कोरोना से जंग में धनंजय हैं असली हीरो

चिरईगांव के इस भगीरथ को जानिए, मुनाफा न मोलभाव, मूलमंत्र है सेवाभाव 

पहड़िया मंडी से सब्जी खरीदकर बिना लाभ के बांटते हैं


चिरईगांव में सबसे पहले बांटा गया मास्क व सैनेटाइजर


प्रशंसनीय



विजय विनीत के साथ जितेंद्र श्रीवास्तव
वाराणसी। समूचा देश कोरोना से लड़ने की कोशिशों में जुटा है, लेकिन इस जंग के असली हीरो हैं धनंजय मौर्य। ये चिरईगांव के प्रधान हैं। धनंजय तड़के पहड़िया मंडी जाते हैं। थोक में सब्जी खरीदते हैं। चिरईगांव के पंचायत भवन में मंडी के रेट पर सब्जी बांट देते हैं। न मुनाफा, न मोलभाव। एक तरह से इन्होंने मुनाफाखोरों को नाथ दिया है। चिरईगांव बनारस का ऐसा गांव है जहां लोगों को मास्क और सेनेटाइजर सबसे पहले बांटा गया। कोरोना का संक्रमण रोकने लिए इन्होंने गांव में वो हर इंतजाम किया है जो इन दिनों बेहद जरूरी है। 



कोरोना से जंग की कोशिशों में धनंजय की जमकर तारीफ हो रही है। चिरईगांव यूपी ही नहीं, देश का पहला ऐसा गांव है, जो साफ-सफाई, पेयजल और अन्य सुविधाओं के लिए सरकार का मुंह नहीं देखता। चिरईगांव में कई ऐसे जुझारू लोग हैं जो गांव की गलियों को रात में ही साफ कर देते हैं। 
चिरईगांव बनारस का वो इलाका है जिसके हर तरफ है हरियाली और चिड़ियों की चहचहाहट। यहां बड़े-बड़े बाग हैं...खेत हैं... और उसमें लहलहाती सब्जियां और रंग-बिरंगे फूल हैं। कहीं फालसा के बाग, तो कहीं नीबू और करौदा के। आम, अमरूद के बागों की तो लंबी श्रृंखला है। 
इस अजूबे गांव के प्रधान धनंजय मौर्य ने लाक डाउन की घोषणा होते ही बिचौलियों की नकेल कस दी। किसी को मनमाने दाम पर सब्जियां बेचने का मौका नहीं दिया। पहड़िया सब्जी मंडी जाकर वो खुद सब्जियां ला रहे हैं। पंचायत भवन के अहाते मे ये सब्जियां मंडी के रेट पर मुहैया कराई जा रही हैं। न नफा-न नुकसान। सब्जियां सिर्फ उन्हीं लोगों को दी जा रही हैं जो सोशल डिस्टेंशिंग का नियम पालन कर रहे हैं। सब्जियां लेने के लिए ग्रामीणों के निर्धारित दूरी पर बनाए गए एक घेरे में खड़ा होना पड़ता है। 



धनंजय बताते हैं कि चिरईगांव में हर किसी को मास्क बांटा जा चुका है। पंचायत भवन और अखाड़े में सैनेटाइजर भी रखवा दिया गया है। चिरईगांव में बाहरी लोगों के घुसने पर पाबंदी है। सख्ती इतनी कि कोई बाहर से पहुंचता है तो पुलिस भी पहुंच जाती है। पुख्ता पड़ताल के बाद चिरईगांव बाहरियों को स्वीकार करता है। 
अचरज की बात यह है कि चिरईगांव बनारस का इकलौता ऐसा गांव है, जहां आजादी के पहले से ही अपनी सड़कें थीं, खड़ंजे थे और सड़कों के किनारे नालियां थीं। ग्रामीणों में गजब का भाईचारा था। भाईचारे के अलावा इस गांव  के लोगों ने पेशा चुना तो सिर्फ बागवानी का। आजादी के तत्काल बाद स्कूल व पंचायत भवन बने और चिरईगांव ने अपने गांव का नाम आदर्श केटेगरी में शामिल करा लिया। बनारस जिले के किसी गांव के लोगों ने शिक्षा के महत्व को समझा तो वो चिरईगांव ही था। करीब दस हजार की आबादी वाले इस गांव में इस समय करीब पांच हजार से ज्यादा वोटर हैं।
चिरईगांव जाएंगे तो बागों की श्रृंखला देख मुग्ध हो जाएंगे। मनोहारी बाग-बगीचे नेताओं को भले ही न सुहाते हों, लेकिन फलों से लकदक बगीचे और फूलों से लदे खेत चिरईगांव की सुंदरता में चार-चांद लगाते हैं। 



ये हैं चिरईगांव की तरक्की के भगीरथ
वाराणसी। चिरईगांव में दो ऐसे चेहरे हैं जिन्हें बनारस नहीं जानता। इनमें एक हैं जीउत लाल और दूसरे श्याम सुंदर। ये दोनों शख्स आधी रात के बाद उठते हैं और गांव की प्रमुख सड़कों को साफ-सुथरा कर अपने घर चले जाते हैं। सिलसिला एक दिन नहीं, सालों से चल रहा है। 
जीउत लाल पेशे से पोस्टमैन हैं। श्याम किसानी करते हैं। दोनों जने मिलकर गांव की सड़कों को चमका देते हैं। यूं तो साफ-सफाई के लिए इस गांव का कोई आदमी सरकार का मुंह नहीं देखता। हर कोई अपने घर को, अपनी गलियों को साफ-सुथरा रखता है। जानते हैं क्यों? खुद के जरिये साफ-सफाई करने की इस गांव में सालों पुरानी परंपरा है। ऐसी परंपरा जो आज तक नहीं टूटी। चिरईगांव के लोग इस बात से रंज है कि बाहरी लोग यहां आकर इस गांव की परंपरा को, भाईचारे को ठोकर मारने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन भाईचारे की गांठ इतनी मजबूत है जिसे तोड़ पाना किसी के बूते की बात नहीं। बनारस का ये पहला गांव है जहां के लोग थाना पुलिस का चक्कर नहीं लगाते। विवादों को गांव में ही सुलटा लिया जाता है।


 


 


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