बैंक खातों से पैसे निकालना गरीबों के लिए चुनौती, डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर से लाभार्थियों को राहत देने में आ सकती है मुश्किलें



ग्रामीण इलाकों में नेटवर्किंग समस्या से डिजिटल माध्यमों के उपयोग में हो रही दुश्वारियां


कोरोना वायरस के संक्रमण से लॉकडाउन अवधि में एटीएम से कैश निकालना चुनौती 


आवागमन पर लगी पाबंदियों के बीच बैंक मित्रों को भी काम करने में आ रही परेशानी

जनसंदेश न्यूज़
वाराणसी। कोरोना महामारी से निपटने के लिए घोषित लॉकडाउन के चलते एक तरफ जहां आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह ठप पड़ गयी है। वहीं दिहाड़ी मजदूरों, मनरेगा कामगारों और सरकारी योजनाओं से पोषित लाभार्थियों की मुसीबतें लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे लोगों के लिए घोषित सरकारी राहत योजना पर अमल की राह आसान नहीं दिख रही है। मुश्किलें करीब-करीब वैसी ही दिख रही हैं, जो नोटबंदी के दौरान थीं। बैंक खातों से पैसे निकालना गरीबों, दिहाड़ी मजदूरों और कामगारों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। एक तो लॉकडाउन में घरों से बाहर निकलने पर पाबंदी है तो वहीं नेटवर्किंग की समस्या भी आड़े आ रही है। 
बैंकिंग सेक्टर के जानकारों की मानें तो डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर में बैंक, एटीएम ऑपरेटर, बैंक मित्र और फाइनैंशल टेक्नोलॉजी कंपनियों सहित कई पक्ष काम करते हैं। इन सभी का कहना है कि रिलीफ फंड गरीबों को उपलब्ध कराने में कई चुनौतियां दिख रही हैं। केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज की विभिन्न योजनाओं के तहत देश के ‘सर्वाधिक गरीब 80 करोड़ लोगों’ के लिए 1.75 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की थी। यह पैकेज पहली अप्रैल से तीन महीनों के लिए है। जानकारों की मानें तो एटीएम में पर्याप्त कैश न होने के अलावा यह चिंता भी जताई जा रही है कि आधार पे मॉडल का पहले कभी इतने बड़े पैमाने पर उपयोग नहीं किया गया है और यह पता नहीं है कि यह कितना कारगर हो सकेगा। साथ ही, डिजिटल पेमेंट स्वीकार करने का इन्फ्रास्ट्रक्चर भी देश में खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ खास मजबूत नहीं है और ग्रामीण इलाकों में एटीएम की संख्या भी कम है। केंद्र सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद अभी भी काफी लोग बैंक खाते से वंचित है। 
बैंक अफसर वीएन राय कहते हैं, ‘वर्तमान समय में गरीबों, दिहाड़ी मजदूरों और मनरेगा कामगारों तक पैसे पहुंचाने की महती जिम्मेदारी बैंक मित्रों पर है। वजह, इन तबकों को एटीएम कार्ड का संचालन करना उतना आता नहीं। अधिकांश ने एटीएम कार्ड लिया भी नहीं है। लिहाजा, यह तबका पूरी तरह या तो बैंक शाखाओं में पहुंच का विदड्रॉल्स के जरिए पैसे निकालता है या फिर बैंक मित्र के माध्यम से प्राप्त करता है। लॉकडाउन के चलते स्थानीय जिला प्रशासन की ओर से घरों से निकलने पर पूरी तरह पाबंदी के चलते और कोरोना के लगातार बढ़ते संक्रमण से भयभीत अधिकांश बैंक मित्र घर से बाहर से निकलने से कतराने लगे हैं। यह हाल तब है, जब सरकार ने बैंक की सेवाओं को आवश्यक घोषित किया है। ऐसी परिस्थिति में महज 30-40 फीसदी ही बैंक मित्र काम कर रहे हैं।’
बैंक शाखाओं में कैश की कमी
सेवानिवृत्त बैंक अफसर प्रियरंजन श्रीवास्तव कहते हैं, ‘वॉइट लेबल एटीएम के लिए कैश प्रायरू स्थानीय बैंक शाखाओं से लिया जाता है, लेकिन अधिकांश व्यवसायिक गतिविधियां घटने के कारण ग्रामीण इलाकों में बैंकों की शाखाओं में कैश कम आ रहा है। ऐसे में बैंकर्स के सामने कैश की तंगी की स्थिति है और कई एटीएम काम नहीं कर रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में यदि कहीं एटीएम में कैश उपलब्ध होगा तो घर से निकलने की पाबंदी से लोग इसका लाभ उठा नहीं पायेंगे। यह कहना गलत नहीं होगा कि कैश सप्लाई घटने से नोटबंदी के दिनों की तरह विदड्रॉल्स की मारामारी आने वाले दिनों में मच सकती है। क्योंकि शहरी और ग्रामीण, दोनों क्षेत्रों में रिटेल खर्च का 80 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा कैश में हैं।’ 
ग्रामीण क्षेत्रों में इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी
सेवानिवृत्त बैंक निदेशक आरबी चौबे कहते हैं, ‘मूवमेंट पर लगी पाबंदियों के कारण एटीएम की मरम्मत भी एक चुनौती है। बैंकों को एटीएम सेवा देने वाली एजेंसियों के संबंधित स्टॉफ के आवागमन से जुड़ी मुश्किलों के कारण यह एक बड़ी चुनौती है। वे बताते हैं कि ग्रामीण इलाकों में डिजिटल ट्रांजैक्शंस के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी तो है। जागरुकता का अभाव भी एक बाधा है। हालांकि यह जागरुकता और आदत का मामला भी है। इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी और नेटवर्किंग की समस्या के चलते डिजिटल लेनदेन के दौरान लोगों के पैसों का ट्रांजैक्शन फंस जा रहे हैं। जिसको वह पैसे भेजता है, उसको मिल नहीं पाता और बैंक खाते से पैसे कट जाते हैं। पैसे की वापसी के लिए लोगों को काफी पापड़ बेलने पड़ते हैं। आ गया तो किस्मत, नहीं आया तो संकट। इस भय के कारण भी लोग डिजिटल लेनदेन से परहेज करने लगे हैं।’


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