स्मार्टसिटी का सच: सड़क पर फैला कूड़ा, कूड़े को बिखरते जानवर और कागज पर स्मार्ट सिटी बनाकर अपनी पीठ थपथपाते अधिकारी



जनसंदेश न्यूज़
वाराणसी। कथनी करनी में फर्क का नमूना यदि आपको देखना हो तो आप रविंद्रपूरी से लंका जाने वाले वीवीआइपी मार्ग पर स्थित मलिन बस्ती के पास के सामुदायिक सुलभ शौचालय पर आइये। यहां आप नगर निगम के उस चेहरे से रूबरू होंगे जो धरातल पर है। यहां फैली गन्दगी हमें और आप को उस हकीकत से सामना करता है जो कड़वा ही नहीं भयावह भी है। 
कहने को नगर निगम कागजों पर होर्डिंगों सहित उन तमाम विज्ञापनों में शहर को साफ़ करने रखने और स्मार्ट सिटी के पायदान पर लगातार बढते हुए दर्शाती है लेकिन असल में ये पूरा सच नहीं है। स्मार्ट सिटी के ताने-बाने को बुनने वाला सरकारी अमला का न तो इस ओर ध्यान है और न ही इसकी जरूरत समझते है।
शौचालय के सामने हजारों रुपये लागत के तीन आकर्षक स्टील के वृक्ष लगाकर शहर को स्मार्ट शहरों में शुमार होने का भले ही ख्याब दिखाने का प्रयास हो, लेकिन यहां स्थायी रूप से फैली कचड़े का अम्बार और उसपर भटकते जानवर शायद स्मार्ट सिटी को मानने के लिए तैयार नहीं दिखते। 
राहगीर भले ही नाक को सांसत में डाल कर इधर से गुजर जाते है, लेकिन जरा वहां के रहने वालों के बारे में सोचे। जो गंदगी के अंबार और उससे उठते दुर्गंध के बीच रह रहे है। इनके बारे में सोचने को मानों नगर निगम के अधिकारियों को फुर्सत ही नहीं है। बस केवल कागज पर बनारस को स्मार्ट सिटी बनाकर अधिकारियों से लेकर कर्मचारियों तक अपनी पीठ थपथपाने में लगे हुए हैं।


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