संकट की इस घड़ी में कहां है कारपोरेट घराने?


जनसंदेश न्यूज़
मुकेश अंबानी, गौतम अडानी, अजीम प्रेमजी, नारायण मूर्ति, रतन टाटा, प्रेमचंद हिंदुजा, शिव नाडर, सुनील भारती, पल्लो जी मिस्त्री आदि गोदरेज, कुमार बिरला, दिलीप सांघवी, लक्ष्मी मित्तल, बाबा रामदेव से लेकर ऐसे ही बीसियों नाम जब हम पढ़ते है, सुनते है कि इनकी दौलत दुनियां के प्रथम 50 या 100 धनी लोगों में पहुँच गई है। तब हमें एक तरह की तटस्थ प्रसन्नता होती है। अंबानी की अथाह दौलत से हमारा कोई सीधा रिश्ता नही होता, लेकिन एक डोर होती है जो हमें उपभोक्ता के इतर भी इस गौरवभाव से जोड़े रखता है। वह डोर है भारतीयता की।
आज भारत कोरोना की खतरनाक त्रासदी के मुहाने पर खड़ा है। पूरा देश लॉक  डाउन स्थिति में है, तब सवाल यह है कि भारत के धनी मानी लोग कहां है? क्या भारत में कारपोरेट घरानों की मानवीय जबाबदेही निर्वहन का यह सबसे निर्णायक समय आज नही है? सरकार के स्तर पर कोरोना संकट से लड़ने के अवसर समावेशी नही हो सकते है। क्योंकि सब कुछ न तो सरकारी नियंत्रण में है न ही राज्य की ऐसी क्षमता। केंद्र और राज्य सरकारों ने अपने स्तर पर नागरिकों, कर्मचारियों, पीड़ितों? सामान्य जन के लिए रियायतों, उपचारों? वैकल्पिक व्यवस्था का एलान किया है।
भारत के किसी औद्योगिक घराने की तरफ से इस लॉक डाउन स्टेज तक कोई बड़ी मदद राष्ट्र के लिए घोषित नही हुई है। उल्टे कालाबाजारी, जमाखोरी की हरकतें हमारे राष्ट्रीय चरित्र को शर्मसार कर रही हैं। भारत में परोपकार की समृध्द परंपरा रही है। हजारों साल से समाज के धनीमानी लोग न केवल कोरोना जैसी परिस्थितियों बल्कि सामान्य हालातों में भी पीड़ित, गरीब, मजलूम की सहायता परोपकारी भावना से अनुप्राणित होकर करते रहे है। ‘परहित सरस् धर्म नही ‘जैसे जीवन सन्देश हमारा दिग्दर्शन करते रहे है। लेकिन मौजूदा कोरोना संकट में हमारे उद्योगपति, करोबारी कहां है? यह सवाल बड़ा है। भारत सरकार और राज्यों की सरकार 31 मार्च तक लॉक डाउन अवधि में कर्मचारियों को वेतन देंगी। दिहाड़ी मजदूरों को अनाजों? नकदी की व्यवस्था भी की जा रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में सम्पन्न लोगों से बड़ी स्पष्ट अपील की थी कि वे इस संकटकाल में उदारता के साथ आम नागरिकों के साथ खड़े हो। लेकिन अभी तक किसी बड़े कारपोरेट घराने की तरफ से ऐसी कोई पहल सामने नही आई है जो उदाहरण के तौर पर बताई जा सके। कम्पनी एक्ट में लाभांश का दो फीसदी सीएसआर (सामाजिक उत्तरदायित्व निधि)पर व्यय का विशिष्ट प्रावधान है। बेहतर होगा इस दायरे में आने वाले सभी कारपोरेट संस्थान इस मद की राशि सीधे प्रधानमंत्री राहत कोष या सीधे अपने कार्यबल से व्यय करना सुनिश्चित करें। क्योंकि यही समय इस मद की वास्तविक उपयोगिता का है। स्वास्थ्य क्षेत्र में भी आज कारपोरेट का दखल व्यापक है। अम्बेडकर नगर यूपी के एक निजी नर्सिंग होम्स संचालक डॉ अतुल पांडे के अलावा किसी निजी अस्पताल ने अपनी तरफ से रियायत या सहयोग की घोषणा नही की है। कनक हॉस्पिटल, ट्रॉमा सेंटर के मालिक डॉ पांडे की पत्नी भी विशेषज्ञ है और उन्होंने पूरा अस्पताल सरकार को सौंप दिया है। बडे कारपोरेट घरानों के देश भर में श्रृखंलाबद्ध अस्पताल है लेकिन अंबेडकर नगर जैसा कोई समाचार अभी तक सामने नही आया है।
रिलायंस, अडानी, एचसीएल, गोदरेज, पतंजलि जैसी कम्पनियों में लाखों कर्मचारी कार्यरत है। बेहतर होता सभी घराने एक साथ सभी कर्मियों के सवैतनिक अवकाश की घोषणा कर देते। हेल्थ सेक्टर की कम्पनियां मास्क, सेनिटाइजर पर मुनाफा मुक्त आपूर्ति सुनिश्चित कर सकती है। इससे कालाबाजारी की स्थिति निर्मित नही होगी। निजी हैल्थ सेक्टर के श्रृंखलाबद्ध अस्पताल सरकारी तंत्र से बेहतर है अच्छा होगा बड़े महानगरों में स्थित सभी बड़े अस्पताल सरकार के लिये सुपुर्द कर दिए जाएं। वस्तुतः लॉक डाउन लंबा भी खिंच सकता है, ऐसे में एसोचौम, फिक्की, चौम्बर ऑफ कॉमर्स के अलावा देश के सभी व्यापारिक संगठनों को सरकार के साथ यथा संभव सहयोग की संभावनाए खुद निर्धारित करनी चाहिये। क्योंकि आने वाले समय में चुनौती और भी खतरनाक होने के आसार है। जीवन उपयोगी और खानपान की वस्तुओं का संकट भी खड़ा होगा क्योंकि मुनाफाखोर हर स्तर पर सक्रिय है। इनसे निबटने में सरकार सफल नही हो सकती हैं जबतक कि कारपोरेट साथ खड़े न हो।
औद्योगिक वर्ग को यह समझना ही होगा कि जब भारत स्वस्थ्य नही होगा तो उनके लिए न  उत्पादन संभव है न विपणन। इसलिये यह बेहद जरूरी है कि भारत का निजी क्षेत्र सरकार के साथ समानांतर रूप से इस त्रासदी का सामना करने के लिए अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें। भारत अफवाह पसन्द देश भी है यहां झूठी और मनगढ़ंत बातें अक्सर पूरे लोकजीवन को घेर लेती है। अगर सरकार और देश के सभी औद्योगिक घराने इस समय एक जुट होकर देश की जनता के सामने खड़े हो तो भारत मनोवैज्ञानिक रूप से भी इस जंग को जीतने में सफल होगा। क्योंकि कोरोना केवल एक स्वास्थ्यगत चुनौती नही है यह एक आर्थिक हमला भी है। इसका समेकित शमन केवल सरकार के स्तर पर संभव नही है। पूरी दुनिया को भारत ने परोपकार और अपरिग्रह के जीवन मूल्य दिए है। भारत का अतीत भी कारोबारियों के सामाजिक योगदान से चमकता हुआ है, इसलिए अपेक्षा की जानी चाहिये कि इस वैश्विक महामारी के संकट में भारत के कॉरपोरेट घराने भारत के साथ खड़े रहेंगे।
अजय खेमरिया
लेखक स्वतंत्र टिप्पणी कार हैं


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