क्रियायोग: सभी कष्टों से मुक्ति हेतु सरलतम, तीव्रतम् व श्रेष्ठतम् आध्यात्मिक प्रविधि


क्रियायोग विज्ञान की शिक्षा ग्रहण करें मनुष्य-योगी सत्यम

जनसंदेश न्यूज़
प्रयागराज। ब्रह्माण्ड में सुशोभित अनगिनत रचनायें, उदाहरणार्थ - जीव-जन्तु, वनस्पतियां, अणु-परमाणु, ऊर्जा की तरंगे व अनगिनत विचार, सभी एक-दूसरे से जुडे़ हैं। ये सभी रचनायें तीन उद्देश्यों - अस्तित्व की रक्षा, पूर्णज्ञान व नित्य नये आनन्द, को प्राप्त करने के लिये निरंतर प्रयत्नशील रहते हैं। 
जब कभी भी वायरस, वैक्टिरियां या आकस्मिक विपदा-बाढ़, सुनामी, भूकम्प आदि का भयानक विनाशकारी रूप प्रकट होता है, तब हम सभी अस्तित्व के बचाव में लग जाते हैं। वर्तमान समय में प्रचलित शिक्षा पद्धति-मेडिकल, टेकनिकल, ज्योतिष आदि में वह सामर्थ्य नहीं है कि हम अपने अस्तित्व की रक्षा कर सकें। वर्तमान में प्रचलित शिक्षा-पद्धति में प्राप्त अनुसंधान से मनुष्य यह नहीं जान पाया कि वह कौन है स यह सृष्टि कैसे उत्पन्न हुई स इसका सृष्टा कौन है, मनुष्य की बुद्धि के पास इन प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं है। 
अब समय आ गया है कि मनुष्य क्रियायोग विज्ञान की शिक्षा ग्रहण करें। क्रियायोग के अभ्यास से मनुष्य सत्य व अहिंसा से पूर्ण एकता की अनुभूति करता है, इस अनुभति में उसे सभी प्रश्नों के सही उत्तर मिल जाते हैं औैर उसके सभी कष्ट हमेशा के लिये मिट जाते हैं। उसे पूर्ण ज्ञान की अनुभूति हो जाती है, वह जब तक चाहे तब तक अपने साकार रूप (शारीरिक स्वरूप) में पृथ्वी पर रह सकता है और जिस क्षण व जिस तरीेके से चाहे वह दृश्य रूप केा अदृश्य कर सकता है।
पूर्ण आत्मज्ञानी वैज्ञानिक ऋषियों एवं मनीषियों ने आविष्कार किया है कि मनुष्य का एकमात्र लक्ष्य ”योग“ अवस्था की प्राप्ति है। इस अवस्था में मनुष्य अनुभव करता है कि समय व दूरी स्वप्न की तरह असत्य है। ”योग“ अवस्था एक जागृत अवस्था है जिसमें क्रियायोगी अनुभव करता है कि उसके और सम्पूर्ण ज्ञान, सम्पूर्ण शक्ति , परमानन्द, परम  शांति, अतीत-वर्तमान-भविष्य, के बीच दूरी नहीं है अर्थात उसका अस्तित्व ज्ञानमय, शक्तिमय, शांतिमय , आनन्दमय व सर्वव्यापी है स इसी को निराकार अनूभूति कहते हैं। 



आज ही के दिन महिला सशक्तिकरण दिवस मनाया जाता है। क्रियायोग से सत्य की अनुभूति होते ही यह स्पष्ट हो जाता है महिला ‘सशक्तिकरण‘ अधूरा विचार व अधूरी भावना है। महिला व पुरुष दोनों का सशक्तिकरण आवश्यक है। सशक्तिकरण का वास्तविक अभिप्राय दिव्य इच्छा शक्ति का निरंतर बढ़ना। मनुष्य में दिव्य इच्छा शक्ति की कमी के कारण ही उसके अंदर हिंसा व आतंक बढ़ता है। जब पुरुषों में दिव्य इच्छा शक्ति की कमी होती है, तब वें महिलाओं पर अत्याचार करते हैं। और जिस समय महिलाओं में दिव्य इच्छा शक्ति की कमी होती है, उस समय महिलाओं के द्वारा पुरुषों पर अत्याचार होता है। आज की आवश्यकता है कि महिला व पुरुष दोनों क्रियायोग का अभ्यास करके अपने स्वरूप में दिव्य इच्छा शक्ति को जगायें व उसका शीघ्रता से विकास करें।
जैसे-जैसे मनुष्य में दिव्य इच्छाशक्ति का विकास होता है, वैसे-वैसे वह ”योग“ अवस्था अनुभूति की ओर अग्रसित होता है। योग की अवस्था की अनुभूति होने पर प्रत्येक मां अपने अन्दर सुषुप्त पिता का विराट प्रेम व पिता अपने अंदर सुषुप्त मां के विराट प्रेम की अनुभूति करके सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त हो जाता है।


हर दुख दर्द सह कर वो मुस्कुराती है, पत्थरों की दिवारों को औरत ही घर बनाती है - Happy Women's day


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