बनारस में जानलेवा साबित हो रहा टेंपरेचर का टार्चर, प्रचंड गर्मी से पिघल रहीं अलकतरा की सड़कें, खत्म हो गया  दोपहर का रोजगार

 


हीट स्ट्रोक से हो रहीं मौतें, आर्द्रता व तापमान के बढ़ने से बिगड़ रहे हालात


शहर और ग्रामीण इलाकों में पीने के पानी को लेकर मचा है हाहाकार



विजय विनीत


वाराणसी। पिछले तीन दिनों से कहर बरपा रही भीषण गर्मी और लू के थपेड़ों ने लोगों का जीना हराम कर दिया है। शहर में कई तरह की दुकानें रोजाना खुल रही हैं, लेकिन खरीदार नहीं आ रहे हैं। लाकडाउन की वजह से बहुत कम लोग घरों से बाहर निकल रहे हैं। पहले कोरोना ने कारोबार चौपट किया और अब लू और प्रचंड गर्मी ने। टेंपरेचर के टार्चर से दोपहर का रोजगार खत्म हो गया है। अलकतरा वालीं सड़कें पिघलने लगी हैं। शहर और ग्रामीण इलाकों में पीने के पानी को लेकर हाहाकार मचा हुआ है।
पिछले तीन दिनों से प्रचंड गर्मी और लू के थपेड़ों से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। रविवार और सोमवार को अधिकतम तापमान 45 से 46 डिग्री था। आंधी चलने से मंगलवार को टेंपरेचर थोड़ा घटा जरूर, लेकिन उमस बढ़ गई। इसके चलते लोगों को घरों अंदर ही रहने को कहा गया है, क्योंकि लोग हीट स्ट्रोक की चपेट में आ रहे हैं। सोमवार को हीट स्ट्रोक के चलते कांग्रेस के जिलाध्यक्ष राजेश्वर पटेल के युवा पुत्र रंजीत पटेल की मौत हो गई। मौसम विज्ञानियों ने कहा है कि  आर्द्रता, हवा और तापमान के बढ़ने से स्थिति और बिगड़ सकती है।



प्रचंड गर्मी के बावजूद लंका के रविदास गेट के पास मोचियों की कतारें लगी हैं। परंपरागत रोजगार में लगे लोगों का हाल जानने पहुंचे तो पता चला कि दोपहर तक कइयों की बोहनी तक नहीं हो पाई है। नगवां के अशोक मोची और अछैबर ने कहा कि पहले हमें कोरोना ने तबाह किया और अब प्रचंड गर्मी ने कारोबार को चौपट कर दिया है। अशोक बताते हैं, ‘पिछले कई सालों से दोपहर 12 बजे से शाम 5 बजे तक काम बिल्कुल नहीं आता है। धंधे की कौन कहे, पीने के पानी का गंभीर संकट पैदा हो गया है। पानी के लिए सरकारी नलों पर उन्हें आधी रात में लाइन लगानी पड़ रही है।’
लंका पर नारियल बेच रहे भगवानपुर के मनीष ने सूरज की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘कोरोना का ताप कम था जो अब इनकी तपिश आ गई। जान तो जाएगी ही। गर्मी इतनी बढ़ने लगी है कि दो-चार नारियल बिक पाना कठिन हो गया है। दोपहर 12 बजे के पास सड़क पर सन्नाटा खिंच जाता है। भगवान जाने आने वाले दिनों में जब और गर्मी बढ़ेगी तो हमारा क्या होगा? कौन हमारी मदद करेगा? मोदी सरकार से तो कोई उम्मीद नहीं है। अब बस ऊपर वाले का ही सहारा है।’



इस बीच  गर्मी ने खेतिहर मजदूरों पर भी अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। ढाब इलाके के रमचंदीपुर के प्रधान राजकुमार यादव बताते हैं कि उन्होंने अपने होश में इतनी गर्मी नहीं देखी है। वो कहते हैं, "हमने बहुत गर्मी देखी है। लेकिन इस साल जितनी गर्मी कभी नहीं देखी। गर्मी के चलते मनरेगा का काम प्रभावित हो रहा है। ग्रामीण इलाकों में उल्टी-दस्त के मरीज बढ़ गए हैं। महीनों से लोग खाली बैठे हैं। काम नहीं करेंगे तो खाएंगे क्या?" यादव बताते हैं, ‘पिछले साल बहुत कम बारिश हुई थी। गर्मी कितनी ज्यादा पड़ रही है, जो लोग झेल रहे हैं, वही जान सकते हैं। एसी में रहने वाले क्या जानें कि मजदूर कितने तापमान पर उनके लिए अनाज पैदा करता है।’



ईंट-भट्ठा कारोबारी शिव कुमार सिंह कहते हैं, ‘मौसम के अचानक करवट लेने से अलकतरा की सड़कें पिघलने लगी हैं। सड़कों का हाल देखकर लगता है कि आने वाले समय में गर्मी इतनी बढ़ेगी कि परंपरागत तरीके से काम करना मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में तमाम उद्योगों की कार्यशैली में बदलाव जरूरी है। सवाल उठता है कि अगर बढ़ती गर्मी ईट-भट्ठों के पारंपरिक रोजगारों के लिए खतरा पैदा करेगी तो ऐसे रोजगारों में लगे लोग अपना और अपने बच्चों का पेट कैसे पालेंगे?’



कितनी गर्मी हो सकती है जानलेवा?


उमस को रिकॉर्ड करता


है वेट बल्ब थर्मामीटर


वाराणसी। दुनिया भर में ज्यादातर मौसम विज्ञान केंद्र दो थर्मामीटरों से तापमान का आकलन करते हैं। पहला ड्राई बल्ब उपकरण हवा का तापमान हासिल करता है। ये वो आंकड़ा है जो कि आप अपने फोन या टीवी पर अपने शहर के तापमान के रूप में देखते हैं। एक अन्य उपकरण वेट बल्ब थर्मामीटर होता है। ये उपकरण हवा में उमस को रिकॉर्ड करता है। इसमें एक थर्मामीटर को कपड़े में लपेट कर तापमान लिया जाता है। सामान्यत: यह तापमान खुली हवा के तापमान से कम होता है। इंसानों के लिए बहुत तेज उमस भरी गर्मी जानलेवा साबित हो सकती है। इसी वजह से वेट बल्ब की रीडिंग जिसे 'फील्स लाइक' कहा जाता है, उसकी रीडिंग बहुत अहम होती है। विशेषज्ञों के मुताबिक मनुष्य के शरीर का सामान्य तापमान 37 डिग्री सेल्सियस होता है। और हमारे शरीर का तापमान सामान्यत: 35 डिग्री सेल्सियस होता है। अलग अलग तापमान हमारा पसीना निकालकर हमारे शरीर को ठंडा रखने में मदद करता है। शरीर से पसीना निकलकर भाप बनते हुए अपने साथ गर्मी भी लेकर उड़ जाता है। उमस वाली जगहों पर ये प्रक्रिया ठीक ढंग से काम नहीं करती है। क्योंकि हवा में पहले से इतनी नमी होती है कि वह इस प्रक्रिया में पसीने को भाप के रूप में उठा नहीं पाती है।



ऐसे में अगर उमस बढ़ती है और वेट बल्ब तापमान को बढ़ाकर 35 डिग्री सेल्सियस या इससे ऊपर तक ले आती है तो पसीने के भाप बनने की प्रक्रिया धीमी होगी, जिससे हमारी गर्मी झेलने की क्षमता पर असर पड़ेगा। कुछ गंभीर मामलों में ये भी हो सकता है कि ये प्रक्रिया पूरी तरह रुक जाए। ऐसे में किसी व्यक्ति को एक एयर-कंडीशंड कमरे में जाना पड़ेगा क्योंकि शरीर का अंदरूनी तापमान ये गर्मी बर्दाश्त करने की सीमा के पार चला जाएगा, जिसके बाद शारीरिक अंग काम करना बंद कर देंगे। ऐसी स्थिति में बेहद फिट लोग भी लगभग छह घंटे में दम तोड़ देंगे।



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