सरकारी कर्फ्यू से भी अधिक सफल रही जनता कर्फ्यू, मौज-मस्ती के साथ लोगों ने बिताया पूरा दिन


सुबह से लेकर रात तक पब्लिक रही घरों में, नहीं निकली बाहर


थम गया बनारस, महामारी से लड़ने को दिखाया गजब का जज्बा


पीएम के आह्वान का असर, जनता ने पहले कभी नहीं दिखायी ऐसी एकजुटता


रोड पर चले बहुत कम वाहन, मौज को निकले लोग भेजे गये घर


सड़कों पर इक्का-दुक्का गाड़ियों को अजूबे की तरह देखते रहे लोग


क्रिकेट और बैडमिंटन आदि खेलते कई गलियों में दिखे छोटे बच्चे


नहीं खोली गईं दुकानें और विभिन्न प्रकार के व्यापारिक प्रतिष्ठान


घरों में परिवार संग लोगों ने बिताया वक्त, चिपके रहे फोन-टीवी से

जनसंदेश न्यूज
वाराणसी। पब्लिक ने रविवार को खुद ही जैसा कर्फ्यू लगाया कि वैसे पहले कभी भी बनारस ने सरकारी कर्फ्यू के मौकों पर भी नहीं देखा था। चारों ओर स्वतः स्फूर्त नजारा। अद्भुत एकजुटता के साथ जिले का प्रत्येक नागरिक घर में ही रहा। क्या सड़क, क्या गली और क्या नुक्कड़। रोड पर न तो लोग दिख रहे थे और न ही कोई छोटी-बड़ी गाड़ी। न जाम लगने का सवाल था और न ही भीड़-भक्कड़ की ठेला-ठेली। यहां तक गंगा में हमेशा हिचकोले खाने वाली नावे किनारे खड़ी देखी गई। 
तिराहों और चौराहों पर लगे सिग्नल लाइट्स भी लाल-हरे नहीं हो रहे थे। उनमें सिर्फ पीली लाइट जल-बुझ रही थी। ट्रैफिक पुलिस इत्मीनान से एक कोने में खड़े रहे। हर जगह खाकी वर्दी में पुलिस जरूर थी लेकिन कुछ यूं बेपरवाह मानो जब सिर्फ इक्का-दुक्का लोग ही रोड पर दिख रहे हैं तो फिर समस्या क्या है। हां, गिनेचुने जो लोग मुख्य मार्गों दिख रहे थे वह कहीं न कहीं जाते हुए ही दिखे।



प्रतिदिन के जाम से परेशान लोग रविवार को सड़कों पर दूर से आ रहे इक्का-दुक्का वाहनों को इस तरह देख रहे थे मानो कोई अजूबा हो। जी हां, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर सिर्फ देशभर ही नहीं बनारस के नागरिकों ने ऐसा कर दिखाया। मकसद था कोरोना वायरस के संक्रमण से खुद को ही नहीं बल्कि अपने परिवार और समाज को बचाना। लगातार 14 घंटे तक लोग अपने-अपने घर में रहे। परिवारों में लोगों की आम राय थी कि ‘खुली सड़“कें और घर में पूरा परिवार देखा है, बरसों बाद आज पहले वाला इतवार देखा है।’
कुछ गलियों में भले ही कुछ समय तक बच्चे बैडमिंटन और क्रिकेट खेलते दिखे लेकिन बड़े-बुजुर्ग दिनभर घरों में टीवी, फोन और इंटरनेट से चिपके रहे। एक भी दुकान नहीं खुली। छोटी-छोटी चाय-पान की दुकानें तक बंद थीं। सड़कों में ऑटो, ई-रिक्शा तक नहीं दिखे। आवश्यक सेवाओं से जुड़े वाहन और महामारी से बचाव के लिए विभिन्न स्तर पर लगे लोग ही आते-जाते दिख रहे थे। जिस इलाके में कुछ लोग मौज के मूड में निकले वहां पुलिस ने उन्हें घर लौटा दिया।



शहर के हर कोने में सन्नाटा पसरा था। दशश्वमेध, गोदौलिया, लक्सा, रथयात्रा, सिगरा, नई सड़क, लहुराबीर, विश्वेश्वरगंज, लोहटिया, गोला दीनानाथ, काशीपुरा, चौक, बुलानाला, मदनपुरा, सोनारपुरा, शिवाला, अस्सी, लंका, गंगातट के विभिन्न घाट, तेलियाबाग, आदमपुर, कोतवाली, जैतपुरा, अंधरापुल, नदेसर, अर्दली बाजार, भोजूबीर जैसे ऐसे सभी इलाके सुनसान दिखे जहां हमेशा चहल-पहल दिखती। शहर के प्रमुख मंडियां खाली पड़ी थीं। दूसरी ओर, दूर-दराज से आए हुए लोगों और यात्रियों को अपने घर तक जाने के लिए सवारी गाड़ी के अभाव में पैदल ही मंजिल तय करनी पड़ी।



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