साधु समाज में अटल विश्वास ही अक्षयवट-मोरारी बापू, जय सिया राम के जयकारों से गूंज उठा यमुना का घाट


भक्त हुए भाव विभोर, भक्ति की बही रसधारा


रामकथा "मानस अक्षयवट" का दूसरा दिन


बापू के भजनों पर झूमें श्रोता, हुए भाव विभोर

जनसंदेश न्यूज़
प्रयागराज। नैनी के अरैल में चल रही कथा मर्मज्ञ विख्यात मोरारीबापू की कथा ‘मानस अक्षयवट’ के दूसरे दिन भी बड़ी संख्या में हजारों भक्तजन कथा सुनने को उमड़े। दूसरे दिन की कथा की शुरुआत में बापू ने तीर्थराज प्रयाग को नमन किया। बापू ने कहा कि तीर्थराजीय चेतनाओं को प्रणाम। जो संत हुए थे, हुए हैं और इस पावन धरा पर जो संत होंगे, उन सब की चेतनाओं को मैं प्रणाम करता हूँ। संत कृपा सनातन संस्थान, नाथद्वारा की ओर से चल रही कथा के दूसरे दिन रविवार को भी पांडाल में भक्ति और राम नाम का माहौल रहा। बापू के वचनों और चौपाइयों को सुनकर भक्तजन भाव विभोर नज़र आए। बापू के श्रीमुख से निकलती चौपाइयों को सुनकर श्रोतागण भक्ति रस में बहते दिखे करीब 40 हज़ार से ज्यादा की तादाद में आये श्रद्धालुओं ने नाम के रस का पान किया। 
एक साधु में पूरा समाज समाहित, साधु प्रधान 
मोरारी बापू ने कहा कि संत और साधु समाज को प्रयाग कहा गया है। यूँ तो साधु और संत एक ही है। लेकिन तुलसीदास जी ने अपने अंतरंग में इनका अलग अर्थ निकाला है। अगर मुझसे पूछा जाए तो साधु प्रधान है। साधु मूल्यवान है। उसका समाज नहीं हो सकता है। एक साधु में पूरा समाज समाहित होता है। साधु समाज हो सकता है, लेकिन कभी-कभी पूरा समाज भी साधु नहीं हो सकता। जिसमें राम भक्ति की गंगा, कर्म की यमुना और ब्रह्म विद्या की सरस्वती है, वह साधु है। 
जहां तीन प्रकार के रथ चले, वही तीर्थ, यह तो तीर्थराज है
मोरारी बापू ने कहा कि जहां तीन रथ चलते है, वहीं तीर्थ है। प्रयागराज तो तीर्थराज है। यहां आकाश वाला रथ जिसमें पहिए नहीं होते, जमीन वाला रथ, जिसमें पहिए होते हैं और तीसरा जल वाला रथ है, जो अपने पेट के बल तैरता रहता है। बापू कहते हैं यह जो आकाश रथ है वह ज्ञान रथ है, धरती कर्म रथ है और जल रथ, करुणा और भक्ति का रथ है। जिस पर हम बस तैरते ही जाए।  



मानस के चार श्रोता है, इन्हीं रूपों के कथा को सुनिए
मोरारी बापू ने कहा कि मानस के चार श्रोता है। उसी रूप में हर श्रोता को कथा का श्रवण पान करना चाहिए। बापू कहते हैं कि मानस का पहला श्रोता भवानी है, अर्थात जो हिमालय की पुत्री, शिव की पत्नी और गणेश व कार्तिक की माँ है। भवानी से तात्पर्य स्वीकार करते हुए सुनते जाना है, जैसे कन्या या बेटी अधिकतर श्रोता होती है। मानस का दूसरा श्रोता मुनि है, अर्थात जो ज्यादातर मौन रहता है। कथा को मौन रहकर सुनना चाहिए। मानस का तीसरा श्रोता ज्ञानी है, मानस को ज्ञान के साथ यानी जागरूक होकर सुनना चाहिए। कथा का चौथा श्रोता मनमानी है, अर्थात जब हमारा मन मान जाए, मन को तसल्ली हो जाए, मन कुबूल कर ले तब तक कथा सुननी चाहिए। बापू ने यह भी कहा कि बेटी सदैव श्रोता, पत्नी वक्ता और माँ सदैव मौन होती है। 
एक दूसरे को स्वाधीनता दे, कोई भी संबंध, बंधन से मुक्त नहीं
मोरारीबापू ने कहा कि पति-पत्नी या किसी भी रिश्ते में एक दूसरे स्वाधीनता देनी चाहिए। यह दूरी प्रेम पूर्वक और प्रेम वाली होनी चाहिए। एक दूसरे को बोलने का मौका दे। कोई भी संबंध, बंधन से मुक्त नहीं होता है। कलयुग प्रभाव में तो गुरु-शिष्य का संबंध भी बंधन से युक्त है। जहां संबंध आता है, वहां बंधन बन जाता है। कथा के दौरान बापू ने कहा कि मैं 60 साल से कथा कर रहा हूँ, कथा सुनने वाले श्रोताओं का लेवल ऊपर उठ रहा है। यह मेरी प्रसन्नता है। कथा सुनने आए तो कभी भी यह सोचकर न आए कि मुझे यह सुनना है। कथा को कुंवारे चित्त से श्रवण करे। आप मुझे अपने तीन घंटे देते हैं, यह मेरे लिए बड़ा दान है। 
राम के चरणों में है प्रयाग, चरणों में हैं संगम
मोरारीबापू ने गोस्वामी तुलसीदास की चौपाइयों का उल्लेख करते हुए कहा कि गोस्वामी लिखते है कि मेरे गुरु चरण कमल ही मेरा प्रयाग है। राम चरण जो अविरल है, जो समस्त कामनाओं को पूरा करने वाला है, वह मेरा प्रयाग है।


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