काशी को लगी जालिम कोरोना की ‘नजर’, अपनों को ढूढ़ रहे दिन-रात गुलजार रहने वाले इलाके 

 

लहुराबीर से मैदागिन वाया चौक, गोदौलिया-लंका तक अजीब सी खामोशी

 

बीएचयू परिसर में पतझड़ की बयार, सूने पड़े चौराहे-तिराहे और बाग-बगीचे


वाराणसी। कोरोना वायरस संक्रमण के बढ़ते प्रभाव से हर शख्स संशकित है। समूचे देश में लॉकडाउन चल रहा है। लॉकडाउन के चलते काशी की आबोहवा में सुधार तो हुआ है, लेकिन अलमस्त बनारस का बनारसीपन जैसे गुम हो गया है। लोगों की दिनचर्या पर लॉकडाउन का खासा असर जो पड़ा है। चहल-पहल की जगह सुनसान सड़कें और गलियां, अड़ियों पर गजब का सन्नाटा, कचौड़ी-जलेबी की बंद दुकानें, विद्यार्थियों के कोलाहल से भरपूर रहने वाला बीएचयू में छायी वीरानी, और तो और सूने पड़े चौराहे-तिराहे और बाग-बगीचे। मठ-मंदिरों में सदैव गूंजने वाले घंट-घड़ियाल की जगह गजब का सन्नाटा। जिधर देखिएं उधर कोरोना ही कोरोना की बात। ऐसा लगता है कि कोशी को कोरोना की ‘नजर’ सी लग गयी है। 


कोरोना वॉयरस के संक्रमण पर लगाम लगाने के लिए काशी के सांसद और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 दिन का लॉकडाउन समूचे देश में घोषित कर रखा है। इसका असर काशी पर भी साफ नजर आ रहा है। चौबीसों घंटे मस्ती से सराबोर रहने वाला बनारस की मस्ती जैसे छीन सी गई है। अपने मस्त मलंग, बहरी अलंग संग फक्कड़पन के लिए जानी जाने वाली काशी में मंदिरों के कपाट से लेकर मठों और गंगा घाटों पर अजीब सा सन्नाटा है। आस्था का अनवरत रेला अब कहीं नहीं है। जो दिख रहा है वह चिंता और दुश्वारी ही है। लहुराबीर से मैदागिन वाया चौक, बांसफाटक, गोदौलिया, गिरिजाघर, रामापुरा, रेवड़ीतालाब, तिलभांडेश्वर, भेलूपुर, शिवाला, अस्सी, लंका तक अजीब सी खामोशी है। इक्का-दुक्का घरों की बालकनी या दरवाजे से झांकती खामोश निगाहें मानों आते-जाते लोगों से पूछ रही है, भईया कब खुलेगा लॉकडाउन। 


ट्रेन, बस, आॅटो, रिक्शा समेत यातायात के साधनों पर पाबंदी के बाद अपनी मस्ती मूड के बनारसियों के लिए देश और समाज की अधिक चिंता है तो घर के लिए राशन और भोजन का फिक्र भी लोगों को सता रहा है। शहर की ह्दयस्थली से लेकर शिक्षा की अलख जगाने वाले बीएचयू परिसर का भ्रमण करने के बाद यहंी दिखा कि शहर की तमाम अड़ियों पर सन्नाटा सा पसरा हुआ है। बीएचयू परिसर कभी विद्यार्थियों के कोलाहल से गुलजार रहा करता था, वहां अजीब सी खामोशी नजर आयी। सफाई न होने से पेड़ों के सूखे पत्ते सड़कों पर बिखरे नजर आए, जो पतझड़ का एहसास कराने के लिए काफी थे। बीएचयू स्थित विश्वनाथ मंदिर भी भक्तों की आहट को तरसता नजर आया। यहां पर सिर्फ सुरक्षाकर्मी नजर आए। हर चौराहों-तिराहों और बाग-बगीचों में भी अजीब सी खामोशी दिखीं तो झूले बच्चों का इंतजार करते नजर आए। हर जगह पुलिसकर्मियों की चौकसी नजर आयी। इक्का-दुक्का लोग पैदल या फिर वाहनों से नजर आए, लेकिन उनके मन में घर पहुंचने का फिक्र भी दिखा। चहुंओर दुकानें खुली थी तो सिर्फ और सिर्फ दवा की। इन दुकानों पर इक्का-दुक्का ग्राहक ही नजर आए। तिलभांडेश्वर में समाचार पत्र का वाचन कर रहे फारुक ने बताया कि जिसने दर्द दिया है, वहीं दवा भी देगा। एक-एक दिन इसी आस में काट रहे हैं। वहीं रैवर का कहना था कि काशी को जैसे कोरोना की नजर सी लग गई है। 

 

 

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