जंगल में गजब का अनुशासन, लाॅक डाउन में नौगढ़ और चकिया के जंगलों में जनसंदेश टीम की लाइव रिर्पोटिंग



  • नौगढ़! चंदौली जिले का ये एक ऐसा इलाका है, जहां दो दशक पहले तक भूखे-नंगे लोग सबसे ज्यादा थे। अशिक्षा और बेकारी  ज्यादा थी। जागरुकता के अभाव में हर तरफ भुखमरी और तंगहाली थी। अब नौगढ़ बदल गया है। इतना बदल गया है जितना बनारस और लखनऊ नहीं बदला है। कोरोना की बीमारी को लेकर जितनी जागरूकता नौगढ़ के लोगों में है उतनी शायद ही कहीं देखने को मिलेगी। पुलिस की कड़ी चौकसी के बीच नौगढ़ के लोग कोरोना से दो-दो हाथ करने के लिए तैयार हैं। हर कोई फासला बनाकर चल रहा है। राशन की दुकानों और बैंकों पर लाइन तो लग रही है, लेकिन अनुशासन और सोशल डिस्टेंसिंग के दायरे में।  हर कोई एहतियात बरत रहा है। लोगों के बीच फासले बढ़ गए हैं। कोई किसी से सट नहीं रहा है। यकीन न हो तो पढ़िए हमारे समाचार संपादक विजय विनीत, मुख्य संवाददाता जितेंद्र श्रीवास्तव और संवाददाता मनोज कुमार की ग्राउंड रिपोर्ट। सभी फोटो वरिष्ठ फोटोग्राफर शंकर चतुर्वेदी के। 



कोविड-19 की भयावह और सर्वव्यापी आतंक से नौगढ़ सर्वाधिक अलर्ट
 चंदौली जिले का आदिवासी बहुल इलाका नौगढ़ अब पहले की तरह विपन्न और अनपढ़ नहीं है। बेहद जागरूक है। जंगली इलाके में जंगल की आग की तरह कोरोना वायरस की दहशत है। इसलिए नौगढ़वासी सर्वाधिक सतर्क हैं। इनमें गजब का अनुशासन है। नौगढ़ के शिक्षक संतोष केशरी कहते हैं कि अनपढ़ लोगों को भी पता चल गया है कि यह जो महामारी है, उसका मिजाज या निरोधक टीका अब तक वैज्ञानिक भी पता नहीं कर पाए हैं। लोग खतरा मोल लेने की स्थिति में नहीं है। पता है कि तनिक भी लापरवाही हुई तो कोरोना का वायरस वाट लगा देगा। तब सबसे गहरा असर उस वर्ग पर होगा जो अभी-अभी निपट गरीबी की कगार से ऊपर उठ चला है।  



नौगढ़ के पत्रकार के अरविंद कहते हैं, "इस इलाके में दिहाड़ी पर जीते रहे गरीबों की तादाद ज्यादा है जिनको जीवित रहने के लिए तत्काल अन्न-धन की मदद चाहिए। यहां सस्ते गल्ले की दुकानों से गरीबों को मुफ्त राशन मिलने लगा है। लेकिन नेकनीयती के बाद भी सरकारी फैसलों, कार्रवाई का ब्लूप्रिंट रचने के बाद उसके द्वारा असली जरूरतमंदों को वितरित होने की गति अक्सर कैसी घोंघे-जैसी साबित होती है, यह दुहराने की जरूरत नहीं।" नौगढ़ के लोगों का सबसे बड़ा दर्द वो मशीन है जिसपर अंगूठा रखने पर राशन ही उगलती है। इस इलाके में ये मशीन आदिवासियों को खून के आंसू रुला रही है।


भाजपा नेता मुस्तकीम कहते हैं कि भैसौड़ा, बरवाटांड, मजगाई, शमशेरपुर, देउरा, बसौली, विसेसरपुर, मजगांवा, लौवारी, जमसोती, नरकटी, शाहपुर जमसोत, गहिला, केसार-बैगाढ़, तिवारीपुर, सोनवार, भरदुआ, बरवाडीह, चकरघट्टा, परसिया से लगायत धनकुंवारी तक खाद्यान्न वितरण में मशीनी समस्या आदिवासियों के गले की फंस बनकर रह गई है। मंगरही के लोगों को दस किमी दूर नौगढ़ बाजार से राशन वितरित किया जाता है। मशीन के धोखा देने की वजह से लोगों को कई-कई चक्कर काटने पड़ रहे हैं। बेवजह की भागदौड़ और समय दोनों जाया हो रहा है।



कोरोना के खौफ से नौगढ़ में यात्री वाहनों की आवाजाही बंद है। जिस रोज से लाक डाउन हुआ है पुलिस इस बंध के पूरे पालन की उम्मीद सिर्फ नागरिकों से कर रही है। दुर्योग देखिए। आदिवासियों को यह पता तक नहीं कि सैनिनटाइजर क्या बला है? नौगढ़ के ग्राम प्रधान प्रभुनारायण जायसवाल इलाके में अब तक एक हजार लोगों को मास्क बंटवा चुके हैं। साथ ही सैनिटाइजर भी। वो बताते हैं, "आदिवासियों को पता ही नहीं कि सैनिटाइजर क्या बला है? नौगढ़ के सरकारी अस्पताल में मास्क, दस्ताने, सैनिटाइजर और अन्य जीवनरक्षक मेडिकल सामान का घोर अभाव है।"


नि:संदेह नौगढ़  इलाके में न तो सही चिकित्सा उपकरण वाले अस्पताल हैं और न ही चिकित्सक। इसके बावजूद नौगढ़वासियों में बीमारी को लेकर गजब का अनुशासन है। अनुशासन इस कदर है कि बाहर से कोई भी नया आदमी गांव में आ रहा है, तो हड़कंप और हंगामा शुरू होने लग रहा है। नौगढ़ के सघन दौरे में हमें स्वास्थ्य महकमें का कोई कर्मचारी नहीं मिला। मजगाई में सिर्फ सुमनलता नामक एक आशा कार्यकत्री मिली। बेहद जागरूक और समझदार महिला अपने बेटे के साथ कोरोना को लेकर लोगों को जागरूक करने में जुटी थी। सुमनलता ने हमें उन लोगों की एक फेहरिश्त भी दिखाई जिसमें बाहर से आने वालों के नाम दर्ज थे। इनमें कुछ लोग चेन्नई, नोएडा, बंगलौर से कुछ रोज पहले नौगढ़ आए हुए हैं। बताया कि इनमें से कुछ की स्क्रीनिंग हो चुकी है और कइयों ने जांच अब तक नहीं कराई है। फिलहाल ग्रामीणों ने इन लोगों से मिलना-जुलना बंद कर दिया है।
नौगढ़ के प्रबुद्ध नागरिक रामलाल केशरी कहते हैं, ‘वो अभूतपूर्व महायुद्ध की सी स्थिति से गुजर रहे हैं, जिसका अंत अभी वेदव्यास भी नहीं बता सकेंगे। जो सवाल यह महामारी हमारे बीच फेंक रही है, उनके लिए न चाहते हुए भी कई ऐसे भौतिक कायदे-नियम बेकार साबित हुए हैं।’

आदिवासियों को रूला रहीं ये मशीन


छोड़ रहा नेटवर्क, नहीं मिल पा रहा राशन

उचित दर की दुकानों पर नजर आया सोशल डिस्टेंसिंग का नजारा


भीषण गर्मी में भी लोग एक-एक मीटर की दूरी पर बैठे नजर आए
 कोरोना वायरस संक्रमण ने हाल-रोजगार पर डाका डाल दिया है। आमजन तो बेहाल है ही, सबसे अधिक परेशान वे लोग है, जो रोज कमाते और खाते हैं। इसका जायजा लेने को जब गुरुवार को चंदौली के नौगढ़ तहसील के कई गांवों में चक्रमण किया गया तो पाया कि गरीब आदिवासियों को राहत देने के लिए सरकार, सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानों से अंत्योदय, मनरेगा जॉब कार्ड और श्रम विभाग में पंजीकृत श्रमिकों को मुफ्त में राशन मुहैया करा रही है, लेकिन इन पहाड़ी इलाकों में नेटवर्क समस्या के चलते आदिवासियों को ई-पॉश मशीन काफी रूला रही थीं। एक-एक राशन कार्डधारक को उनके हिस्से का अनाज देने में कोटेदार को इस गर्मी में पसीने छूट जा रहे थे। रह-रहकर नेटवर्क छोड़ देने से कार्डधारकों को राशन त्वरित राशन नहीं मिल पा रहा था।
‘जनसंदेश टाइम्स’ की टीम ने ग्राम सभा भैसौड़ा, ग्राम बसौली, मझगाई आदि गांवों में सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानों से वितरित हो रहे खाद्यान्न का नजारा देखा तो भौचक्के रह गए। पाया कि कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने को, जो अनुशासन यहां पर कार्डधारक दिखा रहे हैं, वह बनारस में इक्का-दुक्का ही जगह नजर आता है। सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा पालन कार्डधारक ही नहीं, कोटेदार भी कर रहे थे। इन दुकानों पर सबसे बड़ी दिक्कत नजर आयी, वह यह कि नेटवर्क के चलते ई-पॉश मशीनों का धीमी गति से चलना। भैसौड़ा की अंजू बेगम, बकरीद्दू, शाकीर, जियादी, पंखड़ू उर्फ उस्मान, सद्दीकू, बसौली के बांगुर, सीमा, मझगाई के जसवंत आदि का कहना है कि कई-कई किलोमीटर दूर से आते हैं, लेकिन मशीन न चलने से कई बार लौटना पड़ जा रहा है। बावजूद इसके उनके हिस्से का पूरा राशन मुफ्त में उनको मिल जा रहा है। बसौली के कोटेदार पुत्र प्रिंस और मझगाई के कोटेदार धर्मराज सिंह ने भी बताया कि नेटवर्क समस्या के चलते ई-पॉश मशीन न चलने से राशन बांटने में दिक्कत आ रही है। 

राजदरी, देवदरी के गेट पर जड़ दिया गया है ताला

लॉकडाउन के चलते सुरक्षाकर्मी ही नहीं कर्मचारियों ने छोड़ा साथ


हवाओं के झोकों और बंदरों के चहलकदमी से टूटता सन्नाटा
कोरोना वायरस के फैलते संक्रमण से समूचा भारत सहमा हुआ है। इस संक्रमण से आमजन को बचाने के लिए प्रधानमंत्री व काशी के सांसद नरेंद्र मोदी ने ठोस कदम उठाते हुए समूचे देश में 14 अपै्रल तक लॉकडाउन घोषित कर दिया है। नजीता यह हुआ है कि लोग अपने प्रधानमंत्री की बात को मानकर अपने-अपने घरों में कैद हो गए हैं। लॉकडाउन के चलते पूर्वांचल का नियाग्रा भी सन्नाटे में भायं-भायं कर रहा है। जी हां, हम बात कर रहे हैं चंदौली जिले के नौगढ़ तहसील के तहत आने वाले हसीन वादियों के बीच स्थित खूबसूरत जलप्रपात राजदरी और देवदरी की। राजदरी और देवदरी के गेट पर जहां ताला जड़ दिया गया है। वहीं, सुरक्षाकर्मी समेत कर्मचारियों ने भी साथ छोड़ दिया है। यहां सन्नाटा इस कदर है कि चहुंओर सुनसान नजर आता है। हवाओं के झोकों और बंदरों की चहलकदमी के बीच यह सन्नाटा टूटता है।



काशी वन्य जीव प्रभाग में स्थित चंद्रप्रभा वन्य जीव विहार सहित कई मनोरम, प्राकृतिक पर्यटन केंद्र स्थित है। इसमें राजदरी, देवदरी जलप्रपात सैलानियों के आकर्षण के केंद्र बिंदु है। लेकिन, काशी वन्य जीव प्रभाग के सुरम्य वनस्थली में स्थित राजदरी और देवदरी पर्यटन केंद्र कोरोना वायरस के संक्रमण की मार के चलते सूना पड़ गया है। लॉकडाउन के चलते सैलानियों का टोटा है। इन जलप्रपातों के इर्द-गिर्द गजब का सन्नाटा पसरा हुआ है। जलप्रपात पर तैनात तत्कालीन वनदरोगा व वर्तमान में डिप्टी रेंजर आनंद दूबे की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस दिन से समूचे देश में लॉकडाउन घोषित किया, उसी दिन से राजदरी, देवदरी को बंद कर दिया गया। उनका कहना है कि आम दिनों में 80-90 सैलानी आते थे जबकि बरसात के सीजन में यह संख्या चार से पांच सौ तक पहुंच जाती थी। लेकिन लॉकडाउन के चलते सैलानियों का आना ठप है। इससे क्षेत्र के रोजगार पर भी असर पड़ा है। एक अनुमान के मुताबिक, सिर्फ सरकारी खजाने में अभी तक 50-60 हजार की चोट लगी है। 

सुरक्षाकर्मियों के लिए खोली दुकानें


नौगढ़ में सीआरपीएफ की 148वीं बटालियन के साथ-साथ पीएससी की भी एक टुकड़ी 24 घंटे तैनात रहती है। जिन्हें जरूरत की चीजों के लिए नौगढ़ बाजार में ही खरीददारी करने जाना होता है। लॉकडाउन में सुरक्षाकर्मी भी नौगढ़ के बाजार में ही अपनी पसंद के खाद्य सामग्री के लिए कई दुकानों पर पूछताछ करते नजर आए। नौगढ़ बाजार में सामान्य दिनों की तरह ही दुकानें ही नहीं बैंक भी खुले थे, लेकिन यहां सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा-पूरा पालन किया जा रहा था। इतना ही नहीं, लॉकडाउन का सख्ती के साथ पालन कराने के लिए इलाकाई पुलिस कई गांवों में गश्त करती दिखीं। जिसके कारण गांवों में सड़कों पर कम ही लोग दिखाई दिये। पूरे नौगढ़ क्षेत्र में पूरी तरह शांति देखने को मिलीं। वहीं, आम दिनों में जहां चकिया से नौगढ़ के लिए प्रतिदिन सैकड़ों दोपहिया-चारपहिया वाहनों का आवागमन होता है, लेकिन लॉकडाउन के कारण पूरे रोड पर इक्का-दुक्का ही वाहन नजर आए। पूरे जंगल में इतना सन्नाटा कि हवाओं के कारण पेड़ के पत्तों की खड़खड़ाहट व चिड़ियों की चहचाहट ही सुनाई दे रही थी।   

सड़कों पर पसरा सन्नाटा, कर्फ्यू जैसा माहौल
चकिया। कोविड-19 के कारण पूरे देश में लागू लॉकडाउन के कारण सड़कों पर लोगों की मौजूदगी कम ही देखने को मिली। सड़कों पर पसरा सन्नाटा और जगह-जगह पुलिस की मौजूदगी से एक बारगी लगा कि जैसे कर्फ्यू लग गया हो। जी हां, कोरोना वायरस के खिलाफ जंग के लिए चकिया क्षेत्र के लोग पूरी तरह सजग नजर आए। 
अमूमन जिस चकिया बाजार में जाड़ा-गर्मी-बरसात यानी हर मौसम में भीड़भाड़ व चहल-पहल दिखाई देता था। वहीं, कोरोना के चलते ब्रेक सा लग गया है। चकिया सिर्फ कस्बा ही नहीं बल्कि आसपास के गांव सैदूपुर, शहाबगंज, उतरौत, इलिया, सोनहुल, पचवनियां, मवैया, बबुरी, शाहपुर, अकोढ़ाकलां, बनौली चट्टी, सिकरी आदि के साथ अमूमन हर गांव में यहीं नजारा दिखाई दिया। जहां न तो आदमी दिखाई दे रहे थे और न ही कोई वाहन। सड़कों पर पसरे सन्नाटे के कारण कर्फ्यू जैसा माहौल दिखाई दे रहे थे। अगर इक्का-दुक्का कोई व्यक्ति दिख भी जाता तो पुलिस के सामने आते ही गली का रास्ता पकड़ लेता। लॉकडाउन के कारण पुलिस भी पूरी सख्ती के साथ लोगों को नियमों का पालन कराने को लगातार गश्त करती दिखीं।


 


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