डेली मोशन पर कविता पाएगी अपना ‘मोशन’, तेजी से उभर रहा कवि सम्मेलनों का डिजिटल स्वरूप

कोरोना संकट के चलते बदलेगा मंच, अब वेब सीरीज में सुने जाएंगे कवि और शायर

प्लेटफार्म कुछ भी हो, काव्य रसिक खोज लेंगे मस्ती की अड़ी



विजय विनीत
वाराणसी। कोरोना संकट ने बनारस के तमाम कवियों और शायरों की पेशानी की लकीरें गहरी कर दी हैं। साथ ही उस श्रुति परंपरा को भी लुप्त कर दिया है, जिस पर बनारस का मशहूर ठहाका गूंजता था। कवियों और शायरों को आमने-सामने सुनने, तालियां बचाने और चिर परिचित ठहाके लगाने की रवायत को कोरोना ने विस्मृत कर दिया है। सूक्ष्म दृष्टि से देखें तो इस महामारी ने कवि सम्मेलन और मुशायरों की परंपरा को मटियामेट कर दिया है। बनारस के कवियों और शायरों को भी लगता है कि अवांछित लाकडाउन के अनचाहे कोख से जन्मा सोशल डिस्टेंशिंग लंबे समय तक न तो कवि सम्मेलन होने देगा, न मुशायरे। ऐसा हुआ तो समझिए  न मंच रहेगा, न कदरदान। आएगा सोशल मीडिया का स्टेज। नाम कुछ भी हो, लेकिन काशी के रचनाकारों को इसे गले लगाने के लिए अपनी बांहें उतनी ही उत्सुक रखनी होगी जितनी मुद्दतों बाद प्रेयसी को प्रेमी गले लगाते वक्त पेश करता है। ऐसा न हुआ तो पेशा भी जाएगा और पेट की पुकार भी...।
बनारस में श्रुति परंपरा सदियों पुरानी है। यह ऐसा शहर रहा है जहां हर तीज-त्योहार पर मंच सजते रहे हैं। कहीं संगीत की महफिलें सजती थीं तो कहीं कवियों और शायरों की। बाबू भारतेंदु हरिश्चंद्र के बाद मुंशी प्रेमचंद और जयशंकर प्रसाद ने बनारस के लोगों को मंच मुहैया कर उसी से बांध दिया। शायद इन्हें समाज की बहुत अधिक चिंता थी। इनके घरों पर अक्सर कवियों-साहित्यकारों का जुटान होता था। साहित्यकार ठाकुर प्रसाद सिंह से लगायत विद्या निवास मिश्र के घरों पर बैठकी हुआ करती थी। कोरोना संकटकाल में लोकमंच की यह रवायत टूट गई। इस परंपरा के टूटने से बनारस के तमाम बुद्धजीवी आहत हैं....परेशान हैं।



बीएचयू में प्रोफेसर अजय कुमार श्रीवास्तव को ही लें। ये बनारस के जाने-माने कवि हैं। इनका तखल्लुस है चकाचौंध ज्ञानपुरी। पहचान भी इसी नाम से है। अपनी ओजपूर्ण कविताओं से समाज में अपनी पहचान बनाई है। सोशल मीडिया के मंच की ताकत से नावाकिफ भी नहीं। फरमाते हैं, ‘बनारस के जो कवि और शायर नेटफ्लिक्स, हेशफ्लिक्स, अल्ट बालाजी, अमेजॉन प्राइम सरीखे प्लेटफॉर्म पर सबसे पहले उतरेंगे, वही दुनिया में छा पाएंगे। वेब सीरिज, यू-ट्यूब, डेली मोशन ऐसे प्लेटफार्म हैं जो बनारसी कवियों और शायरों की मुश्किलों को आसान बना सकते हैं। ये मंच लंबे समय तक परफार्म करने का भरपूर मौका देते हैं। ’
बनारस दुनिया की सांस्कृतिक राजधानी है। इस वजह से कोरोना का खौफ और सोशल डिस्टेंशिंग का असर इस शहर के कवियों और शायरों पर सबसे ज्यादा है। पूर्वांचल के हजारों कवि और शायर योगी सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं। इनका तर्क भी वाजिब है। जब तक इनके लिए कोई एक निश्चित व्यवस्था सुनिश्चित नहीं होती, जीवनयापन का प्रबंध तो करना ही चाहिए।  बनारस में कवियों-शायरों की तादाद सैकड़ों में है। इनकी जिंदगी पारश्रमिक से ही चलती रही है। जब नकदी की रवानी नहीं रहेगी तो आखिर घर की गाड़ी कैसे चलेगी? रोटी का सुलगता सवाल दिल की उमंगों की बगिया जला देता है। बनारस के कवि और शायर चाहते हैं कि उनके लिए एक बड़ा कोष बनाए जाए। ऐसा कोष, जिसमें कवियों- शायरों, संगीतकारों, कलाकारों को आर्थिक सुविधाएं मुहैया हो। अगर ऐसा नहीं किया गया तो बनारस में यह समुदाय पूरी तरह से अपंग हो जाएगा।



स्मार्ट नजरिया रखने वाले कवियों और लेखकों का तर्क कुछ अलग है। चकाचौध ज्ञानपुरी साफ-साफ कहते हैं, ‘परिवर्तन दुनिया का सार्वभौमिक नियम है। कोरोना के संकट के बाद बनारस की श्रुति परंपरा को भूल जाएं तो ही अच्छा है। अगर कोरोना ने जमाने को बदला है तो कवि, शायर, संगीतकार, कलाकार, लेखक और पत्रकार किसी और दुनिया से थोड़ी आए हैं। जहां चाह वहां राह की डफली तैयार है। हमारे लिए भी ग्लोबल मंच की गंगा मौजूद है। दरकार है तो उसमें गोता मारने की। यू-ट्यूब, डेली मोशन, वेब सीरीज समेत तमाम नए मंच मौजूद आपका इंतजार कर रहे हैं। वक्त की नजाकत है इन मंचों पर दमदार प्रस्तुति देने की।’
बनारस में कुछ दशक पहले मनोरंजन के साधन सीमित थे। न तो टेलीविजन था, न कोई दूसरा साधन। उस दौर में बनारस में हर गली और चौराहे पर होती थी रामलीला। हास्य कवि सम्मेलनों और मुशायरों में समूचा बनारस ही उमड़ जाता था। उन दिनों थिएटर और नुक्कड़ नाटक की स्वीकार्यता बहुत ज्यादा थी। कवि सम्मेलनों की दुनिया जिंदा थी। छोटे पर्दे की धमक तेज हुई। इंटरनेट का युग आया तो मनोरंजन के तमाम साधन बदल गए। कोरोना संकट से उपजी समस्या ने बनारस के उन ढेर सारे लोगों को सड़क पर खड़ा कर दिया है जिनकी जिंदगी शायरी और कविताएं हुआ करती थी। ऐसे समय में वो शायर और कवि क्या करेंगे? कैसे चलेगी इनकी आजीविका?



बनारस के जाने-माने पत्रकार पदमपति शर्मा कहते हैं कि बनारस में न तो कविताएं मरेंगी और न शायरी। बाजार जैसे ही स्वस्थ और सुचारू होगा, सब कुछ फिर पटरी पर आ जाएगा। हालांकि ये भविष्य की बातें हैं। इसे भविष्य ही तय करेगा।
पदमपति कहते हैं, ‘दुनिया में आॅनलाइन काव्य रसिक श्रोताओं की कमी नहीं है, लेकिन पूर्वांचल के कवि और शायर यू-ट्यूब और डेली मोशन पर नहीं हैं। गिने-चुने लोग फेसबुक पर अपनी कविताएं डाल रहे हैं। फेसबुक मन की भड़ास निकालने का अवसर तो दे सकता है, लेकिन पेट की आग नहीं बुझा सकता। यह बात सोचने, समझने और गौर करने की है। जूम और वेबिनार जैसे मंच कवियों को श्रोताओं से जोड़ सकते हैं, लेकिन इसके जरिए उनकी आर्थिक मुश्किलें कतई दूर नहीं हो सकती हैं।’
बनारस में लाकडाउन में अधिसंख्य कवियों और शायरों ने नई शानदार रचनाएं लिखी हैं। इन रचनाओं को सुनने और कवियों-शायरों पर रीझने वाले श्रोता नहीं है। वो श्रोता जो इनके हर अंदाज पर तालियां नवाजते थे। वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कुमार कहते हैं कि कोरोना सिखा रहा है कि समय के साथ चलिए। जब हर कोई चलने लिए तैयार है, तो बनारस के कवि-कलाकार पीछे क्यों हैं? अगर आप नए प्लेटफार्म पर आएंगे तो इसके दो फायदे होंगे। एक तो यू-ट्यूब और डेली मोशन पर छा जाएंगे। साथ ही आय के नए स्रोत बनेंगे। सिर्फ बनारस ही  नहीं, दुनिया भर में प्रसिद्धि मिलेगी। नए श्रोता मिलेंगे। ऐसे लोगों की तादाद बहुत अधिक है जो आज भी अच्छी कविताएं और शायरी सुनना पसंद करते हैं।  



प्रदीप कहते हैं, -भविष्य में छोटे पर्दे के साथ-साथ वेब सीरीज जैसे नेटफ्लिक्स, हेशफ्लिक्स, अल्ट बालाजी, अमेजॉन प्राइम सरीखे प्लेटफॉर्म पर कवियों और शायरों को देर किए बगैर उतरने की कोशिश करनी चाहिए। वेब सीरीज का भी अपना अलग मिजाज है। इस प्लेटफार्म पर कंटेंट की गुणवत्ता के आधार पर आर्थिक मुनाफा होता है।
सचमुच, निकट भविष्य में वेब सीरीज का दौर आने वाला है। दो-तीन सौ रुपये महीने देकर सब्सक्राइबर अपने पसंदीदा कार्यक्रम को देख सकेंगे। चाहे वो कविता हो...शायरी हो या फिर संगीत। बनारस के कवियों और शायरों को चाहिए कि वो जल्द से जल्द इन मंचों का इस्तेमाल करें। वेब-सीरिज एक भविष्य का ऐसा मंच है जो उन्हें नई ताकत देगा। समूची दुनिया में ओटीटी प्लेटफॉर्म की दस्तक तेज होती जा रही है। वीडियो स्ट्रीमिंग इंडस्ट्री को भी पंख लग रहे हैं। हर किसी को समझ में आ रहा है कि सुलभ मनोरंजन का सशक्त माध्यम है ओवर-द-टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म। ओटीपी वो माध्यम है जिसके जरिए आॅनलाइन कंटेंट किसी के पास पहुंचाया जा सकता है। इसका लाभ यह है कि जो दर्शक जिस कवि अथवा शायर के फैन होंगे, उसे सुनने के लिए वो तयशुदा रकम भी अदा करेंगे।



जाने-माने कवि कुमार विश्वास को ही लीजिए। ये देश के ऐसे कवि हैं जो आधुनिक तकनीक से लैस हैं। यही वजह है कि इन्हें जितना मुनाफा कवि सम्मेलनों से नहीं होता, उससे कई गुना ज्यादा डिजिटल प्लेटफार्म पर से होता है। ये जिन मंचों पर कविताएं सुनाते हैं उसे यू-ट्यूब समेत तमाम प्लेटफार्म पर डालते हैं। यू-ट्यूब और वेब सीरिज के प्लेटफार्म ने कुमार विश्वास को दुनिया भर में पहुंचा दिया है। शायद ही कोई ऐसा देश होगा जहां उनके दर्शक नहीं होंगे। दरअसल कुमार विश्वास सिर्फ श्रुति परंपरा पर ही आश्रित नहीं रहे। इन्होंने समय की नब्ज को पकड़ा। वक्त को पहचाना और सोशल मीडिया को औजार बनाकर सफलता के शिखर पर पहुंच गए।
आभासी दुनिया की ताकत को पहचानकर नेटफ्लिक्स और वाल्ट डिज्नी (हॉटस्टार) भारत में अपने कंटेंट का विस्तार कर रहे हैं। इसके लिए हाल में उन्होंने कई मिलियन डॉलर का निवेश किया है। ओटीटी के माध्यम से ये बनारस ही नहीं, समूचे देश के बड़े बाजार में अपनी जगह सुनिश्चित करना चाहते हैं। जी-5, आॅल्ट बालाजी, अमेजन प्राइम, टीवीएफ सरीखे घरेलू प्लेटफॉर्म भी घरेलू दर्शकों को रिझाने की कवायद में जुटे हैं। अब क्षेत्रीय भाषाओं में कटेंट तैयार किए जा रहे हैं। घरेलू प्लेटफॉर्म पर सब्स्क्रिप्शन आसान और सस्ता है। कोरोना संकट के बावजूद वीडियो स्ट्रीमिंग इंडस्ट्री भी तेज रफ़्तार में दौड़ने को तैयार है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कुछ ही सालों में का भारतीय बाजार में 21.82  फीसदी हिस्सा वीडियो स्ट्रीमिंग इंडस्ट्री का होगा। साल 2023 तक यह 11 हजार 977 करोड़ रुपये की इंडस्ट्री बन जाएगी।


साहित्यकार-लेखक धर्मेंद्र सिंह भी चाहते हैं कि बनारस के कवि-शायर और कलाकार स्मार्ट उपकरणों के जरिए नए बाजार में उतरें। सोशल मीडिया के मंच पर ग्लोबल मुकाबला होता है। इसलिए बनारसी कवियों और कलाकारों को अपने घटकों (कंटेंट) की गुणवत्ता सुधारनी होगी। लाकडाउन ऐसा समय है जिसमें अवसर है। जरूरत है तो तकनीक को अपनाने की। जब नई पीढ़ी तकनीकी रूप से समृद्ध है तो कवि और शायर पीछे क्यों रहें?



...राम अपना पता दीजिए, कोरोना से बचा लीजिए


- जारी लॉक डाउन में कवि भी डिजिटल प्लेटफॉर्म पर हैं सक्रिय


- ऐसे माहौल में मानसिक खुराक है बेहद जरूरी : ओम धीरज


- भौतिक दूरी में रहकर सामाजिक रूप से जुड़ा रहना आवश्यक


- वर्षों से फेसबुक, यूट्यूब और इंस्टाग्राम पर हो रहे ऐसे कार्यक्रम


सुरोजीत चैटर्जी


प्रतिष्ठित कवि डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने गत दिनों सोशल मीडिया पर आयोजित एक कवि सम्मेलन में बड़ी ही सामयिक रचना पेश की। उन्होंने पढ़ा कि ‘...राम इतना बता दीजिए, तुम्हें ढूंढें तो ढूंढें कहां, अपना पता बता दीजिए, कोरोना से बचा लीजिए। रोज आती थी द्वारे तेरे अब तो मंदिरों पर हैं ताले पड़े, कभी मेरे घर की भी राह लीजिए, राम इतना बता दीजिए।’ वैश्विक महामारी कोरोना ने प्रत्येक व्यक्ति को सोशल या फिजिकल डिस्टेंसिंग के लिए बाध्य कर दिया है। ऐसी स्थिति में विभिन्न क्षेत्र में आॅनलाइन आयोजनों को काफी बढ़ावा मिल रहा है। स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई से लेकर विभिन्न स्तर की कार्यशालाएं ही नहीं वर्तमान में चल रहे लॉक डाउन में सरकारी स्तर पर भी मोबाइल एप आदि के जरिये बैठकें हो रही हैं।
वहीं, कला-संस्कृति और साहित्य इससे कैसे अछूता रह सकता है। डिजिटल प्लटेफॉर्म्स पर कहीं नाटक हो रहे हैं तो कहीं नृत्य के वर्कशॉप। वहीं, हस्तकला की ट्रेनिंग चल रही है तो कहीं कुछ और। इसी प्रकार कवि और शायर भी सोशल मीडिया पर अब अधिक सक्रिय हो गये हैं। हालांकि सोशल डिस्टेंसिंग की अनिवार्यता तो कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण अभी लागू है लेकिन फेसबुक, यूट्यूब के बाद इंस्टाग्राम पर भी कवि सम्मेलन और मुशायरे पहले से ही होते रहे हैं। जानकार लोग बताते हैं कि भारत में सन 2010 के बाद सोशल मीडिया पर कवि सम्मेलन और मुशायरे के कार्यक्रमों की शुरूआत हुई। उससे भी पहले मंचीय कवि सम्मेलनों के लिए आॅनलाइन टिकटों का आरक्षण ‘बुक माई शो’आदि पर होते रहे।


सन 2014 के अगस्त, सितंबर, नवंबर के बाद जून 2015 में आॅनलाइन कवि सम्मेलन और मुशायरे जारी रहे। कई फेसबुक अकाउंट्स पर सदस्यों को पहले से ही बता दिया जाता था कि अमुक दिन अमुक समय में कवि सम्मेलन होगा, कृपया पहले से ही तैयार रहें और अपने-अपने एफबी अकाउंट्स को समय से लॉगइन कर लें। उसके बाद कवि तय वक्त पर कार्यक्रम पेश करते या अपनी-अपनी रचनाएं लिखते। उस पर काव्य और साहित्य प्रेमियों के कमेंट्स आते। यह सिलसिला थमा नहीं है, जारी है लेकिन कई स्वरूपों में। बीते अप्रैल माह में सोशल मीडिया पर ऐसे ही एक आयोजन में एक कवि एमआर चिश्ती की पंक्तियों का जिक्र हुआ कि एक हवेली रोती है दिल के अंदर, जब से तुमने अना-जाना छोड़ दिया।


वहीं, कवि सागर परिमल पेश किया कि मैं बनाता तुझे हमसफर जिंदगी, काश आती कभी मेरे घर जिंदगी, ‘पर्दे हजार डाल ले खिड़की पे तू मगर, दुनिया को पता है कि तेरा यार कौन है’। इस वक्त जारी लॉक डाउन के बीच गत दिनों हरियाणा में ग्रामोदय अभियान और हरियाणा ग्रंथ अकादमी ने संयुक्त रूप से आॅनलाइन आयोजन किया। इधर, बनारस के कई कवि भी सोशल मीडिया पर कवि सम्मेलनों आयोजित कर रहे हैं लेकिन उनकी स्तरीयता पर सवाल उठ रहे हैं। देश के जानेमाने कवि ओम धीरज जल्द ही वेबिनार के जरिये कवि सम्मेलन और साहित्यिक व्याख्यान के आयोजन की तैयारियों में जुटे हैं। बोले, उस कार्यक्रम में देश के प्रमुख कवि हिस्सेदारी करेंगे। जिनमें डॉ. माहेश्वर तिवारी, बुद्धिनाथ मिश्र, डॉ. इंदीवर, शिव कुमार पराग, जयकृष्ण राज प्रसाद, रविनंदन सिंह और भारतेंदु मिश्र आदि हैं।


ओम धीरज कहते हैं कि कोरोना महामारी का यह दौर शायद जल्दी खत्म नहीं होगा। हमें फिलहाल इसी के साथ भौतिक दूरी बनाकर जीना है। साहित्य-कला-संस्कृति से जुड़े लोगों को मानसिक खुराक की आवश्यकता है। यदि सोशल मीडिया के जरिये वेबिनार (सेमिनार) जैसे कार्यक्रम नहीं होंगे सोशल या फिजिकल डिस्टेंसिंग के बीच सामाजिक दूरी बढ़ेगी और जीना दूभर हो जाएगा। इसलिए भौतिक दूरी में रहकर भी सामाजिक रूप से जुड़े रहने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लेने बेहद जरूरी है।


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