नागपुर से सात सौ किलोमीटर पैदल चल कर एक सप्ताह में घूरपुर पहुंचे दर्जनों मजदूर, चेहरे पर बेबशी और आंखों में आंसू
सभी मजदूर अंबेडकरनगर के हैं निवासी
बेबसी बयां करते छलक पड़े मजदूरो के आंसू
जनसंदेश न्यूज़
घूरपुर/प्रयागराज। कोरोना वायरस वायरल के बाद सरकार लाकडाउन कर सख्ती से पालन करने की हिमायत जरूर दे दिया है। लेकिन इसका पालन किस कदर हो रहा है। इसी से समझा जा सकता है कि नागपुर से सात सौ किलोमीटर दूर ना जाने कितने पुलिस थानों व चौकियों सहित जनपद व प्रदेशों के बार्डरो को पार करते दर्जनों मजदूर अपने घर को पैदल रवाना होते घूरपुर तक पहुंच गए। और उसके आगे भी अपने घर जनपद अंबेडकर नगर और अकबरपुर को आगे भी बढ़ गए। ए
कोरोना वायरस के बाद लॉकडाउन में सबसे अधिक परेशानी अन्य प्रदेशों में फ़ंसे मजदूरों की है। लॉकडाउन के चलते कारखाने, फैक्ट्रियां आदि बंद हो जाने से जहां रहने खाने को लाले पड़े गए। वही बेगाने स्थान पर मदद मरने को कौन कहे गुहार लगाने पर मदद के बजाय दुत्कार मिलता है। सूरज निवासी अम्बेडकर नगर, विनोद कुमार, सचिन, अवधेश राजभर, उदयभान मनोज, सुरेश, शंकर लाल, विजय निवासीगण जनपद अकबरपुर के दर्जनों मजदूर महाराष्ट्र के नागपुर में कुछ पेंटिंग तो कुछ लोग कलकारखानों में मजदूरी करने गए थे। जो लाकडाउन के चलते बेरोजगार हो गए और किराए के कमरे भी नहीं अदा कर पाने से खाली करना पड़ा। मजदूरों ने बताया कि स्थानीय पुलिस उन्हें रोककर रोजाना भोजन देने की बात करती, लेकिन किसी भी दिन भोजन नहीं देती। जिससे भुखमरी भी झेलनी पड़ती है।
बेबसी सुनाते छलक पड़े मजदूरो के आंसू
मजदूरों ने अपनी बेबसी बताते हुए उनके आंखो से आंसू छलक पड़े। बताया कि बेगाने जनपद में मदद मांगने पर मदद के बजाए दुत्कार मिलती थी। अधिकतर दिनों भूखे पेट ही सोना पड़ता था। लंच पैकेट कभी कभार मिल जाता था। उसी से काम चलता था। कोरोना के भय से लोग देखते ही दरवाजे बंद कर लेते थे। सरकार की तमाम सुविधाएं सिर्फ इन मजदूरों के लिए दिखावा ही साबित रही।
मजदूर बोले, धरती पर भी होते हैं भगवान
मजदूर बताए कि इस संकट के दौरान धरती पर भी भगवान होते है, पहली बार देखा है। उन्होंने उन समाजसेवियों का धन्यवाद दियां जिनके वजह से इतनी लम्बी दूरी पैदल चलने को बल मिला। उनके द्वारा जगह-जगह लंच पैकेट बांटना हम लोगों के लिए संजीवनी साबित हुई।