बनारस में खिल उठी मदर नेचर.....क्या काशी के लोग अब समझ पाएंगे स्वच्छ पर्यावरण की कीमत?
कोरोना से लड़ाई में सबसे बड़ा ढाल बना लॉकडाउन, साफ हुई हवा-पानी
विजय विनीत
वाराणसी। कोरोना से लड़ाई में सबसे बड़ी ढाल बना लॉकडाउन। बनारस में भी लंबा लॉकडाउन लागू किया गया। इसके बाद प्रकृति में जो निखार देखने को मिला, उससे हर कोई चकित है। गंगा निर्मलीकरण के लिए सरकार की जो परियोजनाएं हजारों करोड़ रुपये खर्च कर परवान नहीं चढ़ पाईं, उसे प्रकृति ने इस लंबे लॉकडाउन में खुद ही कर लिया। बनारस में गंगा की धारा अब सचमुच निर्मल है। गंगाजल पावन नजर आता है। जीवनदायिनी नदी का पानी इतना निर्मल हो गया है, जिसे पिया जा सकता है। वही पानी जो लाकडाउन से पहले आचमन योग्य भी नहीं था। गंगाजल में यह बदलाव कितना और क्यों हुआ? क्या है इन सारी चीजों का वैज्ञानिक कारण, जानिए इस खास रिपोर्ट में।
बनारसियों के लिए लाकडाउन अब तक का सबसे मुश्किल भरा दौर है, लेकिन प्रकृति ने इतनी शुद्ध हवा और पानी कभी नहीं दिया था। पिछले पचास सालों में भी गंगा इस तरह खिलखिलाकर कभी नहीं बही। शायद गंगा को कोरोना और लाकडाउन का इंतजार था। गंगा का पानी पारदर्शी हो गया है। मटमैला रंग अब नीला आसमान सरीखा दिख रहा है। यह वही गंगा है, जिसके बारे में पीएम नरेंद्र मोदी ने 24 अप्रैल 2014 को कहा था, मुझे यहां किसी ने नहीं भेजा और न ही मैं स्वयं यहां आया हूं...। गंगा को निर्मल बनाने के वादे के साथ मोदी ने सत्ता संभाली। फिर से साफ और स्वच्छ बनाने के वादे के साथ मई में सत्ता संभाली। नमामि गंगे योजना के नाम पर बीते साढ़े पांच सालों में आठ हजार करोड़ खर्च किए गए, लेकिन गंगा मैली की मैली ही रहीं।
लेकिन अब गंगा का पानी पूरी तरह निर्मल हो गया है। रंग बदल गया है। वो जलचर भी अब दिखने लगे हैं जिन्हें लुप्त मान लिया गया था। बनारस में हिलोरें ले रही गंगा की अठखेलियां देखकर हर कोई अचंभित है। शायद गंगा को इसी दिन का इंतजार था।
लॉकडाउन ने गंगा का जो रंग बदला है उसे देख काशी के लोग झूम रहे हैं। उन लोगों की खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं है, जो इस जीवनदायिनी नदी की तलहटी में बसे हैं। आंकड़े बताते हैं कि बनारस में गंगा चालीस से पचास फीसदी साफ हो चुकी हैं। गंगा के वो जलचर, जो प्रदूषण की भेंट चढ़ते जा रहे थे, सीढ़ियों पर तैरने लगे हैं। गंगा की मछलियां आटे की गोलियां उदरस्थ गंगा में गहरी डुबकी लगाती नजर आती हैं। आलम यह है कि गंगा बेहद खुश हैं और उनकी अठखेलियां हर किसी को रिझा रही हैं। घाटों पर बंधी नावों को ठोकर मारती और हिलोरें लेती गंगा के नए रंग-रूप का हर कोई दीवाना है।
क्या कहते हैं वैज्ञानिक?
बीएचयू के वैज्ञानिक प्रो.बीडी त्रिपाठी कहते हैं कि गंगा का पानी अब स्नान और आचमन के योग्य है। प्रो. त्रिपाठी महामना मालवीय गंगा, नदी विकास एवं जल संसाधन प्रबंध शोध केंद्र के चेयरमैन हैं। लाकडाउन के बाद गंगा जल में हुए बदलाव का उन्होंने गहन अध्ययन किया है। कहते हैं, -गंगा चालीस फीसदी तक साफ हो गई है। शायद 50 साल पहले भी बनारस में गंगा इतनी अविरल और निर्मल नहीं रही होंगी। कलकल करती गंगा की अलबेली धुन सालों बाद सुनी जा रही है। लेकिन यह धुन आगे तभी सुनने को मिलेगी जब बनारस के लोग खुद को बदलेंगे।
उत्तर प्रदेश पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने भी बनारस में गंगा जल पर विस्तृत रपट तैयार की है। यह रपट गंगा की निर्मलता की बड़ी कहानी सुनाती है। बोर्ड के क्षेत्रीय प्रबंधक कालिका सिंह ने पहले हमें 15 मार्च 2020 की रिपोर्ट दिखाई। अप स्टीम में पानी की अम्लीयता (पीएच) 8.19 और डिजाल्ब आक्सीजन की मात्रा 8.8 प्रति मिली लीटर थी। बीओडी की मात्रा 2.8 मिली ग्राम प्रति मिली लीटर और टोटल कालीफार्म 2600 एमपीएन प्रति 100 मिली लीटर रही। जबकि डाउन स्टीम में पानी काफी गंदा था। अम्लीयता (पीएच) 8.34 और डिजाल्ब आक्सीजन की मात्रा 8.2 प्रति मिली लीटर और बीओडी की मात्रा 3.7 मिली ग्राम प्रति मिली लीटर और टोटल कालीफार्म 24000 एमपीएन प्रति 100 मिली लीटर रही। देखिए, अब गंगा का हाल किस कदर बदल गया है।
इस हद तक निर्मल हो गईं गंगा
गंगा जल का ताजा आंकड़ा नौ मई 2020 का है। अप स्टीम में पानी की अम्लीयता (पीएच) 8.35 और डिजाल्ब आक्सीजन की मात्रा 9.1 प्रति मिली लीटर थी। बीओडी की मात्रा 2.4 मिली ग्राम प्रति मिली लीटर और टोटल कालीफार्म 1300 एमपीएन प्रति 100 मिली लीटर रही। बनारस में गंगा के डाउन स्टीम में स्थिति अब काफी बदल गई है। आंकड़ा देखिए। अम्लीयता (पीएच) 8.48 और डिजाल्ब आक्सीजन की मात्रा 8.3 प्रति मिली लीटर और बीओडी की मात्रा 3.8 मिली ग्राम प्रति मिली लीटर और टोटल कालीफार्म 21000 एमपीएन प्रति 100 मिली लीटर रही।
इस बीच संकटमोचन फाउंडेशन की स्वच्छ गंगा रिसर्च लेबोरेटरी ने भी गंगा जल की जांच की तो पानी के स्तर में सुधार मिला। फाउंडेशन के अध्यक्ष एवं बीएचयू के प्रोफेसर विशंभरनाथ मिश्र के मुताबिक उन्होंने बनारस के दो घाटों पर छह मार्च और चार अप्रैल को गंगाजल के सैम्पल लिए थे। रिपोर्ट में काफी अच्छे नतीजे सामने आए।
पूरी तरह बदल गया नदी का रंग
गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के विशेषज्ञ प्रो.बीडी त्रिपाठी के मुताबिक, सामान्य दिनों में बनारस में हमेशा करीब एक लाख तीर्थयात्री रहते हैं। लाकडाउन में भीड़ जा चुकी है। इससे गंगा का रंग बदल है। प्रो.त्रिपाठी की मानें तो काशी में शवों के जलने में 40 प्रतिशत से ज्यादा कमी आई है। काशी में सिल्क फैब्रिक और आइवरी वर्क्स की करीब 1200 फैक्ट्रियां हैं। ये फैक्ट्रियां करीब 25 एमएलडी गंदा पानी छोड़ती थीं। लाकडाउन की वजह से कैमिकलयुक्त पानी अब गंगा में नहीं मिल रहा है। पांच सौ से अधिक मोटर के कारखाने भी बंद हैं। काशी के कई गंगा घाटों को धोबियों ने अपना बना लिया था। कपड़ा धुलाई भी बंद है। पानी का उपयोग और दोहन घटा है। इससे गंगा का प्रवाह बढ़ गया है। इसी वजह से एक मीटर की गहराई तक मछलियां दिख रही हैं। गंगा में गिरने वाले नालों को छोड़ दिया जाए तो बाकी स्थानों पर गंगा 30 फीसदी से अधिक साफ हो गई है।
गंगाजल में अभूतपूर्व सुधार
आईआईटी बीएचयू केमिकल इंजिनियरिंग और टेक्नॉलजी विभाग के प्रफेसर डॉ. पीके मिश्रा ने कहा, 'गंगा में होने वाले कुल प्रदूषण में उद्योगों की हिस्सेदारी 10 फीसदी होती है। वो कहते हैं,-मंदिर और इंडस्ट्रियों पर ताले और शवों के जलने में आई कमी ने काशी की गंगा को फिर से निर्मल बनाया है। गंगा की स्थिति में 40-50 फीसदी सुधार दिख रहा है। लॉकडाउन की वजह से उद्योग धंधे बंद हैं, इसलिए स्थिति बेहतर हुई है। अगर 24 मार्च को हुए लॉकडाउन के पहले से अब के हालात की तुलना की जाए तो एक अच्छा सुधार दिख रहा है।
बनारस में करीब 35 नालों से हर रोज 350 मिलियन लीटर गंदा पानी गंगा में जाता है। इसके बावजूद गंगा जल की गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ है। गंगाजल में आक्सीजन की मात्रा बढ़ी है और कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा कम हुई है। इस वजह से गंगा जल अब मछलियों और अन्य जलीय जीवों के लिए अनुकूल है।
गंगा के साफ होने से वाराणसी के लोग काफी खुश नजर आ रहे हैं। दशाश्वमेध घाट पर मूर्तियों का कारोबार करने वाले सुरेश तुलस्यान ने खुशी जताते हुए कहा, 'पहले और अब के गंगाजल में काफी अंतर है। आज पानी साफ दिख रहा है। इसकी बड़ी वजह है फैक्ट्रियों का बंद होना। लोग घाटों पर नहीं नही रहे हैं। अब से पहले हमने इतनी निर्मल गंगा कभी नहीं देखी। सब कुछ सही रहा तो जल्द बनारस अपने पुराने दिनों में लौटेगा। हमने सोचा भी नहीं था कि लॉकडाउन का गंगा पर ऐसा असर होगा। हमें गंगा में साफ पानी देखकर खुशी होती है। अब इस जल को आगे शुद्ध रखना भी एक बड़ा चैलेंज होगा। देखना यह होगा कि सरकार और व्यवस्था गंगा की शुद्धता को लेकर आगे क्या कदम उठाती हैं?'
गंगाजल के निर्मलीकरण का पैमाना
० डीओ यानी डिजाल्व आक्सीजन की मात्रा नदी के पानी में पांच मिलीग्राम प्रति लीटर से ज्यादा होनी चाहिए।
० बीओडी यानी बायोकेमिकल आक्सीजन डिजाल्व की मात्रा नदी के पानी में तीन मिलीग्राम प्रति लीटर से कम होनी चाहिए।
० टीडीएस यानी टोटल डीसॉल्व सॉलिड्स की मात्रा नदी के पानी में 600 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम होनी चाहिए।
लॉकडाउन ने धो डाली दशकों की प्रदूषण की चादर
मीलों दूर से दिखाई दिखाई देने लगीं विंध्य की पहाड़ियां
बनारस से छंट गए धुलाणु और जहरीली हवाएं
वाराणसी। जहरीले धुएं का गोला बनी काशी की फिजां अब बदल गई है। लॉकडाउन ने दशकों से पड़ी प्रदूषण की चादर को धो दिया। शहर के लोग अब सुकून भरी नींद ले रहे हैं। तड़के देखेंगे तो विंध्य पर्वत की वो पहाड़ियां भी धुंधली-धुंधली नजर आएंगी जो कभी दिखती ही नहीं थीं। इसी वजह से मीलों दूर से विंध्य की पहाड़ियां दिखाई देने लगी हैं। पेड़-पत्तियों में साइनिंग बढ़ गई और घरों में धूल का आना कम हो गया। वो लोग भी सुकून भरी नींद ले रहे हैं जो अस्थमा और ब्लड प्रेशर से पीड़ित थे। प्रकृति ने बता दिया कि जो उसे परेशान कर रहे थे, उसे ही वो चोट दे रही थी। पर्यावरण सुधरा तो रोगी घटे और लोग कोरोना से लड़ने में सक्षम हुए।
बनारस में लॉकडाउन से पहले और मौजूदा समय के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो वायु गुणवत्ता में अभूतपूर्व सुधार हुआ है। वायु की गुणवत्ता को समवेत रूप से शामिल मुख्य वायु प्रदूषकों की मात्रा के आधार पर इंडेक्स के रूप में आंका जाता है। एक्यूआई का स्तर शून्य से 50 होने पर हवा की गुणवत्ता अच्छी मानी जाती है। 51 से 100 एक्यूआई वाली हवा संतोषजनक, 101 से 201 वाली मध्यम स्तर की खराब, 201 से 301 वाली खराब, 301 से 400 बेहद खराब और 401 से 500 एक्यूआई वाली हवा को पूरी तरह खतरनाक और जहरीला माना जाता है।
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, तीन मार्च और दस मार्च 2020 को बनारस में एकर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) क्रमश: 216 और 254 थी। इसके ठीक एक महीने बाद तीन अप्रैल और 16 अप्रैल 2020 को शहर का प्रदूषण मापा गया। तीन अप्रैल 2020 को एक्यूआई घटकर 59 हो गई। 16 अप्रैल 2020 को एक्यूआई सिर्फ 84 दर्ज की गई। अभी बनारस में वाहनों की आवाजाही शुरू हो गई है। फिर भी एयर क्वालिटी इंडेक्स डेढ़ सौ से ऊपर नहीं है। मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर कहा जा सकता है कि लॉकडाउन के कारण बनारस की हवा में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है।
कोरोना के संकट काल में आम जनता को हो रही परेशानी और अर्थव्यवस्था को लगे झटके के बीच इकलौती सकारात्मक चीज है साफ होती हवा। सोशल मीडिया में बनारस की साफ हवा की तस्वीरें और वीडिया शेयर करके जश्न मनाए जा रहे हैं। बनारस के गंगा घाटों के सीन यू-ट्यूब से फेसबुक और दूसरे प्लेटफॉर्म तक हर जगह देखे जा रहे हैं।
लाकडाउन से पहले बनारस शहर की हवा में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) सामान्य से चार से पांच गुना अधिक थे। पार्टिकुलेट मैटर, महीन धूल के वो कण होते हैं जो आसानी से सांस के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। पहली मार्च को पीएम 2.5 का अधिकतम स्तर 362 प्रति क्यूबिक मीटर दर्ज किया गया था, जबकि इसकी सामान्य मात्रा 50 प्रति क्यूबिक मीटर होना चाहिए। इसी तरह पीएम 10 का सामान्य स्तर 100 प्रति क्यूबिक मीटर है, जबकि इसका स्तर 410 प्रति क्यूबिक मीटर रहा। बनारस में वायु प्रदूषण बढ़ने के पीछे वाहनों के जाम को प्रमुख कारण माना है। निर्माण कार्य व सफाई के दौरान मानक का पालन न करने से प्रदूषण बढ़ गया था।
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कुमार कहते हैं, -निर्माण कार्य और ट्रैफिक मूवमेंट का रुकना हवा के साफ होने के पीछे दो बड़े कारण हैं। साल 2011 में सीपीसीबी की रिपोर्ट में कहा गया कि बनारस समेत देश के छह शहरों में निर्माण कार्य से उड़ने वाली धूल पीएम 10 कणों का 58% होती है, जबकि वाहनों से निकलने वाला धुंआ पीएम 2.5 और एनओएक्स जैसे खतरनाक प्रदूषण की वजह है। बनारस में वायु प्रदूषण में गिरावट ट्रैफिक, निर्माण कार्यों, उद्योग और ईंट भट्ठों का काम रुकने से हुई है। कोरोना महामारी से निकलने के बाद एक बार फिर से हम गैस चैंबर में घुस सकते हैं और तब साफ हवा का जो तात्कालिक फायदा होता दिखता है, वह हमारे पास नहीं रहेगा।
सुकून भरी नींद ले रहे काशीवासी
बनारस में थम गया शोर और थम गई चेतन उपाध्याय की लड़ाई
बनारस के चेतन उपाध्याय इन दिनों खुश हैं। जानते हैं क्यों? काशी में शोर थमने से इनकी खुशी में इजाफा हुआ है। चेतन ऐसे शख्स हैं जो इस शहर में शोर के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे। फकत 17 साल की उम्र में इन्होंने दो बड़े फैसले लिए थे। पहला-जीवन भर शादी न करने और अपने माता-पिता की सेवा करने का। दूसरा-बाबा विश्वनाथ की नगरी को शोर से आजादी दिलाने का। मां तो रहीं नहीं, पर पिता की छांव तले जन-जन को सुकून भरी नींद देने के लिए वो लगातार मुहिम चलाते रहे। सालों से डीजे, माइक, साउंड बॉक्स और अन्य तीव्र ध्वनि वाले यंत्रों से लोगों को दूर करने की दिशा में काम करते रहे।
चेतन उपाध्याय को जनता की चेतना जगाने की मुहिम में कामयाबी लाकडाउन ने दी। उत्तर प्रदेश नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े तो यही कहते हैं। बनारस शहर में शोर में करीब 25 फीसदी कमी आई है। हालांकि उन्होंने योगी सरकार को खत भेजा है और नाराजगी जताई है कि शहर को शोर से मुक्ति दिलाने के लिए आज तक मंदिरों-मस्जिदों से माइक नहीं उतरवाई जा सकी है। इन्हें लगता है कि लाकडाउन टूटेगा तो शोर का ग्राफ वहीं पहुंच जाएगा, जहां पहला था।
क्या कहते हैं काशी में शोर के आंकड़े?
लाकडाउन से पहले.....
तिथि स्थान दिन रात (डेसीबल में)
22 फरवरी -रविंद्रपुरी (आवासीय) - 60.4- -48.7
25 फरवरी -गौदौलिया (व्यावसायिक) -69.8- -59.7
26 फरवरी -लहरतारा (औद्योगिक)- 81.6- -75.1
29 फरवरी -कचहरी (शांत) -58.4- -44.3
लाकडाउन के बाद------------
तिथि स्थान दिन रात (डेसीबल में)
18 अप्रैल -रविंद्रपुरी (आवासीय) - 44.35- -42.22
18 अप्रैल -गौदौलिया (व्यावसायिक)- 46.62- -43.38
18 अप्रैल -लहरतारा (औद्योगिक)- -47.8- -45.00
18 अप्रैल -कचहरी (शांत) -44.84- -39.16