शहाबगंज में कथावाचक वेदांती महाराज ने मां सीता के चार रूपों का किया वर्णन, भगवान परशुराम ने इस प्रकार जनकरपुर को रक्तरंजित होने से बचाया


मसोई गाँव में श्रीराम कथा का पांचवां दिन

जनसंदेश न्यूज़
शहाबगंज/चंदौली। मानस परिवार सेवा समिति मसोई द्वारा हनुमान मंदिर के विशाल प्रांगण में आयोजित श्रीराम कथा के पांचवें दिन प्रख्यात कथावाचक डा. रामकमल दास वेदांती जी महाराज ने परशुराम संवाद तथा राम विवाह कथा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भूमि पुत्री भगवती सीता के चार रूप रामायण में प्रस्तुत किए गए हैं। वे साक्षात लक्ष्मी हैं और आदिशक्ति भी। वही है संत जन उन्हें भक्ति के रूप में देखते हैं तो योगियों ने सीता जी को शांति के रूप में अपने जीवन में उतारा है।
उन्होंने आगे कहा कि दुनिया का हर एक प्राणी किसी न किसी रूप में अपने जीवन में भगवती सीता को प्राप्त करना चाहता है, किंतु जब तक हमारे जीवन में अभिमान का प्रतीक धनुष रखा है। तबतक हम सीता को प्राप्त नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि अभिमान हमारे जीवन की वह बुराई है, जो हमारी सारी अच्छाइयों को नष्ट करके पतन की ओर ले जाती है। सीता को प्राप्त करने की लालसा में धनुषयज्ञ में उपस्थित हुए सभी अपने-अपने अभिमान में थे और जो खुद ही अभिमान से भरा हो वह अभिमान के प्रतीक धनुष का खंडन कर सीता की प्राप्ति का अधिकारी नहीं बन सकता, इसलिए धनुष यज्ञ में उपस्थित हजारों राजा मिलकर भी धनुष को उठाने व तोड़ने में असमर्थ रहे। 



वहीं पर अपने से बड़ों का सम्मान करने वाले गुरु की आज्ञा का पालन करने वाले श्रीराम ने अपने गुरु व सभा में उपस्थित सम्मानित लोगों को प्रणाम कर धनुष को सहजता में ही तोड़कर सीता का वरण कर लिया। उन्होंने कहा कि अपने से बड़ों का सम्मान करने वाले व आदर्श जीवन जीने वाले लोग ही बड़े कार्यों को कर पाते हैं। आजकल युवा पीढ़ी में अपने लक्ष्य से भटके हुए बच्चे नशा की ओर जा रहे है। जिससे उनकी बुद्धि कुंठित होकर अच्छे कार्यों में शामिल नहीं हो पाती। यदि भटके  बच्चे व युवक संकल्प लेकर बुराइयों का त्याग करें तो वे कुप्रवृत्तियों से बचकर अपने खुद का परिवार का एवं राष्ट्र का भला कर सकते हैं। 
स्वामी श्री वेदांती जी ने परशुराम जी के संदर्भ बताया कि परशुराम जी क्षत्रिय द्रोही नहीं थे। उन्होंने ऐसे राजाओं को ही दंडित किया था जो अपनी प्रजा पर अत्याचार कर रहे थे। सहस्रबाहु ने यज्ञ में बैठे हुए उनके पिता जमदग्नि कर सिर ही काट लिया तब परशुराम जी को यह लगा कि राजा लोग अपनी प्रजा पर क्रूरतापूर्वक अत्याचार करते हैं। इसलिए उन्होंने अनुशासनहीन राजाओं को दंडित कर निर्बल पक्ष के लोगों को सुख प्रदान किया। 



उन्होंने कहा कि शिव धनुष टूटने के बाद राजा लोग भयानक युद्ध की तैयारी कर रहे थे, यदि परशुराम जी का वहां आगमन ना होता तो निश्चित रूप से जनकपुरी रक्त रंजित हो जाती। किंतु परशुराम जी महाराज हर एक समस्या का समाधान क्रोध में भरकर फरसे से ही करना चाहते थे, इसीलिए लक्ष्मण जी ने उनसे कुछ तर्क पूर्ण शब्दों में बात की। भगवान राम ने परशुराम जी से यह कहा कि लक्ष्मण एक सहिष्णु और विनम्र भाई है। कथावाचक श्री वेदांती ने श्रीराम जानकी के विवाह का अत्यंत मनमोहक शब्दों में संगीतमय लय के साथ ऐसा वर्णन किया की भक्त झूम उठे। 
कथा के दौरान मुख्य रूप से सजय सिंह, मनोहर, अमर नाथ पाण्डेय, रामेश्वर, अशोक सिंह, राजन सिंह, अमित सिंह, बिकेश सिंह आदि उपस्थित थे।


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