जब धर्म का पतन होता है तब धर्म के उत्थान के लिए कोई ना कोई अवतार लेता है : योगी सत्यम


 


जनसंदेश न्यूज 

झूसी/प्रयागराज l क्रियायोग अनुसंधान संस्थान में  क्रियायोग प्रमुख  योगी सत्यम ने बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर साधकों को बताया  की पूरी दुनिया में एक ही धर्म था जिसे सनातन धर्म कहते हैं । सनातन धर्म यह अनुभव कराता  है कि ब्रह्मांड की प्रत्येक रचनाएं अमर है। समय-समय पर रचनाओं का बाह्य आकार बदलता रहता है, लेकिन  उनका मूल तत्व नष्ट  नहीं होता है ।   जब जब धर्म का पतन होता है तब तब धर्म के उत्थान के लिए कोई न कोई अवतार लेता है। जैसे जैसे समय  बीतता गया, वैसे वैसे सनातन धर्म का प्रकाश लुप्त होने लगा। सनातन धर्म को पूर्ववत  पुन: प्रकाशित  करने के लिये भगवान बुद्ध का अवतार हुआ। बुद्ध धर्म का विस्तार दूर-दूर तक हुआ , यह धर्म चीन , जापान थाईलैंड और ईरान तक फैला। जब बौद्ध धर्म विकृत होने लगा तब आदि शंकराचार्य ने पुन: बौद्ध धर्म को  परिष्कृत  किया।

वर्तमान में प्रचलित हिंदू धर्म,  सनातन धर्म का ही रूप है, लेकिन अज्ञानता कारण मनुष्य इसके वास्तविक स्वरूप को बदल डाला। वर्तमान में मनुष्य के द्वारा  हिन्दू धर्म को बच्चों की खेल की तरह प्रस्तुत किया जा  रहा है। इसी वजह से देश में अराजकता,  गरीबी, अशांति और अव्यवस्था का वातावरण है।


 क्रियायोग  ध्यान करने से हम सत्य से जुड़ते ही शीघ्रता से अनुभव करते हैं कि सनातन धर्म,  बौद्ध धर्म , हिंदू धर्म,  ईसाई धर्म, यहूदी धर्म, इस्लाम आदि सभी धर्म मनुष्य को सत्य से जोड़ते हैं, सभी धर्मों का आन्तरिक स्वरूप एक है। अज्ञानता ( अज्ञान- अविद्या ) के कारण मनुष्य इन धर्मों में अन्तर देखता है। क्रियायोग के अभ्यास से मनुष्य में विवेक ( इन्ट्यूशन ) शीघ्रता से जागृत हो जाता है और वह स्पष्ट अनुभव करता है कि सभी धर्म एक हैं।सिद्धार्थ गौतम का  जन्म वैषाखी पूर्णिमा के दिन लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। गौतम बुद्ध जरा, मरण, दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग एवं सत्य दिव्य ज्ञान की खोज में राजपाठ का मोह त्यागकर आध्यात्मिक साधना में लीन हो गए । वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधि वृक्ष के नीचे वैषाख पूर्णिमा के दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुद्ध बन गए।

 सत्य अनुभूति में  समय व दूरी का लोप हो जाता है और इस अवस्था में हम भगवान बुद्ध की अनुभूति वर्तमान में भी कर लेते हैं। इस अनुभूति में भगवान बुद्ध का सारा ज्ञान स्वरूप में अवतरित हो जाता है।


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