भीषण संकट से जूझ रहे काशी के कवि और शायर, रुलाना आसान है, लेकिन जिंदगी को खिलखिलाने वालों के दर्द का किसी को अहसास नहीं

 


हाईटेक होती कविताओं के दौर में भोथरी हो गई कलम की धार, सोशल मीडिया पर नहीं मिलती दाद


पिजरे में कैद कवियों-शायरों का तड़फड़ा रहा चंचल मन, लॉकडाउन ने ‘डाउन हुआ जिंदगी का रस’



जितेंद्र श्रीवास्तव के साथ अश्वनी कुमार


वाराणसी। कोरोना ने अगर किसी के दिलों में गहराई तक नश्तर चुभोया है तो वो हैं कवि और शायर। बातें बहुत हो रही हैं, लेकिन बनारस का ये ऐसा तबका है जिसे लाकडाउन में कोई नहीं पूछ रहा है। मशहूर शायर राहत इंदौरी कोरोना वायरस को लेकर अपने ट्विटर एकाउंट पर लगातार शायरी लिख रहे हैं। इनकी एक शेर है पढ़िए। 'घर की दीवारों से हम बतियाएंगे 21 दिन, शहर में सन्नाटे पर फैलाएंगे 21 दिन...। नाविलें, किस्से, कहानी, टीवी-खबरें, सीरियल...एक-एक कर के अभी उड़ जाएंगे 21 दिन...। लान में रखे हुए गमले पे तुम रखना नज़र, फूल बन कर रोज़ खिलते जाएंगे 21 दिन...,इम्तिहां है देश और इंसानियत का इम्तिहां,  देखना दो रोज़ में कट जाएंगे 21 दिन....। उन गरीबो का भी रखना है हमें पूरा ख्याल, जिनको है ये फिक्र के क्या खाएंगे 21 दिन...।' दरअसल राहत इंदौरी ने कवियों और शायरों की पीड़ा सरकार को सुना दी है। बता दिया है कि आखिर लाकडाउन में वो खाएंगे क्या?



गोदौलिया चौराहे से दशाश्वमेध की ओर जाने वाले मार्ग पर थोड़ी दूर चलने के बाद दाहिनी ओर मुड़ी एक गली के मकान में सुबह के दस बजे अखबार पढ़ते मिले सुदामा तिवारी उर्फ साड़ बनारसी। मुलाकात हुई तो मुस्कुराते हुए बोले,- लॉकडाउन में तू कहां से आ गईला? लॉकडाउन कब तक चली यार...? घरवा वाले कहीं आवे-जाये ना देत हऊन का करी...? बात आगे बढ़ी तो दिल का दर्द जुबां पर उतर ही आया। कहा, बहुत बड़ा मुश्किल का दौर है। कविताओं के दौर को कोरोना चाट गया। डिजिटल कविताएं चल रही हैं, लेकिन वो दिलों में नहीं उतर रही हैं।  हम 80 साल से पेन घिस रहे हैं। अब क्या टच स्क्रीन पर हाथ क्या घुमाएं?


सुदामा तिवारी डीएलडब्ल्यू में जेई थे। साल साल 2002 में रिटायर हो गए थे। लोग इन्हें साड़ बनारसी के नाम से जानते हैं। 15 साल की उम्र से कविता लिख रहे हैं और मंचों पर पढ़ भी रहे हैं। कभी इतनी विकराल समस्या नहीं आई। अब तो कविताएं लिखना-पढ़ना भी खतरा है। हमें वो दिन याद है जब चकाचक बनारसी और धर्मशील चतुर्वेदी बनारस के जाने-माने लीडर कमलापति त्रिपाठी के खिलाफ खुलकर लिखते थे। उन्हें सुना भी देते थे। कलम अब तानाशाहों के आगे नतमस्तक हो गई है। कोरोना के संकट काल में कलम और कागज बेमतलब की चीज हो गए हैं। सारे कार्यक्रम रद हो गए हैं। कहीं से फूटी कौड़ी तक नहीं मिल रही है। चलते-चलते उन्होंने कहा कि आज के दौर में रुलाना बहुत आसान है,  मगर हंसाना बहुत कठिन है।



शिवाला-अस्सी मार्ग पर रविन्द्रपुरी वाली गली के एक मकान के नीचे वाले कमरे में चौकी पर लेटे मिले 65 साल के बुजुर्ग शायर सलीम शिवालवी। ये किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। तपाक से मिले बोले, - लॉकडाउन में शायरी लॉक हो गई है। मुफलिसी के किस्से किसे सुनाएं। बेदर्द हाकिम से सामने फरियाद कैसी? चालीस साल से शायरी लिख रहा हूं। व्यवस्था ने कलम की धार भोथरी कर दी है।


सलीम शिवालवी की शिवाला स्थित चौराहे पर मस्जिद के नीचे रत्न की दुकान हैं। कहते हैं कि सरस्वती की आराधना करने वालों के पास लक्ष्मी नहीं रहतीं। गुजर-बसर करने लिए जो दुकान खोली थी वो भी लाकडाउन में बंद है। कुछ पल रुके। फिर मुस्कुराए। बोले,-हाईटेक का जामाना है कम्प्यूटर पर कविताएं लिखी जाती हैं। सोशल मीडिया पर छाप उतर जाती है। लाइक, कमेंट आने लगते हैं। दाद पर दाद मिलने लगती है। अब वो कद्रदान कहां जो सामने बैठकर दाद दिया करते थे। तंगहाली में घर के सामने चौकी पर बैठकर सब्जी के ठेले वालों से सिर्फ दाम पूछता रहता हूं।



कवि डा. रामसुधार सिंह कहते हैं, ‘कोरोना वायरस के कारण पूरा देश लॉकडाउन कर दिया गया है। सभी अपने घरों में कैद हैं। लॉक डाउन, कोरोना वायरस को तेजी से फैलने से रोकने में बहुत कारगर है। परन्तु इससे दूसरी बीमारी फैलने का खतरा मंडराने लगा है। प्रकृति की अनदेखी से ऐसा हुआ है। ऐसे में कवि सहमा हुआ है। एक कवि होने के नाते घर में कैद होने का फायदा उठाते हुए कविताएं तो लिख रहा हूं। साथ ही महाभारत, श्रीमद् भागवत समेत तमाम धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन भी कर रहा हूं। कुछ यादगार यात्राएं की थी, उसे भी लिपिबद्ध करने में व्यस्त हूं। यहां यह कहना समाचीन होगा कि गांव में भूख से कोई नहीं मरेगा। कोरोना यह सीखा दिया है। यहीं कारण है कि लोगों फिर से गांव की तरफ पलायन करने लगे हैं, जो सुखद है।’



बनारस के उदीयमान कवि विजेंद्र मिश्र उर्फ दमदार बनारसी। लॉकडाउन से पहले तक दिल्ली में तहलका मचाए हुए थे। लंदन में भी शायरी कर आए हैं। बताते हैं, अब सारे कार्यक्रम रद हो गए हैं। सोशल मीडिया पर आयोजन हो रहा है। जहां से बुलावा आता है जुड़ जाता हूं थोड़ा मजाक करते हुए दमदार ने कहा कि सोशल मीडिया में कद्र के हिसाब से पैसा नहीं मिलता। मगर क्या करें? भागे भूत की लंगोटी ही काफी है। कम से कम हमें सुनने वाले तो मिल रहे हैं।


विनायका कोल्हुआ के दमदार को लगता है कि अब एक साल तक कोई भी आयोजन नहीं होगा। कवियों के लिए मुफलिसी का दौर है। ऐसा दौर कभी नहीं देखा था। दो साल के लिए सरकारी आयोजन लाक हो गए हैं। जमाना बदल रहा है। अब तो मोबाइल और कंप्यूटर को दोस्त बनाना ही होगा।



सीएचएस के शिक्षक डा.प्रशांत सिंह भी मंच साझा करते हैं। मुद्दों पर कविताएं लिखते हैं, इसलिए लोग इन्हें जनकवि मानते हैं। कहते हैं कि डिजिटल मंच पर वो बात कहां? वाह-वाह से घर-परिवार का पेट नहीं भरता। व्यंग्य कविताकार कमल नयन मधुकर लॉकडाउन में अपने घर में पैक हैं। कहते हैं कि लॉकडाउन ने काफी कुछ बदल दिया है। कहते हैं कि लॉकडाउन में पुरानी कविताओं को सहेज रहे हैं। 101 कविताओं का संग्रह लाएंगे। आनलाइन कविताओं का नया दौर शुरू हुआ है। लखनऊ के जानकीपुरम में सुंदरम साहित्य परिषद में पहला आनलाइन कविता पाठ हुआ। नवोदित कवियत्री पायल सोनी पुराने कवियों को मंच दे रही हैं। कमल नयन मधुकर का मानना कि लॉकडाउन से रचनाओं को अवसर जरूर मिला, लेकिन इसका रोजी-रोटी पर व्यापक असर पड़ा है। रचनाएं तो जरूर बढ़ी हैं लेकिन आमदनी घट गई है। कहते हैं कि सरकार कवियों-शायरों की मुश्किलें सरकार को सुननी चाहिए। अफसोस यह है कि किसी कवि-शायर का दुखड़ा सुनने कोई आया ही नहीं।



हास्य-व्यंग्य के रचनाकार धर्मप्रकाश मिश्र कोरोना पर कविताएं रच रहे हैं और सोशल मीडिया पर वायरल कर रहे हैं। कहते हैं, ‘लॉकडाउन में कविताओं को जनमानस तक पहुंचाने का संकट है। बस फेसबुक पर मन की भड़ास निकाली जा रही है। कुछ रोज पहले एनटीपीसी ने काव्य गोष्ठी की, लेकिन मिला सिर्फ गिफ्ट का आश्वासन।



कवियित्री पायल सोनी कहती हैं, ‘मन के अंदर का कलाकार कभी मरता नहीं। चाहे कोरोना आ जाए या मरोना। कलम कभी डाउन नहीं होता। समाजसेवा करना है सो करना है। बस माध्यम की जरुरत होती है। इन दिनों वो फेसबुक पर कवियों को मंच दे रही हैं। मगर वो चाहती हैं कि बुजुर्ग कवियों के लिए पेंशन सरकार फंड बनाए, ताकि कठिन दौर में जीवन की नैया को पार लग सकें।’



कवियित्री पूर्णिमा भारती कहती है, ‘पिजरे में कैद होकर बुलबुल की तरह तड़पड़ा रही हूं। कवि का मन है, सो निराश नहीं हूं। रोज नया गीत लिख रही हूं। व्हाट्सएप पर शेयर कर रही हूं। कवियित्री रंजना राय कहती हैं, ‘सुबह आंख खुलती है तो हाथ में मोबाइल आ जाता है। कविताओं से लोगों को जागरूक कर रही हूं। कला विधान नामक संस्था के जरिए लेखन कार्य जारी है, जो अनवरत चल रहा है।’ कवियित्री मंजरी पांडेय कहती हैं, ‘इन दिनों अभाव है, पर सोशल मीडिया तो है न। चाहने वालों से जुड़ी हूं। तारीफ भी मिल रही है। कवि अहमद आजमी कहते हैं, ‘खुद के साथ-साथ समाज में आस बंधाएं हुए हूं। काली स्याह एक न एक दिन छंट जाएंगी और कल सुखद होगा।’ कवि नवाब बनारसी कहते हैं, ‘सरकार कवियों-शायरों की कलम को बचाए।’


Popular posts from this blog

'चिंटू जिया' पर लहालोट हुए पूर्वांचल के किसान

लाइनमैन की खुबसूरत बीबी को भगा ले गया जेई, शिकायत के बाद से ही आ रहे है धमकी भरे फोन

नलकूप के नाली पर पीडब्लूडी विभाग ने किया अतिक्रमण, सड़क निर्माण में धांधली की सूचना मिलते ही जांच करने पहुंचे सीडीओ, जमकर लगाई फटकार