बच्चों को परिवार से ‘लॉक’ कर रहा लॉकडाउन, पेंटिंग, सिंगिंग के साथ लर्निंग ग्राउंड में जीवन के हर पहलू को छू रहे

घर की चाहरदीवारी में कैद जिंदगी अपने-पराये का भेद मिटा रही


जो कुछ साल बाद जानते, वह सब लॉकडाउन ने समयपूर्व बताया


विजय विनीत के साथ रवि प्रकाश सिंह


वाराणसी।
कोविड-19 के चलते पूर्वांचल के सभी स्कूल और कॉलेज बंद हैं। मकसद है छात्रों को इस जानलेवा वायरस से बचाना। लाकडाउन 3.0 ऐसे समय में हुआ है जब बच्चों की छुट्टियां चल रही हैं। ये छुट्टियां उनके लिए गर्मियों के पहले शुरू हुए मॉनसून जैसी हैं। ऐसे में अभिभावकों को सलाह दी जा रही है कि वो अपने बच्चों को घरों से बाहर न निकलने दें। कुछ महिलाएं इस समय अपने बच्चों को कुकिंग और नए क्राफ्ट सिखाने में जुटी हैं तो कुछ पेंटिंग, नृत्य और योग। तमाम बच्चे नई चीजें सीख रहे हैं और परिवार के साथ ज्यादा वक्त बिता रहे हैं। हालांकि, कुछ महिलाएं इन छुट्टियों से ज्यादा खुश नहीं हैं, जबकि कुछ वर्किंग महिलाएं इसे एक लंबे वीकेंड के तौर पर ले रही हैं। कई परिवार ऐसे भी हैं जो लॉकडाउन में बच्चों के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करने में जुटे हैं। इसे बता रहे हैं जनसंदेश टाइम्स के समाचार संपादक विजय विनीत और रवि प्रकाश सिंह। 

वक़्त से पहले शुरू हो गई छुट्टियां


बच्चे समझ रहे खाने की अहमियत 


बच्चों ने खुद बना लिया है शेेड्यूल 




एलकेजी की छात्रा है राह्या तिवारी। उम्र फकत पांच साल। बलिया के होलीक्रास स्कूल में पढ़ती है। लाकडाउन में कोई भी इनके घर पहुंचता है तो सबको मशविरा देने लग जाती हैं। कोरोना वायरस फैला है...। प्लीज...! घर से मत निकलिए। राह्या सबको डराती भी हैं। समझाती हैं...बहुत खतरनाक है कोरोना...। बहुत चंचल और नटखट हैं राह्या। 
राह्या की मां नंदिनी तिवारी बलिया में रहती हैं। इनका प्ले स्कूल भी है। स्कूल के बाद वो बाकी समय समाजसेवा में लगाती हैं। राह्या से हमसे ऑनलाइन बात की। उसने पूरे दिन का शेड्यूल गिना डाला कि वो कब पढ़ती है और कब नृत्य सीखती है? पेंटिंग बनाने और सोने का समय क्या है? राह्या ने यह तय कर रखा है कि लाकडाउन में उसे कब और क्या करना है? मां नंदिनी कहती हैं, "मुझे ऐसा लग रहा है जैसे कि अभी वीकेंड ही चल रहा हो।"
वह कहती हैं कि लाकडाउन का इस्तेमाल बच्चों को कुकिंग, नृत्य, पेंटिंग और दूसरे क्राफ्ट सिखाने के लिए किया जा सकता है। अबकी समर कैंप्स नहीं होंगे। ऐसे में घर ही लर्निंग ग्राउंड बन गया है।" बच्चों के घर में ही बंद होने पर वह कहती हैं, "हां, अगर  आप बच्चों पर ध्यान नहीं देंगे तो घर तितर-बितर हो जाएगा। मुझे अपनी बेटी के साथ पूरा दिन गुजारना बहुत अच्छा लगता है। बच्चों के घर पर रहने में अभिभावकों को कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए।"



बनारस की छवि रमना के पास पनपुरवा स्थित मॉडल इंग्लिश प्राइमरी स्कूल में टीचर हैं। इनके दो बेटे हैं-हर्ष और प्रिंस। 
हर्ष सातवीं में पढ़ता है और प्रिंस क्लास वन में। छवि बताती हैं, "बड़े बेटे को किताबों में ज्यादा दिलचस्पी है। आनलाइन पढ़ाई में भी रुचि लेता है। पेंटिंग भी बनाता है और कुछ वक्त टीवी पर बिताता है। यह उसके लिए एक अच्छा ब्रेक है।" वो कहती हैं कि बड़े बच्चों के मुकाबले टीनेज और छोटे बच्चों को संभालने में कहीं ज्यादा दिक्कत होती है। 



आनलाइन क्लास पर ज्यादा जोर
छवि का स्कूल देहात में है। लेकिन वो इन दिनों आनलाइन क्लास पर ज्यादा ध्यान दे रही हैं। स्कूल के दिनों से भी ज्यादा। वो अपने छात्रों को व्हाट्सएप ग्रुप बनाकर पढ़ाने की कोशिश कर रही हैं। वो जिस स्कूल में पढ़ाती हैं उसमें 250 बच्चे हैं। कहती हैं, "आने वाले एकेडमिक ईयर से बच्चों को अगले क्लास में स्विच करना है। जब तक उन्हें पर्याप्त ट्रेनिंग नहीं दी जाएगी वे इंग्लिश मीडियम में पढ़ाई नहीं कर पाएंगे, क्योंकि सभी बच्चे ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े हैं।"
छवि छात्रों की मदर्स से मोबाइल के जरिए संवाद करती हैं। वह कहती हैं, "मैं नियमित तौर पर उनके काम को व्हाट्सएप के जरिए देखती हूं।" योगी सरकार ने कई प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी कर दिया है। शिक्षकों को यह जिम्मेदारी है कि वे बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाएं।
सुमित्रा सिंह बनारस के लंका में रहती हैं। हाउस वाइफ हैं। वो कहती हैं,-टीनेज बच्चे अगर सोशल आइसोलेशन में नहीं रहना चाहते तब महिलाओं के सामने दिक्कतें आती हैं। टीनेज लड़कियां को घर में घुटन महसूस होता है क्योंकि लाकडाउन में उन्हें बाहर जाने और दोस्तों से मिलने की इजाजत नहीं है। मुझे अपनी बेटी को यह समझाने में कोई दिक्कत नहीं हुई। वो काफी समझदार हैं। टेक्नोलॉजी के जरिए अपने दोस्तों के साथ वर्चुअली कनेक्टेड है।"



अनुशासन सीख रहे बच्चे
बनारस की कई महिलाएं इस बात से खुश हैं कि उनके बच्चे कोरोना की बीमारी से काफी जागरूक हो रहे हैं। साथ ही अनुशासित बन रहे हैं। बनारस की श्वेता गुप्ता के पति आस्ट्रेलिया में रहते हैं। पांडेयपुर में अपनी बेटी ध्रुवी के साथ मायके आईं तभी लाकडाउन हो गया। ध्रुवी महज चार साल की है, लेकिन वो काफी समझदार है। बात करेंगे तो सबसे पहले आपको ताकीद करेगी,-मास्क पहनिए, तब मुझसे बात कीजिए। सड़क पर कोरोना है। वो काटता है...। अस्पताल पहुंचा देता है..। श्वेता अपनी बेटी के साथ पूरा दिन गुजारती हैं। बताती हैं कि ध्रुवी दिन में पेंटिंग बनाती है। गीत गाती हैं और रात में उसे कहानियां सुनाती हैं। श्वेता खुश हैं कि ध्रुवी अपने नाना-नानी के काफी करीब है। वो दूसरे रिश्तेदारों से भी बात करती है। हम अब वो सब कुछ कर रहे हैं जिसे हम इतने वक्त से मिस कर रहे थे।" 
पांडेयपुर की अंकिता जायसवाल की बेटी देवांसी तीसरी कक्षा की छात्रा है। अपने नाना-नानी के पास है। लाड़-प्यार ज्यादा मिल रहा है। इसलिए वो कैरम और दूसरे बच्चों के साथ लुका-छिपी खेलने में पूरा वक्त गुजार देती है। अंकिता पूछती हैं, "आज के दौर में कितने बच्चों के पास इतना टाइम है कि वे रोज अपने नाना-नानी या फिर दादा-दादी से बातें कर पाएं।"



ग्रैंडपेरेंट्स से बात कर रहे बच्चे
चेतगंज की रेखा अपने पड़ोस का एक उदाहरण देती हैं। वह बताती हैं, "एक कामकाजी महिला अपने बच्चे का इस वजह से ख्याल नहीं रख पा रही हैं क्योंकि उसके बड़े बच्चे की छुट्टियां हो गई हैं। वो अपने बच्चों और अपने काम के शेड्यूल के बीच में बुरी तरह से उलझ गई हैं। बच्चे पालना उसके लिए एक बड़ा काम हो गया है। उसे घर संभालने के लिए एक फुल-टाइम मेड रखना पड़ा है।"
मुगलसराय की हाउस वाइफ रेखा लाकडाउन के चलते हुई छुट्टियों से खुश हैं। उनके दो बच्चे हैं और वो मिडिल क्लास में पढ़ते हैं। वो कहती हैं, "मेरे बच्चे अब पैसे की कीमत समझने लगे हैं। कामकाज ठप है। उन्हें यह समझ में आने लगा है कि भोजन के लिए कितनी जद्दोजहद करनी पड़ती है। यही बच्चे पहले मुझे समय नहीं दे पाते थे। बच्चों को हरदम मिस करती थी। अब हम सभी एक साथ ज्यादा समय गुजारते हैं। नौकरानियों को छुट्टी दे दी है। सब मिलकर घर की सफाई करते हैं और खाना भी बनाते हैं।"



क्रिएटिविटी को लगे पंख
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ कॉलोनी की होम मेकर वैजयंती सिंह को लगता है कि उनके बच्चों की क्रिएटिविटी को जैसे पंख लग गए हैं। वह कहती हैं, " पांच साल का बेटा सैमी मेरे आगे-पीछे दौड़ता रहता है। कभी नृत्य दिखाता है, कभी पेंटिंग बनाता है। खाली समय में रामायण का गाना सुनता है। कोई मिलता है सैमी बड़ों की तरह नसीहत देता है। कहता है कि घर से बाहर मत निकलिए, कोरोना काट लेगा। कैंटोमेंट की एक गुप्ता फैमली की क्लास वन की छात्रा भार्गवी ने कोरोना पर बेहतरीन पेंटिंग बनाई है। मां ज्योति गुप्ता के काम में हाथ भी बंटाती है। अपनी गुड़िया के लिए कपड़े भी सिलती नजर आती है। भार्गवी ने हमें देखा तो कहा,  "बाहर एक बीमारी घूम रही है तो अब आपको घर में रहना होगा, वरना पुलिस पकड़कर ले जाएगी। फिर बाद में आप मुझसे मिल नहीं पाओगे।" ज्योति कहती हैं, - "लॉकडाउन ने बच्चों को ज्यादा स्मार्ट बना दिया है। यू-ट्यूब, एमएक्स प्लेयर और गूगल पर इनकी पकड़ इतनी पैनी हो गई है कि मोबाइल हाथ में आते ही बच्चे कुछ न कुछ नया करामात दिखाने लग जाते हैं। "  
लहरतारा रेलवे कॉलोनी के रिंकू भारती के बच्चे आराध्या और लकी पेंसिल और स्मार्टफोन से लैस मिले। मोबाइल से ही ये बच्चे पेंटिंग बना रहे थे। दोनों बच्चे हाजिर जवाब थे। बोले, - ‘‘ खुद से सीख रहें पेंटिंग बनाना? पेटिंग पूरा होते ही हैंडवॉस करेंगे। "  हालांकि रिंकू भारती मशीनी शिक्षा को ठीक नहीं मानते। वो कहते हैं, " आने वाली पीढ़ी के लिए ये घातक है। टेक्नोलॉजी का सही उपयोग एक उम्र के बाद होनी चाहिए। निरालानगर की रचना की बेटी ऋचा अपनी बार्बी डॉल्स के लिए खुद कपड़े सिलना सीख रही हैं। जितने बच्चों से हमने बात की, उनमें से ज्यादातर को इस लॉकडाउन में रहने से कोई दिक्कत नहीं है। रचना कहतीं हैं कि सोशल डिस्टेंसिंग ने असलियत में परिवारों को एक साथ जोड़ने में अहम भूमिका निभाई है।



दिव्यांग बच्चों का ऐसे रखें ख्याल?


वाराणसी। लाकडाउन में स्पेशल बच्चों का ध्यान किस तरह रखा जाना चाहिए? इस सवाल पर बीएचयू के मानसिक रोग विभाग के अध्यक्ष संजय गुप्ता कहते हैं, " मानसिक रूप से दिव्यांग बच्चों को सिर्फ प्यार की चाह होती है क्योंकि यही वो चीज है, जो उनकी वीरान जिंदगी से दूर रहती है। दिमाग बीमार है सो प्यार की चाह नहीं समझ पाता, पर दिल तो है। वह बीमार नहीं और उसकी चाह किसी सामान्य बच्चे जैसी होती है। ऐसे में परिवार का सहारा डूबते को तिनके का सहारा जैसा होगा। लॉकडाउन में बच्चों की जरुरत इस बात पर निर्भर करेगी कि उनको कौन सी विकलांगता है। मानसिक रूप से कमजोर बच्चों के लिए लॉकडाउन में जरूरी है कि उनकी बात सुनी जाए। कोशिश करें कि वह अपने डॉक्टर, कोच या थेरेपिस्ट से बात करते रहें। बच्चों को व्यस्त रखने की कोशिश करें और सबसे जरूरी है कि उन्हें पेंटिंग, डांस, संगीत के प्रति प्रेरित करें। 



बच्चे-बुजुर्ग बनाएं अपना रूटीन
वाराणसी। कोरोना ने ग्लोबल वॉर्निंग पेश की है। लोग घरों में कैद हैं। ऐसे में बच्चे और बुजुर्ग लोगों के साथ-साथ नौकरीपेशा भी सामंजस्य बैठाने में लगे हैं। देश के जाने-माने चिकित्साविद एवं बीएचयू के प्रोफेसर विजय नाथ मिश्र कहते हैं कि परिस्थिति का सबसे ज्यादा प्रभाव बच्चों पर पड़ता है। 
प्रो.मिश्र कहते हैं कि घर के माहौल का बच्चों पर असर ज्यादा होता है। इस बात का ख्याल रखें कि कहीं आपका मानसिक तनाव उन तक तो नहीं पहुंच रहा है? आज के बच्चे अपनी पढ़ाई, करियर और अपने भविष्य को लेकर बेहद संवेदनशील हैं। 
कोरोना को जितना आप महसूस कर रहे हैं उतना ही आपका बच्चा भी समझ रहा है। माता-पिता की जिम्मेदारी है कि वो बच्चों को समझाएं और आगे के लिए उसे ताकतवार बनाएं। बच्चे को बताएं कि दुनिया में ये एक विराम की तरह है, इससे सारी गतिविधियों पर ब्रेक लग जाएगा ऐसा नहीं है। वक्त के साथ दुनिया इसपर काबू पाएगी। आप बच्चे के दिमाग में जितनी सकारात्मक बातें डालेंगे, उसे मौजूदा संकट से लड़ने में उतनी ही मदद मिलेगी। वो फिजिकली और मेंटली उतने ही सेफ रह पाएंगे। आप बच्चों में सकारात्मकता तभी भर पाएंगे, जब आप खुद पॉजिटिव हो।
लाकडाउन उनके स्कूल, पढ़ाई और खेल में बड़ी बाधा पहुंचा चुका है। इससे उबारने के लिए उन्हें व्यस्त रखना बेहद जरूरी है। इस बाबत उन्होंने कई अहम टिप्स दिए हैं। इन्हें आप भी आजमाएं-
1.ध्यान रखें कि उनके सोने और जागने का शेड्यूल बैलेंस रहे। 
2. उनमें घर के अंदर योग, कसरत करने की आदत डालें।
3. निश्चित करें कि बच्चे सही ढंग से और तय समय पर खाएं।
4. बेहतर है कि आप उनके साथ वक्त बिताएं, बातें करें। 
5.पुरानी बातें, पुरानी यादें, उनके बचपन की बातें करें।
6.बच्चों की तारीफ करें, उन्हें बताएं कि उनमें क्या खास है।
7.आॅनलाइन क्लासेज में उनकी मदद करें।



अभिभावक ये भी रखें ध्यान


तूफान के वक्त अपने घर के जहाज के कैप्टन आप ही हैं। बच्चों के साथ अपने बुजुर्ग माता-पिता का ध्यान रखना भी आपकी ही जिम्मेदारी है। इसमें टेक्नोलॉजी आपके लिए मददगार हो सकती है। इसके जरिए कुछ नई जानकारी, कुछ नए शौक, कुछ नई बातें सीखने और सीखने-सिखाने का आपके पास मौका है। 


बच्चों के लिए टिप्स
कोरोना काल में वीडियो चैट के जरिए दूर- दराज के रिश्तेदारों को एक स्क्रीन पर लाएं। 
बच्चों को इतिहास, टेक्नोलॉजी, बदलती दुनिया के बारे में गूगल से जानकारी दें। बच्चों को कोई नई भाषा सीखने के लिए प्रेरित करें। बच्चों को लेटर राइटिंग, वर्चुअल गेम जैसी चीजें भी सिखाई जा सकती हैं। 
बच्चों को सुबह जल्दी उठाएं। उन्हें ब्रश कराकर फ्रेश होने के लिए कहें। समय पर नहाने की आदत डालें। फोन और टेलीविजन कम से कम इस्तेमाल करने दें। बच्चों के साथ खेलें। उन्हें अच्छी कहानियां सुनाएं। अपने बचपन की कहानियां और किस्से बच्चों को सुनाएं।



बुजुर्गों के लिए टिप्स
कोराना का सबसे बड़ा कहर बुजर्गों पर ही हो रहा है। बुजुर्गों के पास पूरी जिंदगी का अनुभव होता है। अपने सोशल सर्किल,अपने मित्रों से फोन और वीडियो कॉल से संपर्क बनाएं। वो पुस्तक जो जवानी में व्यस्तता की वजह से नहीं पढ़ पाए, उन्हें पढ़ने की कोशिश करें, क्या पता कोई अनूठा ज्ञान मिल जाए। अध्यात्म की तरफ रुझान बढ़ाएं और विज्ञान और अध्यात्म का संबंध समझें। टीवी, या नेट पर अपने मनपसंद प्रोग्राम और सीरीज देंखे। पुराने सीरियल अपकी मदद कर सकते हैं।

पेरेंट्स के लिए एडवाइजरी 
- कोरोना वायरस आकार में बड़ा होता है इस वायरस की कोशिकाओं का आकार 400 से 500 माइक्रो डायामीटर होता है और इसी कारण से किसी भी तरह का मास्क इसके प्रवेश को रोक सकता है।
- कोरोना वायरस हवा की बजाय जमीन पर अधिक सक्रिय होता है इसी वजह से यह वायरस हवा से नहीं फैल पाता। इसलिए मास्क का उपयोग तभी करें जब आपको खासी या जुखाम हो, ताकि बाकी लोग वायरस की चपेट में न आएं।
- कोरोना वायरस का कण जब किसी मेटल की सतह पर गिरता है तब यह 12 घंटे तक जीवित रह सकता है, इसलिए साबुन या पानी से हाथ धो लेना वायरस को खत्म करने के लिए काफी है।
- कोरोना वायरस जब किसी कपड़े पर गिरता है तब यह वायरस 9 घंटे तक जीवित रह सकता है, इसलिए कपड़े धोने के बाद उसे धूप में डालें क्योंकि दो घंटे के लिए सूरज के संपर्क में रहने से यह वायरस नष्ट हो जाता है।
 - कोरोना वायरस हाथों पर 10 मिनट तक जीवित रह सकता है, इसलिए किसी भी अल्कोहल बेस्ड स्टरलाइजर का इस्तेमाल करके आप इस वायरस को फैलने से रोक सकते हैं।
 - कोरोना वायरस ठंडे क्षेत्रों में अधिक सक्रिय होता है, यदि 26-27 डिग्री सेल्सियस के तापमान के संपर्क में यह वायरस आ जाए तो ये नष्ट हो जाता है। इसलिए ठंडी चीजें जैसे आइसक्रीम आदि खाने से बचें। गर्म पानी पीने से और धूप में रहने से आप वायरस से अपना बचाव कर सकते हैं।
- कोरोना वायरस फेफड़ों में जाकर उन्हें नुकसान पहुंचाता है इसलिए गर्म और नमक के पानी के गरारे करने से आप वायरस को फेफड़ों तक पहुंचने से रोक सकते हैं।
बच्चा बोरियत महसूस न करें इसके लिए पेरेंट्स उसे घर की छोटी-छोटी एक्टिविटी में व्यस्त कर सकते हैं।
- बच्चों के साथ रोजाना वक्त निकालकर बालकनी में खेलें।
- घर से बाहर नहीं जा सकते तो क्या घर में ही छुपन-छुपाई, कैरम बोर्ड , लूडो, कार्ड्स के साथ बच्चों साथ खेलें।
- रात के वक्त या दिन में किसी भी वक्त समय निकालकर बच्चों को कहानियां सुनाएं। माता-पिता खुद कहानी सुनाने के बाद बच्चों को बोले कि वो भी एक कहानी को तैयार करें और उन्हें सुनाएं।
- लॉकडाउन के बाद बच्चे को बाहर जाने के लिए अभी से तैयार करना शुरू कर दें।
- बच्चों को सिखाएं कि खांसने, छींकने के दौरान नाक और मुंह पर कपड़ा रखें।
- इस वक्त बच्चों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना सिखाएं। उन्हें बताएं कि अगर वो बाहर जाता है तो घर आते ही पहले हाथों और पैरों को साबुन और पानी से धोना बहुत जरूरी है।
- बच्चों को बताएं कि वर्तमान में सिर्फ वो नहीं बल्कि कई लोग परेशान हैं। बच्चों के अंदर विश्वास जगाए कि उन्हें किसी बात से डरना नहीं है।


घरों में कुछ इस तरह समय बिता रहे बच्चे 
असर: न बस्ते का बोझ, न कोचिंग, न दोस्तों से मुलाकात, घर से बाहर खेलना भी बंद


फायदा : ड्राइंग, पेंटिंग, सिंगिंग, डांसिंग, बेकिंग कर अपने दिन को सार्थक बना रहे बच्चे
अश्वनी श्रीवास्तव
वाराणसी। न बस्ते का बोझ, न कोचिंग, न दोस्तों से मुलाकात। घर से बाहर जाकर खेलना भी बंद। घरों में हैं मम्मी-पापा तो पढ़ाई के संग घर ही है मस्ती का ठिकाना...। अभिभावक अब अपने बच्चों को नए-नए रचनात्मक कार्यों में व्यस्त रखने लगे हैं। उनके पसंदीदा पकवान बनाए जा रहे हैं। घर पर व्यंजन का वो लुत्फ उठा रहे हैं। बनारस के सभी घरों में बच्चे ड्राइंग, पेंटिंग, सिंगिंग, डांसिंग, बेकिंग कर अपने दिन को सार्थक बना रहे हैं।



घौसाबाद में घर के एक कोने में बैठे नौ वर्षीय राजवीर विश्वकर्मा सादे कागज पर छोटा भीम बनाते मिले। पेंसिल से कागज पर कई बार आकृति बनाते-बिगाड़ते राजवीर के चेहरे पर एक मुस्कान तैर गई। कुछ ही देर बाद उनकी मुस्कान गायब हो गई। लाकडाउन का उन्होंने खूब लुफ्त उठाया। लेकिन आनलाइन क्लासेज का फरमान जारी होते घर क्लासरूम बन गया। राजवीर अभी नर्सरी में हैं। कहते हैं कि लॉकडाउन में पापा संग घूमने का मौका नहीं मिला,  पर उनके मोबाइल पर कब्जा जरूर कर लिया। पापा भी मना भी नहीं करते। घर की दीवारों पर खूब स्केचिंग की है। फिर भी कोई डांटता नहीं है। लाकॅडाउन में मजे ही मजे हैं। रथयात्रा के शंकराचार्य नगर कॉलोनी के नौ वर्षीय हरमनप्रीत सिंह लॉकडाउन का मतलब नहीं जानते, लेकिन इन्हें पता है कि कोरोना लोगों को पकड़ लेता है। इसलिए स्कूल भी बंद है। पहले लैपटॉप छूने पर घर के लोग डांटते थे, लेकिन अब उसी से मैम एटेंडेंस भी लेती हैं और होमवर्क भी देती हैं। ऐसी मस्ती हमेशा मिलनी चाहिए। 



दस वर्षीय गुरुसीदक सिंह भी कम्प्यूटर पर स्कूल का होमवर्क करते मिले। कंप्यूटर पर वो गेम भी खेल लेते हैं। कोई मना नहीं करता। लहरतारा की शाम्भवी यादव एक पेंटिंग में चार से पांच कागज बर्बाद कर रहीं हैं, लेकिन घर का कोई भी उन्हें कुछ नहीं कहता। लॉकडाउन में मजा है। मीनाक्षी सिंह बताती हैं कि किसी चीज की फरमाइश करने पर पापा पहले ना-नुकुर करते थे। अब हर फरमाइश पूरी हो रही है। साक्षी, अक्षिता व सामर्थ श्रीवास्तव लॉकडाउन में खूब चाउमीन खाकर मोबाइल व कम्प्यूटर पर पढ़ाई कर रहे हैं।



 


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