सुख और ऐश्वर्य की कामना के साथ मां के नौ स्वरूपों का इस तरह करें पूजन, मां से कोरोना जैसे दैत्य के संहार की कामना 


वासांतिक नवरात्र आज से 


पहले दिन पूजी गई मुख निर्मालिका गौरी


दुर्गा अष्टमी एक अप्रैल व नवमी दो अप्रैल को




जनसंदेश न्यूज़
वाराणसी। ब्रम्ह्पुराण के अनुसार चौत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से नववर्ष का प्रारम्भ माना जाता है। इसे भारतीय संवत्सर भी कहते हैं। चौत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन ब्रम्ह ने सृष्टिकी रचना की थी। नववर्ष के प्रारम्भ में नौ दिनों तक वासांतिक नवरात्र कहलाता है। नवरात्र के पावन पर्व पर जगतजननी माँ जगदम्बा दुर्गाजी की पूजा-अर्चना की विशेष महिमा है। इस बार चौत्र नवरात्र बुधवार 25 मार्च यानि कि आज से शुरू हो रहा है जो दो अप्रैल तक चलेगा। इस नवरात्र में गौरी के नौ रुप के दर्शन होते हैं। भगवती को प्रसन्न करने के लिए शुभ संकल्प के साथ नवरात्र के शुभ मुहूर्त में कलश की स्थापना करना ही शुभ फलदायी है। 
पहले दिन मां शैलपुत्री का हुआ दर्शन पूजन
नव रात्रि के प्रथम दिवस मां शैल पुत्री के दर्शन पूजन करने का विधान है। हालांकि कोविड-19 के कारण लगे 21 दिनों के राष्ट्रव्यापी लॉक डाउन के कारण शहर के मंदिरों पर तो भीड़-भाड़  नहीं दिखी, लेकिन लोगों ने घरों से ही मां का दर्शन पूजन कर कोरोना वायरस जैसे दैत्य के संहार की कामना की।
माँ जगदम्बा की आराधना का विधान
प्रख्यात ज्योतिषाचार्य विमल जैन के अनुसार चौत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 24 मार्च मंगलवार को दिन में दो बजकर 58 मिनट पर लगेगी। जो कि 25 मार्च बुधवार को सायं पांच बजकर 27 मिनट तक रहेगी। 25 मार्च बुधवार को पूर्वाह्न 11 बजकर 34 मिनट से 12 बजकर 26 मिनट तक रहेगा। कलश स्थापना के लिए कलश लोहे या स्टील का नही होना चाहिए। शुद्ध मिट्टी में जौ के दाने भी बोएं ,माँ जगदम्बा को लाल चुनरी,अढ़उल का फूल या माला, ऋूतुफल, मेवा व मिष्ठान अर्पित करें। शुद्ध देशी घी का दीया जलाकर दुर्गासप्तशती का पाठ व मंत्र जप करके आरती करनी चाहिए।  
चैत्र नवरात्र के नौ दिन मां का क्या करें अर्पित
नवरात्र में दुर्गा को अलग-अलग तिथि के अनुसार अनकी प्रिय वस्तुएं अर्पित करने का महत्व है। जिनमें प्रथम दिन उड़द, हल्दी, माला-फूल दूसरे दिन तिल,शक्कर, चूड़ी, गुलाल, शहद तीसरे दिन लाल वस्त्र शहद खीर काजल चौथे दिन दही फलसिंदूर ,पांचवे दिन दूध मेवा कमलपुष्प बिन्दी छठवें दिन चुनरी पताका दूर्वा सातवें दिन बताशा इत्र फल पुष्प आठवें दिन पूड़ी पीली मिठाई कमलगट्टा चंदन वस्त्र व नौवें दिन खीर सुहाग सामग्री साबूदाना अक्षत फल आदि। विमल जैन के अनुसार चौत्र शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि 31 मार्च मंगलवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात तीन बजकर 50 मिनट पर लगेगी। जो अगले दिन एक अप्रैल बुधवार को अर्द्धरात्रि तीन बजकर 41 मिनट तक रहेगी। तत्पश्चात नवमी तिथि प्रारम्भ हो जायेगी। इसलिए अष्टमी तिथि एक अप्रैल को मनायी जायेगी। 
वासांतिक नवरात्र में नव गौरी के दर्शन क्रम
प्रथम मुखनिर्मालिका गौरी
वासंतिक नवरात्र के पहले दिन मुखनिर्मालिका देवी के दर्शन का विधान है। देवी का विग्रह गायघाट के हनुमान मंदिर में स्थापित है। कहते हैं देवी के निर्मल मुख के दर्शन से व्यक्ति के जीवन में भी निर्मलता का भाव उत्पन्न होता है। शक्ति के उपासक इस दिन अलईपुरा स्थित शैलपुत्री देवी का दर्शन भी करते हैं। 
द्वितीय ज्येष्ठा गौरी
दर्शन क्रम में दूसरा स्थान ज्येष्ठा गौरी का है। ज्येष्ठा गौरी के दर्शन पूजन से व्यक्ति की समस्त सद्कामनाएं पूर्ण होती हैं। ज्येष्ठा गौरी के दर्शन-पूजन से मुख्यतरू व्यक्ति के हृदय में धर्म के प्रति अनुराग बढ़ता है। देवी का मंदिर कर्णघंटा क्षेत्र के सप्तसागर मोहल्ले में है। 
तृतीय सौभाग्य गौरी
वासंतिक नवरात्र की तृतीया तिथि पर सौभाग्य गौरी के दर्शन का विधान है। सौभाग्य गौरी का विग्रह विश्वनाथ मंदिर के पास ज्ञानवापी स्थित सत्यनारायण मंदिर परिसर में प्रतिष्ठित है। देवी के इस स्वरूप के दर्शन से व्यक्ति के जीवन में सौभाग्य की वृद्धि होती है। कहते हैं 108 दिन लगातार देवी के दर्शन से मनोरथ विशेष अवश्य पूर्ण होता है। 
चतुर्थ शृंगार गौरी
वासंतिक नवरात्र की चतुर्थी तिथि पर श्रृंगार गौरी के दर्शन पूजन का विधान है। श्रृंगार गौरी का मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर के पास स्थित ज्ञानवापी मस्जिद के पृष्ठ भाग में है। मूलतरू श्रृंगार गौरी वैभव और सौंदर्य की देवी हैं। ज्ञानवापी के रेड जोन होने के कारण यहां तक पहुंचने के लिए भक्तों को कई प्रतिबंधों का पालन करना पड़ता है। 
पंचम विशालाक्षी गौरी
गौरी के विशालाक्षी स्वरूप का दर्शन पूजन वासंतिक नवरात्र में पंचमी तिथि पर किया जाता है। देवी का अति प्राचीन मंदिर मीरघाट मोहल्ले में धर्मकूप नामक स्थान के निकट है। ऐसी मान्यता है कि देवी विशालाक्षी के दर्शन से जन्म जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं। देवी का कमल के पुष्प अति प्रिय हैं। 
षष्ठम ललिता गौरी
वासंतिक नवरात्र की षष्ठी तिथि पर ललिता गौरी के दर्शन पूजन का विधान है। ललिता देवी का मंदिर ललिता घाट के निकट है। कहते हैं देवी की आराधना से व्यक्ति को ललित कलाओं में विशेष उपलब्धि प्राप्त होती है। अढ़हुल का फूल देवी को विशेष रूप से प्रिय है। 
सप्तम भवानी गौरी
वासंतिक नवरात्र के सातवें दिन भवानी गौरी का दर्शन पूजन किया जाता है। काशी में भवानी गौरी का मंदिर विश्वनाथ गली में अन्नपूर्णा मंदिर के निकट स्थित श्रीराम मंदिर में है। बहुत से लोग इस दिन कालिका गली स्थित कालरात्रि देवी के दर्शन-पूजन भी करते हैं। यह मंदिर भी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र के रेड जोन में आता है।
अष्ठम मंगला गौरी
वासंतिक नवरात्र की अष्टमी तिथि पर मंगला गौरी का दर्शन पूजन किया जाता है। देवी का मंदिर पंचगंगा घाट के निकट स्थिति है। जबकि देवी के दुर्गा स्वरूप की आराधना करने वाले भक्त इस दिन महागौरी अन्नपूर्णा के दर्शन करते हैं। मंगला गौरी का एक मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर में भी है। कहते हैं देवी की आराधना से व्यक्ति के समस्त प्रकार के अमंगलों का क्षय हो जाता है। 
नवम महालक्ष्मी गौरी
वासंतिक नवरात्र के अंतिम दिन नवमी तिथि पर महालक्ष्मी गौरी के दर्शन-पूजन का विधान है। देवी का मंदिर लक्ष्मीकुंड के पास है। कहते हैं किसी भी नवमी तिथि पर देवी के दर्शन का फल कई गुना बढ़ जाता है। देवी की कृपा होने पर व्यक्ति को धन की कमी नहीं होती।


 


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