मुसीबत में अनुदेशक, घर का खर्चा चलाना मुश्किल, सरकार उदासीन



जनसंदेश न्यूज़
धानापुर/चंदौली। उत्तर प्रदेश में सपा के शासन काल में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के द्वारा सन 2013 में उच्च प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की कमी को देखते हुए उनके जगह को भरने के उद्देश्य से मेधावी अभ्यथियों को अंशकालिक अनुदेशक के पद पर चयन कर 7 हजार रुपये के मानदेय पर रखा गया। जिनका काम सिर्फ बच्चों को पढ़ाना था। समय बीतने के साथ-साथ मानदेय बढ़ोत्तरी के लिए कई बार जिले से लेकर लखनऊ तक अंशकालिक अनुदेशक संगठनों द्वारा धरना प्रदर्शन किया गया। 
इस दौरान कई बार लाठियां चली, अनुदेशक के कुछ लोग जेल भी गये, तब जाकर 7 हजार से बढ़ कर मानदेय 8470 रुपये प्रति माह हुआ। उसके बाद भाजपा सरकार आई और अपने घोषणा पत्र के वादे के मुताबित प्रदेश के सभी अंशकालिक अनुदेशकों का मानदेय बढ़ाकर 17 हजार प्रति माह करने की घोषणा की।
लेकिन अफसोस इस बात का है कि आज भी अनुदेशक को बढ़ा हुआ मानदेय 17 हजार का भुगतान वर्तमान सरकार द्वारा नही किया जा रहा। बल्कि सरकार द्वारा अनुदेशक के मानदेय को 8470 से घटा के पुनः 7 हजार रुपये प्रतिमाह कर दिया गया। उनसे जब से 8470 का भुगतान बढ़कर मिला था। उसमें से 1470 प्रतिमाह मानदेय की वर्तमान सरकार द्वारा उसकी रिकवरी भी कर ली गई। सरकार की इस रवैये से अनुदेशक आज भुखमरी के कगार पर है। 
सरकार के फैसले के विरोध में अनुदेशकों ने न्यायालय का शरण लिया। जहां लखनऊ की प्रथम बैंच ने अनुदेशकों के 17 हजार मानदेय देने का फैसला भी सरकार को दिया। सरकार आज तक बढ़े मानदेय का भुगतान नही कर रही। जिससे अनुदेशक हताश और लाचार हो गए है। उन्होंने वर्तमान सरकार से बढ़े मानदेय के भुगतान के लिए गुहार लगाई है ।
अनुदेशकों के दुःख को नही समझ रही सरकार
जीवन के 7 वर्ष उच्च प्राथमिक विद्यालयों में खपा देने वाले अनुदेशक अब अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के खर्च और अपने परिवार के भरण पोषण करने में आज पूरी तरह असमर्थ है। अनुदेशक आज पूरी तरह से सरकार के उदासीन रवैये से मानसिक उत्पीड़न के शिकार होते जा रहे है। वो अपनी जायज मांग के लिए दर-दर भटकने को आज भी मजबूर है।


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