चीन का कर्ज़ चुकाते नेपाल के प्रधानमंत्री ओली


 

डॉ कुंवर पुष्पेंद्र प्रताप सिंह

 

भारत को बड़ा भाई मानने वाला छोटा भाई नेपाल भी अब आँख दिखाने लगा है I ऐसा वो अपने नए दोस्त और नए बड़े भाई चीन के उकसाने पर कर रहा है । किसी ज़माने में कहा जाता था की भारत और नेपाल की संस्कृति एक है इसलिए हम दोनों ही जुड़वाँ हैं । प्रभु श्री राम से विवाह के बाद सीता जी भारत आयीं और नेपाल एवं भारत की सांस्कृतिक एवं धार्मिक समानता, व्यापार, एवं भारत में नौकरियों में नेपालियों को विशेष प्रावधान दिया गया तबसे ही नेपाल के साथ भारत का ‘बेटी-रोटी’ का सम्बन्ध एक मजबूत रिश्ता बन गया I जिसकी मिसाल आज भी दी जाती है। परन्तु आज यह मात्र सैद्धांतिक बातों तक ही नजर आता है । भारत के साथ वर्षों से मधुर संबंध साझा करने वाले नेपाल के रुख में अचानक आई तल्खी नई दिल्ली के लिए चिंता का विषय तो है ही, साथ ही यह सवाल भी खड़े करती है कि आखिर पड़ोसी नेपाल को एकदम से हुआ क्या? गौर करने वाली बात यह है कि नेपाल ने ऐसे वक्त पर सीमा विवाद को हवा दी, जब भारत और चीन की सेना लद्दाख में आमने-सामने हैं । इससे कहीं न कहीं यह संदेश जाता है कि काठमांडू में होने वाले फैसलों में चीन का दखल काफी बढ़ गया है । और यदि नेपाल के पिछले राजनीतिक संकट पर ध्यान दें, तो चीन के साथ उसके गठजोड़ की आशंका को बल मिलता है ।  

 

 चीन की शह पर ओली ने हाल ही में संसद में अपने ज़हरीले भाषण में भारत पर हमला करते हुए कहा है कि भारत का वायरस चीनी और इटली की तुलना में अधिक घातक है। श्री केपी ओली ने यह भी कहा कि कालापानी-लिपुलेख और लिंपियाधुरा त्रिपक्षीय नेपाल-भारत-चीन में हैं और किसी भी कीमत पर नेपाल के नक्शे में शामिल होंगे। 8 मई 2020 को जब भारत के रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने कैलाश मानसरोवर रोड का उद्घाटन किया था, जिस पर नेपाल ने आपत्ति जताई थी । नेपाल ने अब एक नया नक्शा तैयार किया है, जिसमें इन तीन क्षेत्रों को शामिल किया गया है और जब भारत ने पिछले सप्ताह लिपुलेख में कैलाश मानसरोवर रोड लिंक का उद्घाटन किया, तो इस पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई गई। नेपाल इन क्षेत्रों पर दावे करने के लिए जो दस्तावेज बनाता है, वह उससे गायब हैं । नेपाल के प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा नेपाल के हैं । उन्होंने इन  क्षेत्रों को भारत से राजनीतिक और कूटनीतिक प्रयासों से ‘‘वापस लेने’’ की प्रतिबद्धता जताई थी । वहीं, उनकी अध्यक्षता में उनके मंत्रिमंडल ने एक नए राजनीतिक मानचित्र को मंजूर किया जिसमें लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को नेपाल के क्षेत्र के रूप में दर्शाया गया है । ओली ने कहा, अब यह मुद्दा शांत नहीं होगा, यदि कोई इससे नाराज होगा तो भी उसकी चिंता नहीं है । हम किसी भी कीमत पर इस जमीन पर अपना दावा पेश करेंगे।" 

 

   नेपाल के प्रधानमंत्री ने संसद में कहा कि ये क्षेत्र नेपाल के हैं ‘‘लेकिन भारत ने वहां अपनी सेना रखकर उन्हें एक विवादित क्षेत्र बना दिया है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘भारत द्वारा सेना तैनात करने के बाद नेपालियों को वहां जाने से रोक दिया गया ।’’ लिपुलेख दर्रा नेपाल और भारत के बीच विवादित सीमा, कालापानी के पास एक दूरस्थ पश्चिमी स्थान है. भारत और नेपाल दोनों कालापानी को अपनी सीमा का अभिन्न हिस्सा बताते हैं । भारत उसे उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का हिस्सा बताता है और नेपाल इसे धारचुला जिले का हिस्सा बताता है ।

 

  कुछ दिनों पहले, भारतीय सेना प्रमुख जनरल मनोज नरवणे ने संकेत दिया कि नेपाल मानसरोवर के रास्ते पर लिपुलेख को लेकर नेपाल किसी और के इशारे पर विरोध कर रहा है । ओली ने भारतीय सेना प्रमुख मनोज नरवणे के बयान पर भी प्रतिक्रिया दी ओली ने कहा, हम जो कुछ भी करते हैं, अपने मन से करते हैं I ओली ने कहा कि वह भारत के साथ मधुर संबंध चाहते हैं लेकिन वह पूछना चाहते हैं कि वे सत्यमेव जयते मानते हैं या सिंहमेव जयते I ओली का ये तंज भारत की सैन्य ताकत को लेकर था I

 

 नेपाल के पीएम ने कहा, ऐतिहासिक गलतफहमियों को खत्म करने का विचार केवल भारत के साथ दोस्ती को गहरा करना है। इस मुद्दे पर चीन के साथ भी बातचीत हो रही है और नेपाल ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। कुछ दिनों पहले पीएम ओली ने नेपाल में चीन के राजदूत से मुलाकात की थी। ओली की कम्युनिस्ट पार्टी की चीन से ज्यादा करीबी रही है I  कुछ रिपोर्ट्स में कहा जा रहा था कि इस महीने जब ओली की पार्टी के भीतर बगावत हुई थी तो चीनी राजदूत होउ यंकी ने उनकी कुर्सी बचाने में मदद की I ओली ने इस आरोप पर कहा, कुछ लोग कहते हैं कि एक विदेशी राजदूत ने मेरी सरकार गिरने से बचा ली, ये नेपाल के लोगों द्वारा चुनी हुई सरकार है और कोई मुझे बाहर नहीं फेंक सकता है I

 

 यहाँ इस बात का जिक्र करना अति आवश्यक है की मई की शुरुआत में नेपाल में राजनीतिक संकट गहरा गया था और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने सार्वजनिक रूप से प्रधानमंत्री के.पी शर्मा ओली के इस्तीफे की मांग शुरू कर दी थी । कहा जाता है कि इस संकट से बचने के लिए ओली ने चीन से मदद मांगी थी, और उसी मदद की कीमत वह भारत के साथ सीमा विवाद खड़े करके चुका रहे हैं ।

 

 चीनी राजदूत होउ यांकी ने ओली की सरकार को बचाने के लिए कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ कई बैठकें कीं और संकट को हल किया था । इसके बदले में उसने चीन को निशाना बनाने वाले एक अंतरराष्ट्रीय आंदोलन के खिलाफ नेपाल का समर्थन भी मांगा था । जानकारों का मानना है कि भारत के साथ विवाद के पीछे नेपाल नहीं, बल्कि व्यक्तिगत रूप से ओली हैं । ओली ने पार्टी चेयरमैन और प्रेसिडेंट दोनों पदों पर कब्जा करने के लिए यूएमएल और एमसी की विलय प्रक्रिया में हेरफेर किया था । जबकि उन्होंने दूसरों के लिए एक व्यक्ति, एक पद के सिद्धांत को लागू किया, लेकिन खुद उस पर अमल नहीं किया । इस मुद्दे पर भी विपक्षी नेताओं ने काफी हंगामा मचाया था ।

 

  चालबाज़ ओली ने नेपाल पर एकछत्र राज के लिए कई चालें चलीं । उन्होंने अपने करीबी विश्वासपात्र को राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठाया । जब माधव नेपाल और प्रचंड द्वारा पार्टी में उनके नेतृत्व का विरोध किया गया, तो ओली ने फिर मदद के लिए चीनी राजदूत से संपर्क साधा । जिसके बाद उन्होंने माधव नेपाल और प्रचंड पर दबाव बनाकर ओली को संकट से निकाला । यही वजह है कि अब प्रधानमंत्री ओली चीन के अहसानों की कीमत भारत के साथ रिश्ते खराब करके चुका रहे हैं ।

 

  यह पूर्णतः स्पष्ट एवं प्रमाणित है कि चीन ने नेपाल की दो सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टियों के गठबंधन में अहम भू‍मिका निभाई । गौरतलब है कि 2018 में ओली और प्रचंड ने नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के निर्माण के लिए हाथ मिलाया था । यहीं से नेपाल की राजनीति में नई दिल्ली के बजाय बीजिंग का प्रभाव बढ़ना शुरू हुआ । पहले नेपाल ने कभी भारत के साथ इस तरह का विवाद खड़ा नहीं किया । उसकी तरफ से कैलाश मानसरोवर यात्रा को सुगम बनाने के लिए लिपुलेख के पास भारत द्वारा किये जा रहे सड़क निर्माण पर आपत्ति नहीं उठाई गई। लेकिन अब वह भारतीय क्षेत्रों को अपना बता रहा है ।

 

  नेपाल के विदेश मंत्रालय ने रोड लिंक खोले जाने के एक दिन बाद एक बयान जारी किया और विरोध दर्ज कराया और भारतीय राजदूत विनय कुमार क्वात्रा को एक राजनयिक नोट भी सौंपा। भारत ने जवाब में कहा कि सड़क निर्माण भारतीय क्षेत्र में ही हुआ है, लेकिन नेपाल के साथ घनिष्ठ संबंध को देखते हुए यह राजनयिक माध्यमों से इस मुद्दे को हल करने का समर्थन करता है। भारत ने यह भी कहा कि दोनों देशों को कोरोना वायरस से सफलतापूर्वक निपटना चाहिए और उसके बाद सीमा विवाद पर बातचीत की जाएगी। हालांकि, नेपाल जल्द से जल्द वार्ता चाहता है।

 

 नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली ने संसद में यह भी उल्लेख किया कि लिपुलेक मार्ग पर सीमा विवाद पर चीन के साथ बातचीत चल रही है। ओली ने कहा, हमारे सरकार के प्रतिनिधियों ने चीनी प्रशासन से बात की है और चीनी अधिकारियों ने कहा है कि भारत और चीन के बीच समझौता तीर्थयात्रियों के लिए एक पुराने व्यापार मार्ग के विस्तार पर था और यह देश की सीमाओं या त्रिपक्षीय की स्थिति को प्रभावित नहीं करेगा।

 

  भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा, "नेपाल सरकार ने आज नेपाल का एक संशोधित आधिकारिक मानचित्र जारी किया है, जिसमें भारतीय क्षेत्र के कुछ हिस्से शामिल हैं। यह एकतरफा अधिनियम ऐतिहासिक तथ्यों और साक्ष्यों पर आधारित नहीं है। राजनयिक के माध्यम से बकाया सीमा मुद्दों को हल करने के लिए।" वार्ता द्विपक्षीय समझ के विपरीत है।” इसके साथ ही भारत ने नेपाल के कदम का विरोध किया है।

 

    भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि नेपाल इस मामले पर भारत की स्थिति से अच्छी तरह वाकिफ है और हम नेपाल सरकार से इस तरह के अनुचित दावे करने से परहेज करने और भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने का आग्रह करते हैं। उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है कि नेपाली नेतृत्व बकाया सीमा मुद्दों को सुलझाने के लिए राजनयिक बातचीत के लिए सकारात्मक माहौल बनाएगा।

 

इन तथ्यों से ये सिद्ध होता है की नेपाल की मंशा इस मुद्दे पर कुछ और है इसलिए भारत को भी अब नेपाल के साथ नये स्तर से कूटनीतिक संबंधों को स्थापित करने की आवश्यकता है नाकि भावनात्मक स्तर पर ।

 

डॉ कुंवर पुष्पेंद्र प्रताप सिंह

आर्थिक, सामाजिक एवं अंतराष्ट्रीय विषयों के जानकार 

इन्होने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के नेपाल अध्ययन केंद्र से 'भारत-नेपाल' सम्बंधित विषय पर शोध (Ph.D.) किया है ।

 

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