जम्मू कश्मीर में सीआरपीएफ पर हुए आतंकी हमले में जनपद का लाल हुआ शहीद, पूरे जनपद में मचा कोहराम
जनसंदेश न्यूज़
कठवामोड़/गाजीपुर। जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में सोमवार को आतंकवादी हमले मे जिले के सीआरपीएफ जवान अश्वनी कुमार यादव शहीद हो गए हैं। सूचना मिलते ही पूरे क्षेत्र में कोहराम मच गया। अफसरों के अनुसार कुपवाड़ा में क्रालगुंद क्षेत्र के वंगाम-कजियाबाद में हमलावरों ने सीआरपीएफ की एक नाका पार्टी पर गोलियां चलायीं। इस हमले में सीआरपीएफ के अश्वनी यादव की मौके पर ही मृत्यु हो गई।
बता दें कि, सोमवार को श्रीनगर के कुपवाड़ा में हुए आतंकवादी हमले में सीआरपीएफ 92 बटालियन के जवान अश्वनी कुमार यादव 29 क्षेत्र के चक दाऊद उर्फ बभनौली के मूल निवासी है। ये तीन भाइयों में सबसे बड़े थे, दो भाई अंजनी यादव 25 और अमन यादव 23 है। दोनों भाई अभी तैयारी कर रहे है। अश्वनी की शादी बलिया जनपद के गड़वार थाना क्षेत्र के गांधीनगर गांव में अंशु देवी से 2009 में हुआ थी। स्नातक तक पढ़ाई की है। इनके पीछे एक पुत्र आदित्य 3 वर्ष और एक पुत्री पारी 6 वर्ष की है। 2007 में 20 वर्ष की उम्र में कांस्टेबल के पद पर पोस्टिंग हुआ था। अब उनका हवलदार के पद पर प्रमोशन भी हो गया था।
उनको ट्रेनिग देने वाले बुद्धिराम कुमार राम राजभर ने बताया कि वो बचपन से ही फोर्स में जाने की इच्छा रखते थे और बहुत ही शांत स्वभाव के रहने वाले और मेहनती वो भाला खेल के मैदान में प्रतिदिन दौड़ करने और मेहनत करने आते थे। परिजनों ने बताया कि अभी पिछली बार 1 महीने की छुट्टी 27 जनवरी को छुट्टी से वापस ड्यूटी पर वापस गए थे। सुबह 10 बजे तक कोई भी अधिकारी उनके घर पर नही पहुंचा था। जबकि पुत्र बार-बार पूछ रहा था कि आप काहे रो रहे है और पापा कब आएगे। पापा कल बात हुआ था फोन पर तो बोले कि आएंगे तो साइकिल खरीदेंगे। भाई अंजनी यादव ने बताया कि कल 4.30 बजे बात हुआ था फिर शाम को पता चला कि अब वो नही रहे। हम सरकार से मांग करते है कि हमें भी सरकार मौका दें। हम भी अपने भाई कि तरह देश की सेवा करना चाहते है।
बेटी कैसे बनेगी डॉक्टर
कठवामोड़। शहीद की पत्नी अंशु यादव का रोते-रोते बेहाल हो चुकी है पत्नी रोते हुए कहती है कि मेरी बेटी अब डॉक्टर कैसे बनेगी वो हमेशा बोलते थे कि अपनी बेटी को डॉक्टर बनाऊंगा। शहीद अश्वनी की शिक्षा शुरू में सुसुण्डी प्राथमिक विद्यालय फिर बीपीएम पब्लिक स्कूल मालीपुर के बाद एमजेआरपी स्कूल जगदीशपुरम में होने के बाद भर्ती हो गए थे। इनकी पत्नी ग़ाज़ीपुर शहर में रह कर बच्चों की पढ़ाई लिखाई का कार्य करती थी। घर परिवार और गांव के बच्चों तक उनके बातों को याद कर रो रहे थे कि वो हमेशा बच्चों को बोलते थे कि मेहनत करो भर्ती हो जाओगे। 2 साल पहले इलाहाबाद में ड्यूटी थी। उसके बाद श्रीनगर को हुआ।