पूरे देश में होली की धूम, पारंपरिक गीत और एक-दूसरे पर रंग व गुलाल की बौछार 


जनसंदेश न्यूज़ 
वाराणसी। रंगों का त्योहार होली देशभर में मस्ती और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाने वाला पर्व होली भारत में तीन दिनों तक मनाई जाती है। पहले दिन होलिका दहन, दूसरे दिन धुलेंड़ी यानी धूल या होलिका के राख की होली और तीसरे दिन रंगों की होली खेली जाती है। बहुत इलाकों में कई दिनों तक रंगबाजी के साथ फगुआ भी होता है। फगुआ में लोग टोलिया बनाकर होली के मस्ती भरे पारंपरिक गीत गाते हैं और एक-दूसरे रंग व गुलाल की बौछार करते हैं। 
पौराणिक कथा
होली शब्द भक्त प्रहलाद की बुआ के नाम होलिका से आया है। होलिका दैत्य राजा हिरण्यकश्यप की बड़ी थीं जो भक्त प्रहलाद को मारने के लिए उन्हें गोद में लेकर आग में बैठ गईं थी। कहा जाता है कि नारायण की कृपा से प्रहलाद नहीं जले थे जबकि होलिका जल गईं थीं। इसी के बाद से धुलेंडी और होली मनाने का चलन शुरू हुआ। माना जाता है कि होली मनाने की शुरुआत पाकिस्तान स्थिति प्रहलादपुरी मंदिर से हुई। होली को होरी, होलिका दहन, धुलेंडी, धुरेंडी, धुलण्डी, फगुआ, छोटी होली, रंगवाली होली आदि नामों से जाना जाता है।
होली के मौके पर गले मिलने का भी चलन है लेकिन इस साल घातक कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते लोगों को सलाह दी गई है कि वे गले न मिलें और सर्दी जुकाम या बुखार से पीड़ित लोगों से दूरी बनाकर रखें। होली जमकर खेलें लेकिन सेहत और सेफ्टी का भी ध्यान रखें।


 


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