते हैं और आपसी रिश्तों को भी। बनारस में खासकर फेसबुक और व्हाट्सएप आधुनिक जीवन के अनिवार्य हिस्से हैं। महानगरों के अलावा छोटे शहरों में भी इसके बिना रोजमर्रा के जीवन की कल्पना करना कठिन है।
सकारात्मक असर
बनारस में सोशल मीडिया ने कई मायनों में जीवन काफी आसान बनाया है। मिसाल के तौर पर अब पढ़ाई या रोजगार के सिलसिले में सात संमदर पार रहने वाली संतानें वीडियो कालिंग सुविधा के चलते अपने माता-पिता व परिजनों से आमने-सामने बैठ कर बात कर सकती हैं। बनारस के पांडेयपुर की गृहणी सुमन रोजाना अपनी बेटी-दामाद से बात कर लेती हैं। हरिओम ने भी अब स्मार्ट फोन पर वीडियो कालिंग सीख ली है। वह कहते हैं, "हमारे जमाने में पत्र ही घर वालों से संपर्क का इकलौता साधन था। लेकिन अब सोशल मीडिया ने जिंदगी काफी आसान कर दी है। इसके साथ ही सूचनाओं का बहाव भी काफी तेज हो गया है। भविष्य में हम शादी और पार्टियों के कार्ड वगैरह भी सोशल मीडिया के जरिए भेजेंगे। लाकडाउन के दौरान व्हाट्सएप पर ग्रुप बनाकर हम कोरोना से बचाव के लिए जागरुकता फैलाने का काम कर रहे हैं।"
मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाले शैलेंद्र भारती कहते हैं, -"हम वर्क फ्राम होम कर रहे हैं। उनके दफ्तर में काम करने वाले तमाम कर्मचारी और बॉस अपने व्हाट्सएप ग्रुप पर ही मीटिंग और जरूरी चर्चा निपटा रहे हैं। इससे समय की बचत हो रही है। साथ ही कामकाजी दक्षता भी बढ़ रही है।" समाजशास्त्री सुनील मिश्र कहते हैं, "देश में बढ़ते एकल परिवारों के मौजूदा दौर में सोशल मीडिया रिश्तों को मजबूत करने में अहम भूमिका निभा रहा है।" लिंक्डइन जैसी साइटें रोजगार के मुख्य स्रोत के तौर पर उभर रही हैं। लाकडाउन से पहले 89 फीसदी नियुक्तियां लिंक्डइन या कंपनी की वेबसाइट के जरिए हो रही थीं। महज 140 शब्दों का ट्वीट भी सात समुंदर पार पहुंच रहा है। बिजली की रफ्तार से प्रमुख खबरें और घटनाओं का ब्योरा पहुंच रहा है। सोशल मीडिया प्रसार का अहम जरिया बन गया है। वेबसाइट पर पोस्ट की गई किसी कहानी की उम्र जहां 2.6 दिन है वहीं सोशल मीडिया पर उसी की उम्र 23 फीसदी बढ़ कर 3.2 दिन हो जाती है।
नकारात्मक असर
हर चीज की तरह सोशल मीडिया के भी दो पहलू हैं। अकथा के श्याम बाबू का कहना है कि यह लोगों पर निर्भर है कि वह इसका इस्तेमाल कैसे, किसलिए और कितनी देर करते हैं? किसी भी चीज की लत अच्छी नहीं है। मिसाल के तौर पर कोलकाता में एक व्यक्ति ने सिर्फ इसलिए अपनी पत्नी को मार डाला कि वो सोशल नेटवर्किंग साइटों पर ज्यादा वक्त गुजारती थी। वह महिला अपने पति की ओर समुचित ध्यान नहीं दे पाती थी। वो कहते हैं, "अदालतें भी मानने लगी हैं कि सोशल मीडिया के जमाने में निजी डाटा की कोई गोपनीयता नहीं रह गई है। इसकी वजह से अब शादी नाम की खूबसूरत संस्था खतरे में पड़ रही है। सोशल मीडिया की व्यस्तता की वजह से जीवन साथी के लिए परंपरागत सांस्कृतिक मूल्यों और सम्मान में लगातार कमी आ रही है। आने वाले दिनों में अब शादी के ऐसे दिलचस्प विज्ञापन बनारस में भी देखने को मिलेंगे, जिसमें लिखा होगा कि भावी वधू को फेसबुक या सोशल मीडिया का नशा नहीं होना चाहिए।"
ज्योतिषविद पंडित दिनेश चंद्र शुक्ल बनारस में कुंडली के विशेषज्ञ हैं। शादी-विवाह के लिए इच्छुक वर-वधु की कुंडली का मिलान भी करते हैं। शुक्ल कहते हैं, "सोशल मीडिया के बढ़ते असर की वजह से हमारी संस्कृति तो बदली ही है। परिवार और विवाह के अर्थ ही बदल गए हैं। लोग बिना-सोचे समझे किसी भी मैसेज को फॉरवर्ड कर देते हैं। इसका नतीजा कई बार घातक हो जाता है। रिश्ते-नाते तक खतरे में पड़ जाते हैं।"
रिश्तों की नई परिभाषा
बीएचयू के मनोचिकित्सक डा.संजय गुप्ता कहते हैं, "सोशल मीडिया के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल से एकाग्रता प्रभावित होती है। कामकाजी समय का भी नुकसान होता है।" वह कहते हैं कि इसकी वजह से पहचान चुराने, साइबर फ्रॉड, साइबर बुलिंग, हैकिंग और वाइरस हमले की घटनाएं भी बढ़ गई हैं।
इससे उलट तमाम विशेषज्ञों का कहना है कि लाकडाउन के दौरान शहरी परिवारों में तो सोशल मीडिया रिश्तों की संस्कृति को नए सिरे से परिभाषित कर रहा है। लेकिन फिलहाल शहरों और गांवों के बीच बंटे परिवार इस मामले में संक्रमण काल से गुजर रहे हैं। जर्नलिजम गुरु अनिल उपाध्याय कहते हैं, -"लोगों को यह समझना होगा कि इंटरनेट का मतलब सिर्फ सोशल मीडिया ही नहीं है। यह सूचनाओं का भंडार है। ऐसे में सोच-समझ कर परंपरागत रिश्तों के साथ तालमेल बिठा कर इसका इस्तेमाल करना ही बेहतर है।"
सोशल मीडिया के एक पक्ष यह भी
बनारस में लंका के नंदनगर निवासी महेंद्र द्विवेदी सोशल मीडिया के कई पहलुओं को गिनाते हैं। वो कहते हैं, -"कभी-कभी इसका इस्तेमाल अपने खिलाफ बोलने वालों को शांत करने के लिए भी किया जाता है तो यदाकदा किसी बड़े मुद्दे को छोटा बनाने के लिए भी सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया जाता है। मीडिया में लग रहे आरोपों के उत्तर भी ट्रोलिंग के जरिए दिए जा रहे हंै। ऐसा नहीं है कि हमेशा इसका असर जैसा सोचा गया, वैसा ही रहा। कई बार तो इसके जरिए अफवाहों को भी हवा दे दी गई। ये भ्रम है कि इससे बड़ी जनसंख्या तक पहुंच सकता है, क्योंकि ये सिर्फ़ उन तक पहुंचता है जो इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं।"
सोशल मीडिया का कैसे करें इस्तेमाल?
वाराणसी। कोरोना वायरस की महामारी की वजह से पूरे देश में लॉकडाउन लगा है। इस दौरान लोगों के लिए घर में समय बिता पाना मुश्किल हो रहा है। देखने में आ रहा है कि इस समय लोग सोशल मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल करने लगे हैं। सोशल मीडिया का यूज करने से समय तो कट जाता है, लेकिन इस पर ज्यादा एक्टिव रहना कई लिहाज से अच्छा नहीं माना गया है। लॉकडाउन के दौरान अगर आप सोशल मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हों, तो कुछ खास बातों का ध्यान रखना जरूरी है।
नेगेटिव कमेंट नहीं करें
सोशल मीडिया, खासकर फेसबुक पर जब आप एक्टिव होते हैं तो किसी की पोस्ट पर सोच-समझ कर कमेंट करें। अगर किसी की पोस्ट आपको पसंद नहीं आ रही हो, तो जरूरी नहीं कि आप कमेंट करें ही। आप चुपचाप वहां से निकल जा सकते हैं। नेगेटिव कमेंट करने से वाद-विवाद होने का डर रहता है। इससे बदमजगी बढ़ती है। अगर कोई पोस्ट आपको पसंद आती हो तो उस पर पॉजिटिव कमेंट करें। इससे रिलेशन ठीक बने रहते हैं।
विवादास्पद पोस्ट से बचें
ऐसी पोस्ट से दूरी बना कर रखें जिनसे कोई विवाद पैदा हो सकता हो। अगर आपको लगता है कि किसी की पोस्ट गलत है, उसमें जो फैक्ट्स दिए गए हैं, वे सही नहीं हैं तो आप किसी तरह का रिएक्शन नहीं दें। बेहतर होगा कि इस तरह की पोस्ट को इग्नोर कर दें। खुद भी कोई पोस्ट करने के पहले ठीक से देख लें कि उससे कहीं कोई विवाद तो पैदा नहीं हो सकता है।
एंटरटेनमेंट पर दें जोर
सोशल मीडिया एंटरटेनमेंट का एक बड़ा जरिया है। इस पर आप ऐसे पोस्ट करें, जिन्हें पढ़ने के बाद दूसरे लोगों को मजा आए। आप कोई छोटी कहानी, कविता या चुटकुला शेयर कर सकते हैं। लेकिन यह ध्यान रखें कि इससे किसी की भावनाएं आहत न हों। सोशल मीडिया पर आपसे सैकड़ों लोग जुड़े होते हैं, इसलिए लोगों की भावनाओं का ध्यान रखना बहुत जरूरी है।
कोरोना से संबंधित अफवाहों से बचें
सोशल मीडिया पर कोरोना महामारी से संबंधित तरह-तरह की पोस्ट की जा रही हैं। इनमें ज्यादातर पोस्ट्स में तथ्य सही नहीं होते। कुछ तो महज अफवाह साबित होती हैं। इसलिए इनसे बचें। कोरोना से संबंधित जानकारी स्वास्थ्य मंत्रालय, वर्ल्ड हेल्थ आॅर्गनाइजेशन और यूनिसेफ की वेबसाइट से लें। मीडिया में भी इससे संबंधित प्रामाणिक जानकारी होती है।
जल्दी किसी को ब्लॉक नहीं करें
सोशल मीडिया पर ब्लॉक का आॅप्शन होता है, लेकिन इसका इस्तेमाल काफी सोच-समझ कर ही करना चाहिए। किसी से अहसमति का होना स्वाभाविक है। इसका यह मतलब नही है कि आप गुस्से में आकर तुरंत ब्लॉक कर दें। ब्लॉक उन लोगों को किया जाता है, जो सोशल मीडिया पर आपको परेशान करने लगे हों या जो ट्रोलर और असामाजिक तत्व हों। अगर आप मामूली असहमति पर दोस्तों को ब्लॉक करने लगेंगे तो आपकी इमेज खराब हो सकती है।